आज मरने के अट्ठारह साल बाद
बाबा, भईया को सपना दिखाए हैं
कि नहीं मिल रहा आजकल उनको
टाईम से खाना पानी….
उस सपने को 1 साल हो गया है
तब से माँ, जग जाती है रोज सबेरे
बिना नागा
चढ़ाती है बाबा की फोटो पर फूल
बना के पहली रोटी
रख देती है, तुलसी के चौरा पर
चिरई कऊआ के खाने के लिए
बाबूजी गाँव के पच्छिम वाले पीपल पर फिर से कलसा टांग आए हैं.....
बचपन में इतिहास वाले गुरूजी बताते थे
कि एक राजा के चार बेटे थे
एक बेटे ने राजा बनने के लिए
सब भाईयों को मार डाला
राजा को कैद कर लिया
राजा पानी बिना मर गया....
उस दिन कहानी सुन कर बड़ी रोआई बरी थी।
किरिन फूट गई है
माँ धर आई है तुलसी चौरा पर रोटी
बाबूजी कलसे में पानी भर आए हैं
बाबूजी खाने बैठे हैं
भईया पानी दे रहे हैं
का जाने काहे
आज सबेरे ही सबेरे, बहुत रोआई बर रही है।
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30 कविताप्रेमियों का कहना है :
अलख जगाये रहिये।
सुन्दर सराहनीय भावव्यक्ति....बधाई.....
behatarin kavita.badhai..
आज मरने के अट्ठारह साल बाद
बाबा, भईया को सपना दिखाए हैं
कि नहीं मिल रहा आजकल उनको
टाईम से खाना पानी….
आस्था और विश्वास यही तो हमारी पहिचान है.......जन्म जन्मान्तर के लिए रिश्तों का बंधन.........
सुंदर अभिव्यक्ति.......आभार.
पहाड़ साले सुख गए है .... कोई पत्ता हरा नहीं है .... ऐसी क्यूँ खामोश दुपहरी .... अब तक कोई मरा नहीं है
रेंग रेंग कर चलने वाले.... छाव ढुंढ कर सिमट गए है .... गरम हवा की इन लहरों में ... सन्नाटे भी लिपट गए है
छोटी सब्जी की बगिया से .... पीले पत्ते झाँक रहे है ..... बाहर जाने की ख्वाहिश में ... बच्चे खिड़की से ताक़ रहे है
बर्फ पतीले में जमते है .... मटके अब न प्यासे है .... ऑफिस में बैठे बाबु की .... अलसाई सी आँखें है
भईया आज करेजा में एगो पीर जइसन उठल बा
कुल त आप कह दिहल
बहुत खूब ..... आज दिल के अन्दर बसे गाँव ने अरसे बाद अंगडाई ली है | दोपहर के २ बजे है मगर लगा कि सवेरा जैसे अभी हुआ हो अन्दर
कुछ दिनों से मनोदशा ठीक नहीं थी ... शायद अन्दर जागे गाँव में टहल के कुछ आराम मिल सके
रोआई बरना ..... सबसे अलग कर दिया इस शब्द का प्रयोग करके
क्योकि अब रोने का मन नहीं करता बस अपनी वाली ये रोआई ही बरती है
गाजीपुर क्या पूरा पुरबिया समाज इस रोआई बरना ..... को समझेगा
बहुत आभारी रहूँगा ... जल्दी ही मुलाकात होती है आपसे
आलोक उपाध्याय
कुछ लिखा रहा हूँ स्मृतियों के आधार पर ... अपने गांवो को समर्पित करके
समाप्त करके आपको भेट करता हूँ
Roshni ho to diya jalta hai,
Shama ho to parwana jalta hai..
Rishte na ho to dil jalta hai,
Aap jaise saathi ho to zamana jalta hai..
एक मार्मिक और हृदयस्पर्शी कविता...जितनी प्रशंसा की जाए ,कम है.बहुत-बहुत बधाई.
चाहे कुछ भी कहे हमारी परम्पराएँ रिश्तों को मजबूत डोर में बांधकर रखने में आज भी सक्षम हैं
चाहे कुछ भी कहे हमारी परम्पराएँ रिश्तों को मजबूत डोर में बांधकर रखने में आज भी सक्षम हैं
कविता भली लगी. किन्तु पता नहीं क्यों लग रहा है कि आज के भागमभाग जीवन में जब एक एक को हाथों हाथ खिलाती ( न केवल खाना, दवाइयां भी, दलिया, ओट्स, फलों का रस, कटे फल, यह डाला दूध, वह डाला ..., उसका पावडर, महीन किया खाना, सूप) स्त्री कभी, दरवाजे की घंटी तो कभी, टेलीफोन की घंटी तो कभी इसकी आवाज तो कभी उसकी आवाज, घड़ी कि सुइयों के अनुसार यह वह परोसती क्या किसी संसार से गए व्यक्ति को भी भोजन करा पाएगी? अब तीन बार का भोजन नहीं कराती स्त्री, वह हर डेढ़ दो घंटे में, बीमारों वृद्धों को कुछ न कुछ परसती है. डॉक्टर मधुमेह वालों वृद्धों व नवजातों के लिए यही सलाह देते हैं, सो करती हैं वे. अब गुजरे हुए बाबा को भी भूख लग आए तो...
घुघूतीबासूती
SUNDAR BHAVABHIVYAKTI .BADHAI
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बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति !
waahhhhh
बहुत प्यारा सा गीत है, मासूम सा
maja aa gaya ye post padakar .
वहा वहा क्या बात है क्या लिखा है आपने
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दर्द
जब कभी भी हम
तेरे साथ नहीं होते-
जिंद्गी के कोई जज्बात नहीं होते
दिल धडकता है तेरी खातिर
तेरे सिवा हम किसी के साथ नहीं होते,
रंग तेरा मेरे जहन में -
कुछ ऐसे चढा है ,
रंग कोई और हमें-
अब आभास नहीं होते।
दवारा -- गुलाब चन्द जैसल
er Singh Raghuvanshi
waise to meetha mna hai,,,pr aaj
chalega,,,sbko badhai ho
Like · 3 · 8 hours ago
Yatinder Aggarwal
dosto DUSU mei clean ABVP ke clean
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Like · 2 · 8 hours ago
Sandeep Kumar
ati swadisht
Like · 2 · 7 hours ago
Yatinder Aggarwal
Munh mei paani bhar aaya hei
er Singh Raghuvanshi
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Yatinder Aggarwal
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Sandeep Kumar
ati swadisht
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Yatinder Aggarwal
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Yatinder Aggarwal
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Sandeep Kumar
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