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ये समाजवादी


अंकघात से ग्रसित है,
यह समाज हमारा।
अंगच्‍छेद कर रहे है,
ये समाजवादी।

गुंडई के बल पर,
ये राज कर रहे है।
गुजिंत है चारों दिशि मे,
इनके राज के कुकारनामें।

करवा के अपना गुणगान,
गुणवान से अपनी काल गुजारियों का।
दे रहे है धोखा कि
अपराध अन्‍यों से कम है।

इनकी गिद्ध जैसी कु दृष्टि,
हर आम आदमी पर है।
बस ये कर रहे है इन्‍तजार
कि वो कब मर रहे है।

आतातायी बन के करते है,
विधायकों की हत्‍या।
चार दिन की सुहागन को
इन लोगों ने बना दिया बेवा।

सच्‍चाई है सबके समाने,
भष्‍टाचार का ग्राफ बढ़ रहा है।
कुप्रचार से भरमाने की कोशिस मत करो,
सच्‍चाई हर इन्‍सान जान रहा है।

किये थे इन्‍होने अनेकों दावे,
सर्वोत्‍त प्रदेश देगें।
नही चाह सर्वोत्‍तम की,
बस जैसा हमने तुमको दिया था वैसा ही लौटा दो।