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Monday, February 12, 2007

'निठारी पर-'


शिशु- दधीचि-
शून्य, सुप्त मानवता
के संतप्त अवाक्
का नव कोलाहल ?
अहे !
अस्थि चूर्णों से निर्मित
होता है क्या वज्र कलियुगी-
चलो ,ठीक है,
खंडित होना तब
शिशु, शैशव
धर्म , प्रगति - योजना,
मृत्तिका - घट - से टूट चले स्वप्नों का ।

क्षम्य है , कारक
विषाद - स्नात दृग के प्रश्न का,
असम्मति से नष्ट होती अस्मिता
जो क्षुब्ध होती -सी नियति पर
नहीं समझी गुरु प्रयोजन !
दैव- देवज ही नियम यह
ब्रह्म - विरचित
सृष्टि - सर्जित-
नश्वरी नर जाति का
कुछ त्याग बनता देव- संबल-
तेज स्रोत अजस्र
यदि देवत्व का
तो यह तमस-
आराधना भी हो यथोचित् ।
दीखता , पर
कृत्य कुछ यह षाड्यंत्रिक--
नहीं होता दैव
ऐसा दुर्नियंत्रित, यथा मरुधर
अकारण ही सैकतों के गिरि तले
हो निष्करुण,
दे कुचल सुरभित पुष्प कोई ।
बुद्धि या नवजात
तार्किक (नरज) कोई
जो घृणित दुष्कृत्य
को कह तर्कसंगत
झाड़ पल्लू अग्रगामी हो चले फिर-
उसे दे आलोचना की भी नियति
भर चले निज-स्वार्थ घट
को भी लबालब(यदि बने अवसर) ।
फिर बना दुविधा नयी
कुछ राजनैतिक
बाँटकर दो वर्ग,
रक्षक -भक्षकों के
अनिश्चित कर चयन उनका पूर्ण कोई,
अनैतिक यह मनुज- मेधा रक्तबीजी
करे निश्चय
कौन है अनर्थ कर्ता !!
दीखता है
मध्य सागर में पनपता
एक जल नव,
अतिघनत्त्विक ,
जो रखे नरता तिराती
लवण पर ही,
ताकि जब चाहे
डुबो दे स्वच्छ जल में
देख अवसर !
- आलोक शंकर

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

SahityaShilpi का कहना है कि -

कविता में जिस घटना का वर्णन है, वो खुद ही इतनी ह्रदय विदारक है कि उस पर लिखी कविता खुद ही मार्मिक बन जाती है। आलोक शंकर जी की काव्य-प्रतिभा कविता को और भी मार्मिक बना देती है। संस्कृतनिष्ठ भाषा कतिपय लोगों को मुश्किल लग सकती है पर उसका भी अपना महत्व तथा माधुर्य है। कुल मिलाकर एक ह्रदयस्पर्शी रचना है, जिसके लिये आलोक शंकर जी तथा हिन्दी-युग्म को साधुवाद।

विश्व दीपक का कहना है कि -

आलोक शंकर जी आपसे मैं आग्रह करूँगा कि आप सरल भाषा में लिखें ताकि हमारी मस्तिष्क को अपने कार्य का भान हो सके । निस्संदेह आपने अपने विषय से पूर्ण न्याय किया है , परंतु लगभग आधी कविता मेरी मस्तिष्क के ऊपर से होकर गुजरी है। इस कारण मैं टिप्पणी करने में अपने आप को असमर्थ मान रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे ।
आपका शुभाकांक्षी,
विश्व दीपक 'तन्हा'

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आलोक शंकर जी..
जिस भाषा में आपने इतना मार्मिक विषय उठाया है वह सुग्राह्य नहीं है| यह विद्वानों के लिये लिखी गयी कविता है|
आपकी हिन्दी पर इतनी अच्छी पकड के लिये बधाई..

Divine India का कहना है कि -

दृश्य का मार्मिक चित्रण किया है…भाव में उद्गार है आपके…साधुवाद!

Upasthit का कहना है कि -

सम्प्रति शून्य

अनुग्रहित आकंठ
विस्मित भ्रांत हूं
हूं चकित आलोक
तम हित रम रहे
अनुबंध गर्हित
रवि रश्मियां
मधुतप्त भीषण
हैं कहीं , क्या बच रहीं?(अब भी?)

काल कज्जल कूट
श्यामल अनाव्रत वक्ष
अचल यओवन युगल
मदसिक्त कटि
शतदल मुक्त्कुन्तावलि
मदघूर्णित रक्तिम
सकल ब्रम्हान्ड
मूर्छित(वह भी यह भी..आश्चर्य?)
माया..धर्म हित रत योजना
शिशु जीवन अरक्षित
मंगल प्राकृतिक चिर
मानवी इच्छा...विकराल
हुयी स्वीक्रत..(अब ही कब तक?)

उत्त्तर सम्प्रति शून्य.....
अगम्य अचल अकथ्य
शून्य...

विशेष: बचपन मे हम कला की परीक्षा में आम बना कर उपर बडा- बड़ा लिख देते थे....आम..नहीं तो क्या पता अभागा शिक्षक करेला ही समझ ले ।
आपकी कविता, उसके तथाकथित शीर्षक मेरी ये उपर लिखी तथाकथित कविता और उसके अतिकथित शीर्षक पर मन में ऐसे ही भाव उबाल मार रहे हैं । जाने क्यों...उत्तर.. संप्रति शून्य ।

Alok Shankar का कहना है कि -

मैंने संक्षिप्त भाव पोस्ट कर दिया है , आशा है अब आम को करेला नहीं समझा जायेगा ;)

Anonymous का कहना है कि -

आलोक जी,

अर्थ सभी संदर्भों में लुप्त होते से जा रहे हैं।
कविता के भाव मात्र क्लिश्ट शब्दों के उच्चारण में उलझ कर रह गये हैं।

रिपुदमन पचौरी

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आलोक जी!

जो भाषा जितनी ज्यादा प्रयोग में होती है, उसके मरे से मरे (कम आवृत्ति वाले) शब्द भी लोगों की जुबाँ पे होते हैं। उदाहरण के लिए आप अंग्रेज़ी के उन शब्दों की ध्वनि भी सुन सकते हैं जो शायद ५० वर्ष पूर्व लगभग मृत होंगे। मगर हिन्दी प्रयोग करने वाले शनैः शनै कम हो रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि कम आवृत्ति वाले शब्दों की आम लोगों द्वारा भावानुवाद बहुत कठिन जान पड़ती हैं। फिर भी आप बधाई के पात्र हैं कि देववाणी संस्कृत के शब्दों के आप वाहक हैं। लेकिन एक विशेष बात पर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा कि यदि आप अधिक कठिन शब्दों का प्रयोग करेंगे तो पाठक कविता में निहित भावों को समय देने के स्थान पर शब्दार्थ पर टिप्पणी करते मिलेंगे। मैं यह नहीं कहना चाह रहा हूँ कि आप इन शब्दों का प्रयोग न करें, यह कहना चाह रहा हूँ कि जब भी कोई कविता प्रकाशित करें तो इस बात की मीमांसा कर लें कि एक साधारण हिन्दी जानने वाला व्यक्ति किन-किन शब्दों को कभी नहीं सुना होगा। उसके बाद कविता के नीचे फ़ुटनोट के रूप में उन कम आवृत्ति वाले शब्दों का कोषगत् अर्थ लिख दें।

Anonymous का कहना है कि -

Sailesh ji kee baatein appealing hain.

Ripudaman Pachauri

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