मौत का सहारा है,
कहीं ऐसा मोड़ आये,
जहां मौत आसानी से गले लग जाये,
मै भी उसका करूं आलिंगन
वह भी मेरी बांहों मे आ जाये।
मैं हूं प्रियतम
वह प्रिये है मेरी
दोनो है एक दूजे में समाऐ,
जब तक श्वांस है मुझमें,
तब तक ही प्रियतम हूं तेरा,
तब तक प्राण है मुझमें,
जब तक तुम न आ जाओ।
तुम ऐसी प्रिये हो,
जो अन्त बन कर आई हो,
अन्त है मेरा तेरे अलिंगन से
पर तेरा आलिंगन ही मुझको प्यारा,
क्योकि तेरे इस आलिगन से
अन्त है मेरे जीवन का।
कवि- प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
अति सुंदर । मौत की सच्ची परिभाषा गढ़ी है।
सुन्दर रचना है. कविता की किसी एक पंक्ति से यदि ईस निराशा के कारण भी स्पष्ट होते तो आनंद बढ जाता.
राजीव रंजन प्रसाद
सुन्दर है।
प्रभाकर जी व रचना जी,
धन्यवाद, प्रेम पर कविता करने का प्रथम प्रयास था और आपकी सराहनात्मक टिप्पणीयों से मुझे बल मिलेगा। आशा है कि आप मेरी कमियों को भी आगे उजागर करगें और बतायेगे ताकि कलम की धार मे पैना पन आये।
राजीव रंजन जी,
धन्यवाद, कारण को मै जल्द ही अपने ब्लाग पर कांपियों के पन्ने के रूप मे व्यक्त करने का प्रयास करूंगा। कुछ बाते होती है जिन्हे व्यक्ति के दिल पर काफी छाप छोड जाती है।
Pramendra Pratap Singh
कविता पढ़ने पर जो विचार मन में उभरे उन्हे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मौत का सहारा है,
कहीं ऐसा मोड़ आये,
जहां मौत आसानी से गले लग जाये,
मै भी उसका करूं आलिंगन
वह भी मेरी बांहों मे आ जाये।
इन शब्दों में आखरी पंक्तियाँ भाव दोहरा रहीं है जिसकी वजह से अर्थ शिथिल होता लगता है। गले लग जाए और बाहों में आए इन बातों से वही एक सा भाव प्रतीत होता है इनका विचार होना चाहिये।
बाद की पंक्तियों में भाव विस्तार से समझाया गया है। कविता में पाठक को अर्थ अचानक मिले तो अधिक आनंद होता है। बहुत समझाया गया तो कविता तीव्रता खोप देती है।
आपकी कविता अच्छी है। मेरी बातों पर विचार करे। शुभकामनाए
तुषार जोशी, नागपुर
तुषार जी,
आपने जो कमियां बताई है मै उन्हे ध्यान रखूंगा ताकि आगे ये कमियां न हो सके चूंकि बहुत जल्दी मे, लिखी गई थी और 'प्रेमाधरित' हाने के कारण यह मेरे लिये नया प्रयास था, इसलिये आशा है आप इसी प्रकार मार्ग दर्शन करते रहेगें। कहने के लिये हिन्दी से स्नातक हूँ किन्तु काफी कुछ सीखना बाकी है, जो आप जैसे अग्रजो से मिलेगा।
तुषार जी,
आपने जो कमियां बताई है मै उन्हे ध्यान रखूंगा ताकि आगे ये कमियां न हो सके चूंकि बहुत जल्दी मे, लिखी गई थी और 'प्रेमाधरित' हाने के कारण यह मेरे लिये नया प्रयास था, इसलिये आशा है आप इसी प्रकार मार्ग दर्शन करते रहेगें। कहने के लिये हिन्दी से स्नातक हूँ किन्तु काफी कुछ सीखना बाकी है, जो आप जैसे अग्रजो से मिलेगा।
धन्यवाद
मै हूं प्रियतम
वह प्रिये है मेरी
दोनो है एक दूजे मे समाऐ,
जब तक श्वांस है मुझमे,
तब तक ही प्रियतम हूं तेरा,
तब तक प्राण है मुझमे,
जब तक तुम न आ जाओं।
तिसरी पंक्ति में आप कहते हैं एक दूजे में समाए और तुरंत आखरी पंक्ति में कहते हैं जब तक तुम न आ जाओ। यहाँ थोडा विरोधाभास प्रतीत होता है। अपनी कविता का हर शब्द जिना चाहिये तब उसे अधिक अर्थपूर्ण किया जा सकता है।
आप तो हिंदी प्रविण है। आपके लिये ज़रा और पठन की देर है और आप जाने माने कवियों में होंगे। मेरी शुभकामनाए आपके साथ है।
तुषार जोशी, नागपुर
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