फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, January 05, 2007

आज रात भर


आज रात भर सो नहीं पाया हूँ मैं,
सारी रात,
एक सपना,
आँखों में चुभता रहा।
ख़यालों के दरवाजे तो बंद थे
पर खिड़की से,
पूरी रात
आधा चाँद झाँकता रहा।
मुझे मालूम था, मेरे अख़्तियार में नहीं है
मुहब्बत तेरी,
फिर भी
उम्मीदों के गुलाबी बुटे
स्याह फ़लक पे टाँकता रहा।
लगता था कि तुम्हारी यादों
की सर्द हवाएँ
जान ले लेंगी मेरी,
क्या करता?
सारी रात दिल जला के तापता रहा।
दिन के उजाले नींदों का बोझ
लेकर आयेंगे,
यही उम्मीद लेकर मैं
निकल-निकल पूरब को झाँकता रहा।
आज रात भर॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

कवि- मनीष वंदेमातरम्

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

आपका ब्लाग अच्छा है... चाहें तो मेरा ब्लाग देख सकते हैं : http://mohalla.blogspot.com/

Anonymous का कहना है कि -

मनीष जी मन के भावों को बड़ी सुन्दरता के साथ पिरोया है आपने.

@ अविनाश जी,

बहुत-बहुत शुक्रिया.

Anonymous का कहना है कि -

मनीष जी मन के भावों को बड़ी सुन्दरता के साथ पिरोया है आपने.

@ अविनाश जी,

बहुत-बहुत शुक्रिया.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

कविता एक स्वांस मे पढने योग्य है.

Anonymous का कहना है कि -

वाह वाह सुंदर और सरल कविता।

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत ही मंजे हुए कवि की बहुत ही मंजी हुई कविता है यह। बहुत ही खुबसूरत ।

दिनेश नयाल (जिन्न) का कहना है कि -

बहुत अच्छे

Unknown का कहना है कि -

christian louboutin
cheap jordan shoes
nike store uk
new york knicks jersey
hermes belt
ray ban sunglasses
new york jets jerseys
rolex replica
coach outlet
ugg boots
20170429alice0589

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)