दिल में बस जाता है जब कोई इक बार
सूनी लगे जिस बिन दुनियाँ यह दरबार
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
ढ़ुंढ़ती है ये नज़रें हर पल जिसे
याद करता है दिल हर पल जिसे
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
पराया होकर भी गर कोई लगता है अपना
बन जाता है गर कोई जीवन का सपना
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविराज, सही उवाच रहे हो। वाक़ई बहुत मुश्किल है भूल पाना...
मेरा भी कुछ यही ख्याल है।
भूलने की कोशिश काहे की जा रही है?
बहोत अच्छे गिरिराज,
इन पक्तियों में तिसरा मिसरा भी होता तो और मज़ा आता। जैसे:
दिल में बस जाता है जब कोई इक बार
सूनी लगे जिस बिन दुनियाँ यह दरबार
दिल ज़िंदाँ है अभी बेजाँ तो नही
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
ढ़ुंढ़ती है ये नज़रें हर पल जिसे
याद करता है दिल हर पल जिसे
दिल की बातें यूँ नादाँ ही सही
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
पराया होकर भी गर कोई लगता है अपना
बन जाता है गर कोई जीवन का सपना
दिल अब रह सकता अनजान तो नही
भूला पाना उसे यूँ आसां तो नहीं॰॰॰
@ प्रतिकजी और श्रीशजी
धन्यवाद!
@ अनुप शुक्लाजी
आपको किसने कहा कि भूलने की कोशिश की जा रही है। "भूल पाना आसां नहीं है" कहकर हम तो खुद को "सेफ" कर रहे थे कि कल को कोई यह ना पूछे कि अब तक भूलाये काहे नहीं अपने अतित को? समझे का? :)
@ तुषार जोशीजी
धन्यवाद!!! आपने तो मेरी पंक्तियों को कवितामय कर दिया।
मैने तो मन के भावों को पंक्तियों का रूप दिया था, कवितामय तो इसे आपने बनाया है।
यूँही बनाए रखना अपना साया मुझ पर
अभी बहुत दूर तक जाना है मुझको ॰॰॰
आसान तो नहीं पर कितना मुश्किल है यह भी बता दिजीये.
किसे दिल में बसाये घूम रहे हो कविराज
अच्छा लगा इस रचना को पढ़कर. बधाई, कविराज. लिखते रहें.
भूल पाना आसान नही होता पर यरद रखना बडा कठिन होता है।
याद करना और भूल जाना वो तो कहेने की बातें है ...जो दिल मे ही हो उसे याद क्या करना और भूल क्या जाना..?
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