आज बाग में एक कली खिली है,
भौरों की तड़पन रंग लायी है।
ये धरती पर बिखरे ओस के मोती
जैसे लगता है कि मोतियों की नदी
बही जा रही है।
ये मेरी आँखों की रात भर की कमाई है।
दरवाजे खोल के सोया था तुम्हारे इंतज़ार में
आँख खोली तो देखा
कि फिर तुम नहीं आयी
हमेशा की तरह
दिल को जलाने तुम्हारी याद चली आयी है।
कवि- मनीष वंदेमातरम्
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
ओह!!!सुंदर, बहुत सुंदर इस कविता का
प्रवाह अद्भुत है॥टटोल के मन को सपनों
में आकाश दिया,बनाने के लिये तस्वीर उसकी
ऐसा वृहत नील प्रत्यय दिया…॥
अतिसुन्दर, कविता का प्रवाह उत्तम है।
बधाई!!!
बेचैनी को बेहद सुन्दर शब्द दिये हैं आपनें
"हमेशा की तरह
दिल को जलाने तुम्हारी याद चली आयी है"
ये मेरी आँखों की रात भर की कमाई है।
दरवाजे खोल के सोया था तुम्हारे इंतज़ार में
आँख खोली तो देखा
आँखें बन्द करके आँसुओं की कमाई कैसे कर पाये भैये. और अगर आ~ंसू कमा रहे थे आँखें जो प्रतीक्षा में थीं, बन्द कैसे हुईं..
कविता का भाव और प्रवाह तो उत्तम है, परन्तु निर्वाह सही नहीं है
Bas ek baat kahunga ek gana tha guide me...Din dhal jaye, raat na jaaye.... tu nahi aye teri yaad sataye.
बहुत अच्छी कविता कही है आपने शब्द भी सुंदर है.. इंतज़ार मे भी सुख है..
बहुत अच्छी कविता कही है आपने शब्द भी सुंदर है.. इंतज़ार मे भी सुख है..
आज बाग में एक कली खिली है,
भौरों की तड़पन रंग लायी है।
उपर्युक्त पंक्तियों से अर्थ निकलता है कि भौंरों की तड़पन ने कली खिलायी है। भौंरे और कली का रिश्ता आशिक और प्रेयसी के रिश्ते के समान है। इन पंक्तियों के अनुसार प्रेमी से प्रेयसी आ मिली है। और बाकी सारी कविता में कवि अपनी तड़पन दर्शाता है। आखिरी दो पंक्तियों में कवि कहता है कि
"हमेशा की तरह
दिल को जलाने तुम्हारी याद चली आयी है"
अब पहली दो पंक्तियाँ और बाकी कविता विपरीत आचरण करतीं हैं। यानी अंत में कली नहीं खिलती , कली की याद ही भौंरे को तड़पाती है। क्या कवि का धयान सिर्फ़ शायरी लगने वाली लाइनें लिखने पर है?
आपकी पिछली कविता में भी मैंने ऐसी बात पाई थी। कविता शुरु कहीं और होती है और खत्म कहीं और । और एक बात- मैंने आपकी जितनी भी कवितायें पढी हैं सबमें एक ही स्वर रहता है, प्रेम और वियोग का । हो सकता है कि आप सिर्फ़ अपने 'एस्थेटिक इमोशंस' के प्रवाह में ही कविता लिखते हैं जैसा कि बहुत से कवि करते हैं पर क्या कवि को बाहरी दुनिया की समस्यायें नहीं दिखतीं? या कवि का निजी विषाद इतना प्रबल है कि उसे कवियों की सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी से कोई सरोकार नहीं । आप क्या अपनी अद्भुत काव्य प्रतिभा सिर्फ़ प्रेम वियोग का गान करते ही, चुका देना चहते हैं। मुझे आपसे शिकायत नहीं है, पर मैं सभी कवियों से यह आग्रह करना चाहता हूँ कि एक कवि की सामजिक जिम्मेदारी निभाने का भी प्रयत्न किया जाय मैं जानता हूँ य छोटा मुँह बड़ी बात है, पर शायद कुछ कद तक सच है। मैंनें यह सारी बातें एक मित्रवत सुझाव की तरह कहीं हैं, और मैंने आपकी सारी कवितायें भी नहीं पढ़ीं, सिर्फ़ वो पढ़ी हैं जो हिन्द युग्म पर दिखीं। फ़िर भी यदि आपको यह मेरा बड़बोलापन लगे तो क्षमाप्रार्थी हूँ।
*उपर्युक्त टिपपणी मैंने आपकी पिछली दो कवितायें पढ़ने के बाद की है।
*उपर्युक्त टिपपणी मैंने आपकी पिछली दो कवितायें पढ़ने के बाद की है।
bahut hi achchhi rachna hai.
aapki peechli rachna ki tarah yah bhi dil to chhuti hai.
"ये मेरी आँखों की रात भर की कमाई है।"
bahot sundar kalpana hai. Intajar acchi tarah wyakt kiya hai.
manish G bahut khub
G SUKRIYA.AGE BHI APKA SHYOG APEKSHIT HAI.
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