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Friday, February 09, 2007

गलती तुम्हारी नहीं है


जो टूट के चूर-चूर हुआ दिल
पानी की बूँदों सा बिखर गया,
गलती तुम्हारी नहीं है
मैंने ही पत्थर से दिल टकराया था।

जो खिंच जाती है, एक चादर
पानी की, आँखों में
तुम्हारा जिक्र आने पर;
जो कटती हैं बेख्वाबगी में रातें,
गलती तुम्हारी नहीं है
मैंने ही आँखों में तुम्हें बसाया था।

कसते हैं फिक़रे ज़माने वाले
जो हँसते हैं, यार मेरी बेहोशगी पर
जो भटकता हूँ बेहिस दिल लेकर
तुम्हारे शहर में,
गलती तुम्हारी नहीं है
मैंने ही तुम्हें दिल में बसाया था।


कवि- मनीष वंदेमातरम्

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

विश्व दीपक का कहना है कि -

आपने प्रेम का अच्छा वर्णन किया है।
विरह का भी सटीक वर्णन है।
बधाई स्वीकारें।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

गलती तुम्हारी नहीं है
मैंने ही तुम्हें दिल में बसाया था।

कविता की छटपटाहट भीतर तक बेधती है|

Anonymous का कहना है कि -

कसते हैं फिक़रे ज़माने वाले
जो हँसते हैं, यार मेरी बेहोशगी पर
जो भटकता हूँ बेहिस दिल लेकर

simple n easy to understand....tas the best thing about this poem

Anonymous का कहना है कि -

वाह!!! विरह के दर्द मैं भी प्रेम झलक रहा है, अपनी गलती को स्वीकार कर लेना अच्छी बात है :)

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

जो खिंच जाती है, एक चादर
पानी की, आँखों में
तुम्हारा जिक्र आने पर;
जो कटती हैं बेख्वाबगी में रातें,
गलती तुम्हारी नहीं है
मैंने ही आँखों में तुम्हें बसाया था।

haan galti hi hamari hai ki jise chhaha us eis kadar toot kar chahah ki bus use hume todhne ka bhi haq tha

aapki baat dil ko ghare tak chhu gayi

manish ji aapko kam hi padha hai lekin itna zaroor kahungi ki aapko padhna bhaut achha laga

SahityaShilpi का कहना है कि -

कविता में एक प्रेमी की मानसिक अवस्था का सटीक विवरण है। 'बेहोशगी' या 'बेख्वाबगी' जैसे शब्द हिन्दी में शायद नया प्रयोग है, हालाँकि इनके पूर्व-प्रचलित रूप भी उतनी ही सरलता से कविता में प्रयुक्त हो सकते थे। पर शायद कवि को नये शब्द प्रयोगों से अधिक ही लगाव है।

ghughutibasuti का कहना है कि -

सुन्दर रचना है ।
घुघूती बासूती

ghughutibasuti.blogspot.com

Tushar Joshi का कहना है कि -

>> जो टूट के चूर-चूर हुआ दिल
>> पानी की बूँदों सा बिखर गया,
>> गलती तुम्हारी नहीं है
>> मैंने ही पत्थर से दिल टकराया था।

अती सुंदर! यहाँ शिशे की प्रतिमा प्रयोग करते तो और लज्जत आती। पानी इस शब्द का प्रयोग दुसरे मिसरे में स्वाभाविक लगता है।

>> जो खिंच जाती है, एक चादर
>> पानी की, आँखों में
>> तुम्हारा जिक्र आने पर;
>> जो कटती हैं बेख्वाबगी में रातें,
>> गलती तुम्हारी नहीं है
>> मैंने ही आँखों में तुम्हें बसाया था।

पानी की चादर का खिच जाना बहुत अच्छा लगा।

>> कसते हैं फिक़रे ज़माने वाले
>> जो हँसते हैं, यार मेरी बेहोशगी पर
>> जो भटकता हूँ बेहिस दिल लेकर
>> तुम्हारे शहर में,
>> गलती तुम्हारी नहीं है
>> मैंने ही तुम्हें दिल में बसाया था।

कुल पुरी कविता मन को भा गई। वो तेरे प्यार का ग़म एक बहाना था सनम अपनी किसमत ही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया, यह मुकेश की आवाज़में सुना हुआ गाना रह रह कर याद आया।

मेरी बधाईयाँ स्वीकारें।

तुषार जोशी, नागपुर

Anonymous का कहना है कि -

bahut gahre tak aapne dil ko choo liya.

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