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Sunday, November 26, 2006

खुद से लड़ना नहीं आता


(अपने एक ख़ास मित्र "श्री इंदूसिंह साँखला" के मनोभावों को शब्दों में पिरोने का प्रयास किया है)

अजब कशमकश में हूँ कुछ समझ में नहीं आता
मेरे यार समझते है मैं समझना नहीं चाहता

जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई
खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता

चाहत को मेरी उसने मज़ाक बनाकर रख दिया
फिर भी बेवफा को दिल से मिटाना नहीं आता

घुट-घुट कर जी रहा हूँ हर पल ज़िन्दगी का
मर भी जाएँ प्यार में लेकिन बहाना नहीं आता

सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से
कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता

बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से
तेरी तरह "कविराज" लेकिन लिखना नहीं आता

कवि - गिरिराज जोशी "कविराज"

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Jitendra Chaudhary का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता है, अति सुन्दर।

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छी कविता लिखी है.
आपको जितूभाई की टिप्पणी भी मिल गई. जो आम तौर पर दुर्लभ होती है. नसिबवले हो.

bhuvnesh sharma का कहना है कि -

vaah kaviraaj acchi pantiyan hain
aur sheershak to bahut hee acchaa

Anonymous का कहना है कि -

bahut hi sundar sabdo mey piroyi gayi hay ye kavita

Anonymous का कहना है कि -

वाह कविराज बहुत सुन्दर कविता, पहली चार पंक्तियाँ तो मानो मेरे ही लिये लिखी है आपने।

Tushar Joshi का कहना है कि -

बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से
तेरी तरह "कविराज" लेकिन लिखना नहीं आता

वाह कविराज बहोत खूब! कविता का भाव बहुत ही सुंदर है।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

गिरि जी, तुकान्त लेखन के लिए कुछ टिप्स-
"सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से
कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता"

जैसाकि आप देख रहे होंगे कि उपर्युक्त शेर की दूसरी पंक्ति में मात्रायें बढ़ गयी हैं।
इस स्थिति आप समानार्थक शब्दों (कम मात्रा वाली) का प्रयोग कर सकते हैं।
मान लीजिए यदि आप लिखते-
"सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से
कमज़ोर नहीं हूँ पर खुद से लड़ना नहीं आता"

यदि ठीक लगे तो एक बार विचार कीजिएगा। कविता आपकी अपनी पूँजी है।

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्‍छा लिखा है, यह कविता दिल को छूती हुई है। यह कविता प्रत्‍येक व्‍यक्ति के मनोभव को छूती है। जो मै लिखना चा‍हता था पर लिख न सका।

Udan Tashtari का कहना है कि -

जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई
खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता


--सुंदर प्रस्तुति, बधाई!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सुन्दर रचना है..

***राजीव रंजन प्रसाद
२६.११.२००६

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

@ जीतेन्द्रजी

दुर्लभ टिप्पणी प्रदान करने के लिए शुक्रिया भाई (जैसा कि संजयजी कह रहे है) -
"आपको जितूभाई की टिप्पणी भी मिल गई. जो आम तौर पर दुर्लभ होती है. नसिबवले हो"

@ संजयजी

धन्यवाद!!!

@ राजीवजी

राजीवजी धन्यवाद!!! आपका शायराना अंदाज अच्छा लगा।

@ भूवनेशजी

धन्यवाद!!! हिन्दी को रोमन में ना छापें सरकार, कम से कम मुझे तो आपसे ऐसी अपेक्षा नहीं है।

@ Mr. Anonymous

धन्यवाद!!!

@ सागरजी

धन्यवाद सागरजी!!! पहली चार पंक्तियाँ ही क्यूँ आप अपना दिल खोल कर तो रखिये हमारे समक्ष, पूरी कविता ही लिख डालेंगे। :)

@ तुषारजी

धन्यवाद तुषारजी!!! अपना मीन-मेख अभियान ज़ारी रखिये, हम सिखने को हमेशा आतुर हैं।

@ शैलेशजी

धन्यवाद!!! आपका "टिप्स" अच्छा लगा, चिट्ठाकारों से जुड़ने का यही तो फ़ायदा है कि मुझे वाहवाही और मार्गदर्शन दोनों एक साथ मिल रहे हैं, मुझ जैसे कवि को इनके अलावा और क्या चाहिए?

@ प्रमेन्द्रजी

धन्यवाद!!! अच्छा लगा यह जानकर कि "आपके दिल की बात हमने लिख दी" :)

@ गुरूदेवजी

धन्यवाद!!!

"सुंदर प्रस्तुति" - मेरे लिए आपके की-बोर्ड से निकले ये दोनों शब्द अमुल्य है।

@ राजीव रंजनजी

धन्यवाद!!!

Anonymous का कहना है कि -

Fir nirasha, prem nirasha ka paryay na ban jaye kahin. Apki bhavnaon ko ahat karne ka koi irada nahi hai, bas khojta rahta hun ek aisi prem kavita ek aisa premi kavi jo nirasha ke gahan andheron me bhi asha ki rashmiyaan been sake... Khed hai par kavita me SUNDARTA mujhe mere anusar kahin mili nahi...

Anonymous का कहना है कि -

कविराज जी भाव पूर्ण सुन्दर कविता के लिये आप बधाई के पात्र है. मै तो आपका पक्का प्रशन्सक बन गया हू.

Anonymous का कहना है कि -

pahali pankti man ko chhu jati hai...
ham sabhi bhuktabhogi hai..is aanubhuti ke..

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