कविता का सत्य के निकट है। सागर भाई मै तो गावों से सम्वन्ध रखता हूं। हम कितनी है आगे चले गये है किन्तु हमारे समाज मे ये कुरितियां आज भी विद्यमान है। गांवो मे जाने पर देखता हू कि आज कल भी निचली जाति के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। किन्तु अब सुधार हो रहा है किन्तु अभी समाप्त नही हुआ है। गावो मे पंडित जी लोग किसी के घर मे खाना नही खाते है चाहे मेरे घर का ही क्यो न हो किन्तु राम खेलवन के समोसे के आगे रह नही पाते है। 4 इंच जीभ निकल ही आती है।
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या सही बात लिखी है, दोगले लोगों की दोगली दुनिया के बारे में।
कविराज यह बातें अब पुरानी हुई, जब किसी के छू जाने से गंगाजल के छींटॊ से पवित्र किया जाता था।
वैसे कविता का भाव सुन्दर है।
कविता का सत्य के निकट है।
सागर भाई मै तो गावों से सम्वन्ध रखता हूं। हम कितनी है आगे चले गये है किन्तु हमारे समाज मे ये कुरितियां आज भी विद्यमान है। गांवो मे जाने पर देखता हू कि आज कल भी निचली जाति के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। किन्तु अब सुधार हो रहा है किन्तु अभी समाप्त नही हुआ है।
गावो मे पंडित जी लोग किसी के घर मे खाना नही खाते है चाहे मेरे घर का ही क्यो न हो किन्तु राम खेलवन के समोसे के आगे रह नही पाते है। 4 इंच
जीभ निकल ही आती है।
सच में यह कटु-सत्य है। जोशी जी आप चाहें तो इस कविता को और विस्तार दे सकते हैं क्योंकि छुआछूत ने अनेकों विसंगतियाँ पैदा की है।
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