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खुन्नस


ऐ जिंदगी कष्ट देगी मुझको कितना?
मैं भी निश्चय जीकर दिखला दूँगा अपना

डाल, डाल मुसिबतें तू चाहे जितनी
मैं समझूँगा सीढीयाँ हैं मेरी उतनी
उन्हीं को चढकर पाऊँगा मैं अपना सपना
मैं भी निश्चय जीकर दिखला दूँगा अपना

आज फिर मेरी खुन्नस है साथ तेरे
छोड़ आया हूँ कायरता के बोझ सारे
रोक सकेगा बढ़ने से अब कोई ना
मै भी निश्चय जीकर दिखला दूँगा अपना

तुषार जोशी, नागपुर