॰॰॰॰ प्रीतम के लिए ॰॰॰॰
खूबसूरत
तेरी आंखें सबसे
मनमोहक
आपकी आँखें
पतझड़ में खिला
जैसे सुमन
तेरा चेहरा
खूबसूरत जैसे
मेरा हाइकु
आपको देखा
हलक से निकला
मेरा हाइकु
मेरी बगीया
आओ फिर महके
तुम प्रितम
यकीं है तभी
करता इंतजार
तुम आओगे
॰॰॰॰ हे आरक्षण ॰॰॰॰
पेट में कैंची
भूल गये साहब
हे आरक्षण
दो व दो पांच
सिखाते माड़साब
हे आरक्षण
वोट बैंक को
ललचाते नेताजी
लो आरक्षण
सुनाते जज
आरक्षक को फांसी
हे आरक्षण
चोर डकेत
बन गए सांसद
हे आरक्षण
॰॰॰॰ देश की दशा ॰॰॰॰
गेंद व बल्ला
सौ करोड़ मिलके
करते हल्ला
खा रहे देश
मिलकर सांसद
जनता मौन
बनेगी दिल्ली
गरीबो की कीमत
मानो पेरिस
आस में बैठा
निकलेगा सूरज
वो राजस्थानी
(राजस्थान में बाढ़ का आलम है।)
रात अंधेरी
बिकने को तैयार
पैसों से प्यार
॰॰॰॰ चलते-चलते यूंही ॰॰॰॰
जरा सी छींक
चार दिन की छुट्टी
बहाना रेडी
सब उदास
हो गया है जब से
कुत्ता बिमार
पढ़ा इसे तो
निकला ज़िगर से
मेरा हाइकु
अब समझा
मुश्किल है कैसे
लिखना हाइकु
मैं हीरा तो हूँ
मगर जमीं तले
तराशे कौन
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
गिरिराज भाई,
आपके लिये और आपके लिखे हाईकु के लिये कुछ लिखा है हमने यहाँ:
http://www.akshargram.com/paricharcha/viewtopic.php?pid=4694#p4694
जरा टहल आईये वहाँ तक.
:)
हमें खाश तौर पर यह पसन्द आई-
रात अंधेरी
बिकने को तैयार
पैसों से प्यार
गेंद व बल्ला
सौ करोड़ मिलके
करते हल्ला
विजय भाई धन्यवाद!
अब जरा आप भी वहाँ तक टहल आईये।
-------------
संजय बेंगाणी जी धन्यवाद!
हमने http://www.akshargram.com/paricharcha/viewtopic.php?pid=4694#p4694 पर और भी कुछ ॰॰॰॰ अवलोकन करें। आशा है आपको पसन्द आयेगी।
वाह काविराज ये हाइकु तो कमाल लिखा है
बोले तो मजा आ गया।
हर विषय को कितनी आसानी से हाइकु में पिरो देते हैं!
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