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Wednesday, November 22, 2006

चला गया


हर चीज़ पास थी मेरे, सिवाय झूठ के
पाने की चाह में, मैं खोता चला गया
मुझको सुनाए गये कुछ ऐसे लतीफ़े
हँसते-२ अपनी पल्कें भिगोता चला गया।।


हर पल खिलाना चाहता था इक गुल गुलाब का
पर बीज थे बबूल के बोता चला गया।।


देखकर चेहरा एक मासूम बच्चे का
हर गुनाह मुझको कबूल होता चला गया।।


हर शरीफ़ बैठा है यहाँ शराफ़त के नकाब में
जी रहे थे सब एक अर्से से ख़्वाब में,
ख़्वाबों की ईंटें, मैं भी लगाता चला गया
एक इमारत ख़्वाब की बनाता चला गया।।


हमेशा ही दूसरों से जुड़ने की चाह में
अपने से खुद ही दूर होता चला गया।
था पूरा होने को पर था रेत का महल
एक लहर में सबकुछ फ़ना होता चला गया।।


मुझको॰॰॰
इंसान बनाया खुदा ने मिट्टी को मोड़कर
हर चीज़ पूजता हैं क्यों तू उसको छोड़कर,
संगम की घाट मैला होता चला गया
थी पाप की गठरी, डूबोता चला गया।।

अनिल कुमार त्रिवेदी

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

हर चीज़ पास थी मेरे, सिवाय झूठ के
पाने की चाह में, मैं खोता चला गया ।

गजब की रचना । यथार्थता को दर्शाती है ।

bhuvnesh sharma का कहना है कि -

शैलेशजी बढ़िया रचना के लिए बधाई

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

शैलेश जी
रचना स्तरीय है. मेरे विचर में "गुल" व "गुलाब" पर्याय हैं. अतः निम्न पंक्तियों में एक साथ "गुल" व "गुलाब" का प्रयोग क्या ठीक है?

"हर पल खिलाना चाहता था इक गुल गुलाब का
पर बीज थे बबूल के बोता चला गया"

***राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

भुवनेश जी एवम् राजीव जैसा कि आप जानते हैं कि 'मेरे कवि मित्र' पर मैं मात्र अपने कवि मित्रों की रचनायें प्रकाशित करता हूँ अपनी नहीं। (मेरी खुद की कविताएँ आप http://merikavitayen.blogspot.com/ पर पढ़ सकते हैं ।)। हालाँकि मैं जिस भी कवि मित्र की कविता प्रकाशित करता हूँ उसका नाम भी नीचे अवश्य लिख देता हूँ, फिर चूँकि उन्हें मैं ही पोस्ट करता हूँ इसलिए लोग भ्रमित हो जाते हैं। आगे से कृपया ध्यान रखें।

Shubhashish Pandey का कहना है कि -

bas ek shabd adviteey

Anonymous का कहना है कि -

अनिल जी मजा ही आ गया
गर्दा गर्दा कर दिया आपने तो.
शैलेश ji आप भी बधाई के पात्र हैं.
आलोक सिंह "साहिल"

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