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Sunday, October 15, 2006

लौ तुम्हारी थी


तन मन पर छा जाने वाली, लौ तुम्हारी थी
मेरी तमस में जलने वाली, लौ तुम्हारी थी

दुनिया भर से बेपर्वा मैं, डगमगाता था
उठकर राह पे लानेवाली, भौं तुम्हारी थीं
मेरी तमस में जलने वाली, लौ तुम्हारी थी

तुमसे मिलकर काम बुरा मैं, कोई कर न सका
रह रह याद आने वाली, सौं तुम्हारी थीं
मेरी तमस में जलने वाली, लौ तुम्हारी थी

दसवीं चोट से काम बन गया, बन बैठा शहज़ादा
लेकिन दसवीं ही मेरी थी, नौं तुम्हारी थीं
मेरी तमस में जलने वाली, लौ तुम्हारी थी


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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

"लौ तुम्हारी थी"
हाँ तुम्हारी थी.

-अच्छी रचना ।

Anonymous का कहना है कि -

bhut bhut ache bhav.......
behtreen rachnaa hai....
hemjyotsana.wordpress.com

Anonymous का कहना है कि -

bahut hi acchhi prastuti.
alok singh "sahil"

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