क्या लिखोगे?
बैठे हो लिखने?
मन में लिखने की बहुत चाह,
किन्तु नहीं है आत्मविश्वास
समय का लिखने में व्यय करना
व्यर्थ न चला जाए।
ऐसी न जाने कितनी आशंकाएँ हैं,
तुम्हारे मन में!
लेकिन सब की सब हैं निर्मूल,
नहीं है इनका को भी आधार
ठीक वैसे जैसे बिन पेंदी का लोटा।
जो कुछ भी गलत-सही समझ में आये,
एक बार लिखना तो शुरू करो।
फिर देखना उसी गलती से होगा सुधार,
जिससे कि तुम डरते हो।
होगा तुममें आत्मविश्वास का संचार,
तब तुम कर ले जाओगे,
शंका, भय, अनआत्मविश्वास की नदियाँ पार।
तब तुम बढ़ते जाओगे,
शीर्ष व उत्कृष्टता के चरम पर,
डरो मत मेरे यार
लिखना तो शुरू करो एक बार।
---पंकज तिवारी
( सन् १९९७)
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