ये माना कि
हम किनारे हैं, एक नदी के
मिल नहीं सकते
पर, बैठ के उसपार
इस पार
जब आवाज़ दूँगा तुमको
सुन के मेरी आवाज़
तुम आवोगी ना?
जब होंगे दिन बोझिल
रातें भारी
जब आँखें होंगी बेख़्वाब
चूक जायेंगी बातें सारी
तब बन के मीठी याद
मुझे हँसावोगी ना?
भीगोगी जब किसी बारिश में
और पोछोगी तौलिये से बदन अपना
जब याद आयेगी शरारत मेरी
तब गीली आँखों से मुस्कुराओगी ना?
कोई दे जायेगा ख़बर
जब मेरे मरने की
तब ढांप के दुपट्टे से
मुंह अपना
तुम ज़ार-ज़ार आँसू बहाओगी ना?
जब गुजरूँगा तुमसे
बन के हवा का झोंका
तब भरने को अपनी बाँहों में
अपनी बाँहे फैलाओगी ना?
बोलो!
सुन के मेरी आवाज़
तुम आओगी ना?
कवि-मनीष वंदेमातरम्
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
aapki is kavita main koi ek para nahi balki saari kavita hi sondhi sondhi hai...aapki pukaar pathakon tak poori tarah pahuch rahi hai.anandit ho gaya man subah subah aapki kavita pad kar...ab sare din ke aache bitne ki sambhavna badh gai....bhadhai sweekaaren..:)
बहुत से और बहुत सुन्दर से भाव हैं कविता में, कविता में विरह के आँसुवों का स्वाद भी है, पुनर्मिलन की इछ्छा तडप भी है:
"...इस पार
जब आवाज़ दूँगा तुमको
सुन के मेरी आवाज़
तुम आवोगी ना?"
यह भी है कि उम्मीद की डोर नहीं टूटी है,जीने का प्रियतम ही सहारा है अब भी:
"..चूक जायेंगी बातें सारी
तब बन के मीठी याद
मुझे हँसावोगी ना?
कुहला बाजी भी है:
भीगोगी जब किसी बारिश में
और पोछोगी तौलिये से बदन अपना
जब याद आयेगी शरारत मेरी
तब गीली आँखों से मुस्कुराओगी ना?
और गंभीरता भी:
"कोई दे जायेगा ख़बर
जब मेरे मरने की
तब ढांप के दुपट्टे से
मुंह अपना
तुम ज़ार-ज़ार आँसू बहाओगी ना?"
बोलो!
सुन के मेरी आवाज़
तुम आओगी ना?
बहुत ही सुन्दर कविता..बधाई|
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह वाह , प्रेम, मनुहार, छेडछाड, बिछोड एंव मिलन की आस का आकर्षक चित्रण किया है आप ने.
sorry .. पहले comment में कुछ ग्ङ्बङ हो गई थी..अगर आप ऐसे पुकारेंगे तो बुत भी सुन लेंगे.. हम तो इंसान है.. और नायिका नंगे पांव दौङॆ चली आयेगी.. नदी के पाट भी मिल जायेन्गे अपनी सीमायॆं तोङ कर..
पता नहीं वह शब्दों की साकार नायिका कौन है जो इतनी उर्वर भूमि को जन्म दिया है…शानदार कविता…बधाई स्वीकारे!!
बधाई हो एक ऐसी कविता के लिये, जिसमे बस वही कुछ है, और कुछ इस तरह से है, कि जो अनन्त बार दुअहराये जाने पर भी हर भाषा हर बोली हर अभिव्यक्ति मे रचा बसा, अपने आस पास ही लगता है । कविता सफ़ल है ।
इस कविता के बाद भी मनीष जी अब भी मैं आप से एक सर्वथा आपकी प्रेम कविता की प्रतीक्षा मे हूं । आपके भावों का पूरा आदर करता हूं पर यहां एक-एक बिम्ब, भले ही पाठक का हर शब्द पर भरपूर मनोरन्जन करता हो पर नदी के किनारे बने प्रेमी, भारी रातें, बरिश मे भीगना, मर कर किसी की आंखों मे आंसू कहीं कुछ ऐसा नहीं कि आप कह सकें ये मेरा बिम्ब है....आपके जैसे समर्थ कवि से एक आपकी मौलिक कविता की आशा है ।
मौलिक कविता से मेरा तात्पर्य बस इतना है कि, आप एक बार अपनी प्रतिभा का प्रयोग कर प्रेम गीत लिखें, प्रेरणा को कुछ पलों को भुला कर... इसे एक शून्य काव्य समझ वाले पाठक का अपने प्रिय कवि से अनुरोध समझें...
कविता पसंद आयी। मेरा एक प्रयास इस कविता को ग्रहण करने का http://tusharvjoshi.mypodcast.com/2007/02/Aaogi_Naa-1858.html यहाँ रखा है। आप भी सुन कर देखें
बहुत ही सुंदर भाव ,,मिलन और विरह के साथ साथ पढ़ने को मिले ...
जब गुजरूँगा तुमसे
बन के हवा का झोंका
तब भरने को अपनी बाँहों में
अपनी बाँहे फैलाओगी ना?
बहुत ही अच्छा लगा आपकी इस रचना को पढ़ना ..!!
मनीष जी की यह कविता वास्तव में एक सुन्दर रचना है जिसमें श्रंगार काव्य के सभी रूपों का सम्मिश्रण है। विरह, मिलन की आकांक्षा, छेड़छाड़ सभी अपना प्रभिव छोड़ते हैं। बिम्ब हालाँकि पुराने हैं पर प्रभावोत्पादक हैं। इस खूबसूरत प्रेम-गीत के लिये मनीष जी को बधाई।
rachnaa atyanta uttam ban paDee hai .. badhaayee.
Saurabh312@gmail.com
तुषार जी,
आप तो हिन्द-युग्म के "हेमेश रेशमिया" हैं, लेखक, गायक और समालोचक।
Namaskar!
Mera manna hai ki, "KAVITA KAVI KI HASTAKHCHAR HOTI HAI" .i MEAN TO SAY THAT - POEM IS THE SIGNATURE OF THE POET.
Signature is the representation of nature of any person.And that poet represented his own feelings. That is not the demand of nay poem. Ye kavita ki paribhasha ko piche chorne wali baat hogi. Is liye mera manna hai ki kavi ki vyaktivishesh ko dhyan mein rakh kar aapni rachna ko samaj ke liye bojh bana raha hai, aur khud ko halka.
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