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Sunday, December 24, 2006

सोचो उसने क्या पाया, क्या खोया है


लोग कहते हैं कि मैने सबकुछ खोया है
चाहा जिसे जान से ज्यादा हुआ वो पराया है
हम तो देख लेते है जी भर के फिर भी उसे
मगर उसने तो खुद को बंधन में पिरोया है

सोचो उसने क्या पाया, क्या खोया है

लोग कहते हैं मुर्ख मुझे, वो मेरा साया है
हम कहते हैं उसे अपना वो कहती पराया है
हम तो बांट लेते हैं जज्बात फिर भी यारों में
मगर उसने तो प्यार अपना दिल में दफनाया है

सोचो उसने क्या पाया, क्या खोया है

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4 कविताप्रेमियों का कहना है :

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

बहुत अच्‍छा ल‍िखा है।

bhuvnesh sharma का कहना है कि -

अरे सरकार चुनावी मौसम में इतने भावुक मत होईये
कविता अच्छी है

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

A nice poen Giriraj jee..

Anonymous का कहना है कि -

ढेरों बधाइयाँ।
आपकी कविता शायरी से प्रेरित लगती है, परन्तु भावनाओं की इतनी अच्छी समझ...... कुछ लिखने को शब्द कम पङ रहे हैं।
अति उत्तम।
शुभकामनाएं।

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