मैं एक बीज हूँ खोया सा
बेखबर गर्भ में सोया सा।
बरसातों की देर है बस
फिर अंकुरों का रोयाँ सा।
मैं पवन वेग में कण-कण सी
मैं व्रुक्ष-पात में बूँद-बूँद।
मैं गीले नभ के छोर छिपी
हिमकण की आँखें मूँद-मूँद।
मैं श्यामल नभ की छाया हूँ
मैं उस असीम की काया हूँ।
जो सप्तरंग में सिमट गयी
वह इंद्रधनुष की माया हूँ ।
किरणों की उष्म दहक हूँ मैं
माटी से लिपटी महक हूँ मैं ।
हाथ में विहग के हाथ दिये
आकाश जगाती चहक हूँ मैं ।
बेखबर गर्भ में सोया सा।
बरसातों की देर है बस
फिर अंकुरों का रोयाँ सा।
मैं पवन वेग में कण-कण सी
मैं व्रुक्ष-पात में बूँद-बूँद।
मैं गीले नभ के छोर छिपी
हिमकण की आँखें मूँद-मूँद।
मैं श्यामल नभ की छाया हूँ
मैं उस असीम की काया हूँ।
जो सप्तरंग में सिमट गयी
वह इंद्रधनुष की माया हूँ ।
किरणों की उष्म दहक हूँ मैं
माटी से लिपटी महक हूँ मैं ।
हाथ में विहग के हाथ दिये
आकाश जगाती चहक हूँ मैं ।
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
सत्य सुन्दर शब्दों में....
कब बरसेंगे मेघ...कब अंकुरित होंगे ??
तुषारजी शुक्रिया!!!
मनिषा जी कविताएँ इसी तरह प्रस्तुत कर हमें रसपान करवाते रहियेगा।
कविता बहुत अच्छी लगी, और भी पंक्तिया हो तो उन्हें भी जोड़ने के बाद हमें सूचित अवश्य कीजियेगा।
- गिरिराज जोशी "कविराज"
Ripudaman Pachauri said...
सुन्दर|
कविता अच्छी लगी|
मैं एक बीज हूँ खोया सा
बेखबर गर्भ में सोया सा।
बरसातों की देर है बस
फिर अंकुरों का रोयाँ सा।
क्या खूब समन्वय है मनीषा जी भावों का, अच्छा लगा
आलोक सिंह "साहिल"
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