प्रिय,
न जाने क्यूँ, आज
तुम्हारी स्मृति मुझे बेकल किये जा रही है
याद आ रही है
वो अमराईयों की घनी छाँव
जिसमें मैं बेसुध लेटा था
और तुम
मेरे आर-पार अपनी बाँहों से
इन्द्रधनुष बनाती हुई, मेरे ऊपर झुकी थी
नीले चीर में लिपटी तुम
ऐसा लगता था जैसे
सारा आसमान खींचकर बदन पर लपेट लिया हो
आज बहुत याद आता है वो पल
जब प्रेम के अतिरेक में आकर
मेरे अधरों ने तुम्हारे कपोलों को चूमा था
और फिर
शर्माकर तुम्हारा, मेरे सीने से लिपट जाना
वो दो धड़कनों का महासंगम
वो दो साँसों की सरगम
जो आज भी इन गुँजती स्वरलहरियों में ज़िंदा है
तुम्हारी याद में तिल-तिल के मरता ये दिल
रो-रो के ये ही याद करता है कि
जब रखा तुमने सर अपना
सीने पे मेरे
उस वक्त
ये दम ही निकल जाता तो कितना अच्छा था!
न जाने क्यूँ, आज
तुम्हारी स्मृति मुझे बेकल किये जा रही है
याद आ रही है
वो अमराईयों की घनी छाँव
जिसमें मैं बेसुध लेटा था
और तुम
मेरे आर-पार अपनी बाँहों से
इन्द्रधनुष बनाती हुई, मेरे ऊपर झुकी थी
नीले चीर में लिपटी तुम
ऐसा लगता था जैसे
सारा आसमान खींचकर बदन पर लपेट लिया हो
आज बहुत याद आता है वो पल
जब प्रेम के अतिरेक में आकर
मेरे अधरों ने तुम्हारे कपोलों को चूमा था
और फिर
शर्माकर तुम्हारा, मेरे सीने से लिपट जाना
वो दो धड़कनों का महासंगम
वो दो साँसों की सरगम
जो आज भी इन गुँजती स्वरलहरियों में ज़िंदा है
तुम्हारी याद में तिल-तिल के मरता ये दिल
रो-रो के ये ही याद करता है कि
जब रखा तुमने सर अपना
सीने पे मेरे
उस वक्त
ये दम ही निकल जाता तो कितना अच्छा था!
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब ...... मनीष जी
vaah vaah
bahut badhiya
नीले चीर में लिपटी तुम
ऐसा लगता था जैसे
सारा आसमान खींचकर बदन पर लपेट लिया हो
यादों को शब्दों का आकार दे रहें हो
भले कोरी कल्पना का
चित्रण कर रहे हों
अभिव्यक्ति लाजवाब है और
उसका चित्रण अदभूद
हर आगन्तुक प्रेम-रस में डुबेगा
निश्चय ही होके मंत्रमुग्ध
शुभकामनाएँ!!!
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