हमसे था जो, रहा नहीं वो, काम शायद तुमको
भूल गए जी, भूल गए जी, भूल गए तुम हमको
भूल गए तुम, वो बरसातें, प्यार की मिठी बातें
हम दोनो ने, साथ गुज़ारे, क्या दिन थे क्या रातें
टिक ना पाई, घडी; ना आया, रास मौसम हमको
भूल गए जी, भूल गए जी, भूल गए तुम हमको
फैल गया, ऐसा अंधियारा, रौशनी मुरझाई
बुझ गया दिल, हुआ जो हासिल, दिल का ये गम हमको
भूल गए जी, भूल गए जी, भूल गए तुम हमको
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
sunder hai, bhool gaye ji bhool gaye saral gane gungunane layak lekhak ko badhai
Tushar ji,
your poem is very sweet. i like it very much.Keep writting like this.
tushar ji.......... aapki "BHUL GAYE JI" pad kar SCHOOL ki yaaden taja ho gayi
kavi ne bahut hi saral shabdo mai aaj ke dour mai logon ki prwitiyon ko pash kiya hai..jo un logo per kutharaghat hai ja waqt aane per badal jate hain....
RAVINDER TOMKORIA..............KAVI NE BAHUT HI SARAL BHASHA MAI UN LOGON PER COMMENT KIYA HAI, JO WAQT AANE PER BADAL JATE HAIN..YEH UNKE DWARA EK BAHUT HI SRAHNIYE PRYAS HAI..JO HAME LOGON KI VICHARDHARA KO SAMJHANE KO PRARIT KARTA HAIN...
छोड़ गए तुम, और तनहाई, पास हमारे आई
फैल गया, ऐसा अंधियारा, रौशनी मुरझाई
बुझ गया दिल, हुआ जो हासिल, दिल का ये गम हमको
भूल गए जी, भूल गए जी, भूल गए तुम हमको
बहुत खूब तुषार जी
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
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