स्मृतियाँ कहती हम आए आए
मैं कहती रुक जाना रे तुम
आयेंगी वह हसती गाती
चेहरे से खुशियाँ टपकाती
जबरन सुख की चादर ओढे
खुदको जैसे हो भरमाती
ले आयेंगी रहस्य लपेटे
चुभती सी खुशियों के पीछे
उस चुभन को अनदेखा कर
झुठलाकर हँस पाऊँ?
मैं कहती रुक जाना रे तुम
डरती मैं कहीं उनसे मिलकर
भावुक ना हो जाँऊ
लगता मैं शायद ही उनकी
विवस्त्रता सह पाँऊ
आ जाये गर आग लपेटे
जाने कैसा सत्य पचाके
क्या मैं भी उनसा ही विदारक
सत्य पचा पाँऊ?
मैं कहती रुक जाना रे तुम
-- मनिषा साधू
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ख़ूब
आयेंगी वह हसती गाती
चेहरे से खुशियाँ टपकाती
जबरन सुख की चादर ओढे
खुदको जैसे हो भरमाती
बहुत खुब. भावों का सुन्दर चित्रण.
अति सुन्दर।
जितना अच्छी भावनाओं की समझ, उतना ही सुन्दर शब्द संयोजन।
शुभकामनाएं।
good colection of words....
looking foreward for ur next poem.
मनीषा जी आपकी स्मृतियाँ तो काफी अच्छी हैं.
आपकी smritiyon को bantkar acchjha लगा.
आलोक सिंह "साहिल"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)