किससे करें शिकवा, किससे शिकायत करें
ऐ दोस्त तेरी यादों को कैसे सजदा करें
उठते हुए भंवर में फंसी हुई है कश्ती
कब तक करें इंतजार कैसे किनारा करें
साथ मिलकर हमनें लिखे जो गीत कभी
किनसे छुपाया करें, कहाँ गुनगुनाया करें
पलकों में छुपी है भीगी-भीगी पंक्तियाँ
कहाँ बाँटे दर्द यह कहाँ मुस्कुराया करें
प्रश्न बहुत उठते है जहन में मेरे
कैसे बहलाए इनको, कैसे सुलझाया करें
किससे करें शिकवा, किससे शिकायत करें
ऐ दोस्त तेरी यादों को कैसे सजदा करें
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
इन्तजार कराया आपने,
देकर रविवार का आस।
कविता आई सोमवार को,
बढिया रहा आपका प्रयास।।
वाह कविराज बहुत अच्छी रचना है
बहुत बढिया
उत्तम, अत्युत्तम... कविराज, अगले रविवार की प्रतीक्षा रहेगी।
कविराज,
सम्भवतः पहली बार आपने तुकान्त पोस्ट किया है।
इसमें संदेह नहीं कि आपके पर कविता के नई ऊँचाईयों को छू रहे हैं।
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