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प्रतीति (अप्रैल माह की प्रतियोगिता से)


जैसाकि हमने वादा किया था कि इस माह से प्रतियोगिता में जीते चार कविताओं के अतिरिक्त हम प्रति शुक्रवार प्रतियोगिता के अंतिम ८-१० में स्थान बनाई कविताओं को भी एक-एक करके प्रकाशित करेंगे। आज इसी का आगाज़ हम कर रहे हैं कवि श्यामल सुमन की कविता 'प्रतीति' से। हमने प्रारम्भिक दौर का निर्णय चार ज़ज़ों से कराया था। जिसके एक ज़ज़ कविताओं से शायद बहुत दुःखी थे तभी उन्होंने बहुत कम-कम अंक बाँटे थे। फ़िर भी उन्होंने इस कविता को सर्वाधिक (१० में से ७ अंक) दिये थे। इसी चरण के दूसरे निर्णयकर्ता जिन्होंने अधिकतम ९॰७५ अंक दिये थे, प्रतीति को ९ अंक दिये थे। यह बात उल्लेखनीय है कि प्रथम चरण के निर्णय के बाद इस कविता का स्थान दूसरा था। दूसरे चरण के ज़ज़ ने भी इस कविता को १० में से ८ अंक दिये थे। इस चरण के बाद भी इस कविता ने छठवाँ स्थान बनाए रखा था। मगर तीसरे चरण के निर्णयकर्ता को यह कविता अधिक प्रभावित नहीं कर पाई। अब यह कविता पाठकों के समक्ष है, और वो हमारे असली ज़ज़ हैं।

प्रतीति

गीत वही और राग वही है,
वही सुर सब साज़ वही है,
गाने का अंदाज़ वही पर,
गायक ही बस बदल गये हैं।

लोग वही और देश वही है,
नाम नया परिवेश वही है,
वही तंत्र का मंत्र अभी तक,
शासक ही बस बदल गये हैं।

शिष्य वही और ज्ञान वही है,
तेजस्वी का मान वही है,
ज्ञान स्वार्थ से लिपट गया क्यों?
शिक्षक भी तो बदल गये हैं।

धर्म वही और ध्यान वही है,
वही सुमन भगवान वही है,
जो है अधर्मी मौज उसी की,
क्या जगपालक भी बदल गये हैं?


कवि- श्यामल सुमन

क्वार्टर नं॰ २७एल६, रोड नं॰ २३,
फ़ार्म एरिया, कदमा,
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फोन : ०६५७-५५००५२८ और २१४३५७६
ई-मेल: shyamalsuman@yahoo.co.in