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Thursday, February 15, 2007

ग़ज़ल


फुरसत-ए-जिन्दगी चुभी, खार हो गया,
आह भरना भी अब दुशवार हो गया..

ना मिलेगा आसमाँ न जमीं, तुझको कभी,
पुराना मुकम्मिल जहाँ का ये कारोबार हो गया..


रिश्तों में नफा अदा किया करता था,
जालिम कितना खुदी से पार हो गया..

उसकी पाकीजगी थी जिसकी पनाहों में,
अब फिक्र छुई-मुई भी सदाबहार हो गया..

इतने भरे हैं पैमाने नूर्-ए-यार के,
कि साकी को शराबी से प्यार हो गया..


अरज भी उसकी, जुस्तजू भी उसकी, बन्दगी भी उसकी,

मुझमें मेरा बचा क्या,उसका सब 'इख्तियार' हो गया..


उसका नाम जुबाँ पर आता नहीं महफिल में,
चेहरा हाथों की चादर ओढ शर्मसार हो गया..

अपने मुजरिम को रिहा न कर क़ैद से,
उसके आगोश मे ही जन्नत-ए-असफार(यात्रायें) हो गया..

उल्फत मे मेरी तबाह उसके शाम-ओ-सहर,
जुल्फ बिखरी दीद मिले, वो गुले गुलजार हो गया..

--- अनुपमा चौहान --

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अरज भी उसकी, जुस्तजू भी उसकी, बन्दगी भी उसकी,
मुझमें मेरा बचा क्या,उसका सब 'इख्तियार' हो गया

bahut hi khubsuart likha hai aapne ...dil ko chhoo gayi aapki lines ...anupama ji ...

Gaurav Shukla का कहना है कि -

उसकी पाकीजगी थी जिसकी पनाहों में,
अब फिक्र छुई-मुई भी सदाबहार हो गया..
.
.
मुझमें मेरा बचा क्या,उसका सब 'इख्तियार' हो गया..

बहुत खूबसूरत गजल लिखी है आपने...
सुन्दर भाव,
हृदय से बधाई

GKT का कहना है कि -

aapki gajal padke
humhe aapki kalam se Pyar ho gya

Anonymous का कहना है कि -

nice gazal. lekhni me dhaar aa rahi he. shabbdo ka sundar prayog he

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अनुपमा जी..

आप की क्षमताओं पर मुझे कभी भी संदेह नहीं था| रचना दर रचना आप में परिपक्वता आती जा रही है..ये पंक्तिया असाधारण हैं:

"फुरसत-ए-जिन्दगी चुभी, खार हो गया"

"उसकी पाकीजगी थी जिसकी पनाहों में,
अब फिक्र छुई-मुई भी सदाबहार हो गया"

"साकी को शराबी से प्यार हो गया..:)"

"मुझमें मेरा बचा क्या,"

"चेहरा हाथों की चादर ओढ शर्मसार हो गया.."

"उल्फत मे मेरी तबाह उसके शाम-ओ-सहर,
जुल्फ बिखरी दीद मिले, वो गुले गुलजार हो गया"

आपको इतनी सुन्दर रचना की बधाई|

Unknown का कहना है कि -

its nice.
really is it yours??
:-)
joking!!!
Really nice...

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

अच्‍दी गज़ल, और शब्‍दो का प्रयोग

Mohinder56 का कहना है कि -

अनुपमा जी
मै कहुंगा यह गजल एक बेहतरीन पेशकश है

'अरज भी उसकी, जुस्तजू भी उसकी, बन्दगी भी उसकी,
मुझमें मेरा बचा क्या,उसका सब 'इख्तियार' हो गया.."

मुहब्बत में अक्सर इन्सान अपनी पहचान खो देता है
"पानी में मिल के पानी, अन्जाम ये कि पानी"

आपकी लेखनी इसी तरह अनावर्त चलती रहे

Anonymous का कहना है कि -

मात्र खूबसूरत ग़ज़ल कह देना, आपके इस प्रयास पर उचित प्रतिक्रिया नहीं होगी। रात को 2 बजे तक जागकर ग़ज़ल लिखना आपके ग़ज़ल के प्रति समर्पण और प्रेम को दर्शाता है।

इस ग़ज़ल में भावों के अनुरूप जिस प्रकार आपने शब्दों का चयन किया है, वह आपकी असाधारण क्षमताओं और परिपक्वता को इंगित करते हैं।

आपकी ग़ज़ल लिखने की कला में निपूर्णता का भास आ रहा है। अब हम उम्मीद कर सकते है कि प्रत्येक बुधवार को एक खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने को मिलेगी।

प्यार के इस पर्व पर इस शानदार तोफहे के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।

मनमोहन का कहना है कि -

इतने भरे हैं पैमाने नूर्-ए-यार के,
कि साकी को शराबी से प्यार हो गया..

kya baat hai, aap ki srijnatmakta aap ki kalam ke saathi hai, aur milkar hi aisi sunder gazal likhte hain.

Bahut bahut badhayee appko

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस ग़ज़ल के नौ के नौ शेर लाजबाब है। तुकान्त इतने सटीक हैं कि इससे कवयित्री की शब्दों पर पकड़ और मेहनत साफ झलकती है। जैसाकि गिरिराज जी ने लिखा है कि अनुपमा जी को इसके लिए २ बजे रात तक जगना पड़ा। मैं तो कहता हूँ कि यदि मुझे ऐसी खूबसूरत ग़ज़ल लिए पूरी रात भी जगना पड़े, तो मंजूर है।

SahityaShilpi का कहना है कि -

अनुपमा जी सबसे पहले इतनी खूबसूरत ग़ज़ल के लिये नाचीज़ की ओर से बहुत बहुत मुबारकबाद। ग़ज़ल लेखन के प्रति आपके समर्पण के विषय में जानकर लगा कि ग़ज़ल का भविष्य निस्सन्देह उज्जवल है। एक पुरानी शेर (कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता) को नये अंदाज़ में पढ़कर अच्छा लगा। ग़ज़ल में अल्फाज़ के इस्तेमाल में अभी सुधार की गुंजाइश है ताकि जो कहीं कहीं अशआर के वज़न में अंतर आया है, उस पर काबू रखा जा सके। फिर भी एक लम्बे अरसे बाद एक सुन्दर ग़ज़ल पढ़ने को मिली। इसके लिये अनुपमा जी और हिन्दी-युग्म को धन्यवाद।

अनिल वत्स का कहना है कि -

अनुपमा जी,
समझ में नही आता कि किन शब्दों मे आपकी इस रचना की तारीफ की जाय, जो भी की जाय वह कम ही होगी।

Anonymous का कहना है कि -

Liked !

Ripudaman

विश्व दीपक का कहना है कि -

बड़ी हीं सुंदर गज़ल है। इसी तरह लिखते रहिये।

Upasthit का कहना है कि -

लखनऊ और कानपुर के इतने पास से होने के बाद भी मैं, आपकी इस रचना(गजल है क्या? मुझे गज़ल क्या? इसका उत्तर नहीं पता ।) का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूं..अच्छा होता यदि आप पाठकों को कठिन लग सकने वाले शब्दों का अर्थ भी दे देतीं ।

Anonymous का कहना है कि -

Upasthit ji aapko jin shabdo ka matlab nahi samajh aaya hai aap mujhse pooch sakte hain....mujhe u laga tha ki isme se sirf ek shabd thoda kathin hai "asafaar" so uska matlab likh diya tha....u r always welcome to ask any doubts.

Divine India का कहना है कि -

मेरे लिहाज़ से गजल का प्रथम अग्रह उर्दू का भावनाओं के साथ सही तालमेल और वह काबिले-गौर है…"छुपा था अब्र मे ऐसा इब्तिदा-ए-इश्क़ मालुम होता
तो विसाल कर लेता…"
धन्यवाद!!

Unknown का कहना है कि -

Yeh kya likha hai, honey .... that's not a ghazal ... sirf tukbandi hai ... Suno ...pehle bhav chuno fir lafz dalo .... u shud be clear in ur mind about wat u want to convey with a verse ... I wud like to see improvement next time ...

Luv
Ashu

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