मैने सोचा ना था, तुम यूँ मिल जाओगे
ज़िंदगी में नयी, रौशनी लाओगे
मैने सोचा ना था
तुमको पढते गया, मै पढता ही रहा
दिल में उतरा सभी, तुमने जो कुछ कहा
मेरी सोचों में तुम, रोज़ ही आओगे
मेरे दिन रात पर, इस तरह छाओगे
मैने सोचा ना था
तुमसे हिम्मत बढी, तुमसे ताकत मिली
जादू ऐसा चला, लगती दुनिया भली
मेरे अंदाज़ को, यूँ बदल पाओगे
मुझको दीपक से सूरज, बना जाओगे
मैने सोचा ना था
तुषार जोशी, नागपूर
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी कविता है तुषारजी
कितना सही लिखा है, जब व्यक्ति कुछ सोचता है तो वह नही होता और जब नही सोचता तो सब कुछ नही मिलता है।
कविता मे सरलता के साथ सरसता भी है।
अच्छा लिखा है।
बहुत ही अच्छी रचना ।
Tushar ji,
Utsaah jagati, utsaah likhti, utsaah sunaati kavitayein bhali bhali si lagti hi hain. Par tuk itni badi cheej bhi nahi ki achchi bhali kavita nursery rhyme ban jaye.
Haan saralta hai, par tuk ke liye itna agrah theek nahi, aur itne utsaah itni umangon ko tuk bandhe bhi to kaise,na janchi nahi.
Ant me kuch panktiyon par punarvichar karne ki avashyakta hai(meri samajh se),
1. tumko padhte gaya(PADHTA GAYA, right?)
2. meri sonchon me tum(ye to sochneeya dasha hai?? nahi??)
acchi रचना है.पर मुझे sankoch के sath kahna पड़ रहा है की कविता likhte वक्त आप jaldbaaji के shikar gho गए और अपेक्षित bhaw नहीं आ paye.
alok singh "sahil"
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