क्षणिकायें स्वयं में सम्पूर्ण विधा हैं| एक ही विषय को विभिन्न पहलू से सोचने और लिखने का यत्न है प्रस्तुत क्षणिकायें, एक संयुक्त प्रयास प्रस्तुत है|
*** अनुपमा एवं राजीव
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चाँद-1
चौथ ही रात का अंधेरा
उसपर मेरा चाँद सुनहरा
ताकें राह सारी रैना
बिन पलकें मुंदें मेरे नैना
*** अनुपमा
चाँद-2
हर बरस निकलता रहा
पसारे मीलों का घेरा
सूखा बर्गद का चबूतरा
हो गया अनायास ही सवेरा
*** अनुपमा
चाँद-3
छाया है धुंध घनेरा
फिर भी फैला चक्क उजेरा
चातक का मरकर व्रत बिखरा
जल पात्र थाल से छितरा
*** अनुपमा
चाँद-4
ना चाँद निकला,ना खुला फाटक का किवारा
और चिता मैं जाकर भस्म हुई मेरी निद्रा
चाँदनी के बिन क्या तेरी बिसात,तू है अधूरा
तभी तो भटकता है हर रात करने स्वंय को पूरा!!!
*** अनुपमा
१२.०१.२००७
चाँद -5
मेरा चाँद
बिन्दी लगाता है
चोटी बनाता है
सीने से लग कर गुलाब हो जाता है
ज़ुल्फ बिखरा कर सावन हो जाता है
नाराज़ हो कर अमावस हो जाता है
मेरा चाँद मुस्कुराता है, सुबह हो जाती है
इसीलिये अंबर को मुझसे ही आग है
उसके चाँद में दाग है..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -6
मेरी आँखों में यूं ही बैठे रहो चाँद
तुम जो जाते हो
अमावस हो जाता है.
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -7
मुस्कुराओ चाँद
तुम्हारे चेहरे पर गुस्सा भला नहीं लगता
शरद की पूनम का चाँद अमृत बरसाता है
अंगारे नहीं उगलता...
बिलकुल खामोश हो कर मेरी आँखों में देखो
डूब जाओगे, शीतल हो जाओगे...
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -8
चंद पत्थर के टुकडे दिखा कर
चाँद के पत्थर होनें का दावा करते हो
झूठे हो तुम
मैनें चाँद के सीनें में सिर रख कर धडकनें सुनी हैं
और बाहों में आ कर तो चाँद मोम हो जाता है...
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -9
मेरा चाँद
आधा नहीं होता, अधूरा नहीं होता
पूनम का चाँद था मेरी हथेली पर
बढ कर दिल में समा गया..
और बढ कर दुनिया हो गया मेरी...
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -10
चाँदनी की चिन्गी
तुम्हारे जाते ही कलेजा सुलगा देती है
तुम होते हो तो आग होती है
लेकिन जलन नहीं होती..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -11
मेरी ज़िन्दगी से जाने का तुम्हारा फैसला चाँद
मुझे भटका न दे
कि रास्ता पार करना है
तो रात चाँदनी रात हो..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -12
सूरज में इतनी तपिश कहाँ
जितना मेरा चाँद जलता है
जब भी बाँहों में भर कर
उसके होठों पर अंगारे रखे हैं मैनें..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -13
चाँद तुम हो
तो भोर है
नहीं रहोगे
रात हो जायेगी..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -14
न जाओ अभी चाँद
कुछ देर और बैठे रहो मेरे करीब
वक्त रुक जाता है
जिन्दगी चल पडती है..
*** राजीव रंजन प्रसाद
चाँद -15
जब तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा नहीं रहोगे चाँद
मैं आसमा से जला करूंगा
कि उसका चाँद शाम ढले
दिन और दुनिया से नज़रें चुरा कर
निकल ही आता है..
मेरी तो दिन और दुनियाँ में अंधेरा हो जायेगा...
*** राजीव रंजन प्रसाद
१९.१०.२०००
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
भारतीय प्रेम प्रसंगों में चाँद का बहुत उल्लेख मिलता है। बहुतेरे कवियों ने इस चाँद की तुलना अनगिनत तरीके से की है। मैं भी कवि हूँ, चाँद का जिक्र कहीं ना कहीं कर ही देता हूँ। मगर अनुपमा जी और राजीव जी की चाँद पर लिखीं क्षणिकाएँ लाजबाब हैं। विशेषरूपेण मुझे निम्न क्षणिका पसंद आयी-
"ना चाँद निकला,ना खुला फाटक का किवारा
और चिता मैं जाकर भस्म हुई मेरी निद्रा
चाँदनी के बिन क्या तेरी बिसात,तू है अधूरा
तभी तो भटकता है हर रात करने स्वंय को पूरा!!!"
बहुत ही सुन्दर
अद्भुत क्षणिकायें,अत्यन्त सुन्दर भाव
आप कविद्वय के "चाँद" का अनुपम सौन्दर्य अभिभूत करता है|
आप दोनों का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ|
बधाई
अत्यंत सुंदर छनिकाएँ ।
राजीव जी के फ्न से तो मैं पहले से हीं परिचित था और आज एक नए रचनाकार की कविताओं का रसास्वादन करने का मौका मिला ,तो यह सोने पे सुहागा के मानिन्द प्रतीत होने लगा ।
एक हीं विषय के १५ रूप वो भी खुद में संपूर्ण ,आसान कार्य नहीं है । इस कार्य को आप दोनों ने भलीभांति संपादित किया है।
मेरी बधाई स्वीकारें।
अनुपमा जी और राजीव जी,
आप दोनों की ही क्षणिकाएँ बहुत ही सुन्दर हैं।
बधाई!!!
सभी बहुत सुंदर लगी...
अमावास से पूर्णिमा तक का आसमान महसूस किया...
खास में भी खास...
"चंद पत्थर के टुकडे दिखा कर
चाँद के पत्थर होनें का दावा करते हो
झूठे हो तुम
मैनें चाँद के सीनें में सिर रख कर धडकनें सुनी हैं
और बाहों में आ कर तो चाँद मोम हो जाता है..."
Anupama aur Rajivji ki kshanikayen padhkar gane ki yaad aayi," Chand jane kahan kho gaya.."
Priya ko hamesha chand ki upma dekar kavi nawajte hain, Chand-Priya aur Kavi-Chand ye relation kayi pidhiyonse chala aa raha hai.
Bahot khub !
Rajiv bhai
Apki kavitaon ka javab nahi, anupama ji ki bhi kavitayen thin.
चाँद-1 … चौथ ही रात-चौथ की रात
चाँद-2 बर्गद-बरगद
चाँद -5
मेरा चाँद
बिन्दी लगाता है
चोटी बनाता है
सीने से लग कर गुलाब हो जाता है
ज़ुल्फ बिखरा कर सावन हो जाता है
नाराज़ हो कर अमावस हो जाता है
मेरा चाँद मुस्कुराता है, सुबह हो जाती है
इसीलिये अंबर को मुझसे ही आग है
उसके चाँद में दाग है..
सबसे अच्छी लगी, बहुत ही सुन्दर
चाँद -13
चाँद तुम हो
तो भोर है
नहीं रहोगे
रात हो जायेगी..
राजीव और अनुपमा,क्षणिकायें प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद यह हिन्द युग्म के लिये एक अच्छी बात है कि कविता की अन्य विधाओं को भी स्थान मिल रहा है बहुत अच्छा लिखा है , साधुवाद
मैं राजीवजी की बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस काबिल समझा की अपनी रचना के साथ मेरी रचना पिरोयें.
मैं हमेशा आपकी कवितओं का रसपान करने के इन्तज़ार में रहती हूँ.जिस दिन मेरे स्क्रेप पर आपकी कविता नहीं होती वो दिन बडा ही नीरस लगता है.मुझे जो सबसे ज़्यदा पसन्द है वो चाँद है-
मेरी आँखों में यूं ही बैठे रहो चाँद
तुम जो जाते हो
अमावस हो जाता है.
मैं राजीवजी की बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस काबिल समझा की अपनी रचना के साथ मेरी रचना पिरोयें.
मैं हमेशा आपकी कवितओं का रसपान करने के इन्तज़ार में रहती हूँ.जिस दिन मेरे स्क्रेप पर आपकी कविता नहीं होती वो दिन बडा ही नीरस लगता है.मुझे जो सबसे ज़्यदा पसन्द है वो चाँद है-
मेरी आँखों में यूं ही बैठे रहो चाँद
तुम जो जाते हो
अमावस हो जाता है.
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