जिक्र करूँ मैं अब यदि
लउर का आपसे
यदि नहीं हुए भोजपुर-वासी या भाषी
तो हकबकाकर पूछेंगे आप
का मतलब
मराठी-भाषी होंगे तो पूछेंगे
लउर बोलते तो?
लउर का अर्थ
गजब है
डंडा, गोजी या लाठी
कुछ भी बताना
उतना ही गलत
जितना साँढ़ को बताया बैल
सिर्फ संस्कृतियाँ जानती हैं
साँढ़ और बैल का अन्तर
ओ शहरी बाबू
प्रभु वर्ग का यही अज्ञान
सारी समस्याओं का सृजेता है
शुरू होती है सरहद अज्ञान की
गाँव-गँवई की देहाती सुगन्ध से
स्थिति-परिस्थिति, आशा-निराशा
जरूरतें, परेशानियाँ, जोश-हताशा
नाक की ऊँचाई
यहीं निर्मित होती है
घटी तो शर्मसार
वरना हिम्मतवान
अपनी सम्पूर्णता में
सभ्य कानों तक
पहुँचेगी सीमा पार
अभिजात, नगरीय-बोध में ऐंठे
ऊँचे-ऊँचे आसनों पर बैठे
अमर-बेल की जड़ों तक पैठे
बुद्धिजीवियों को
समझाने की
लउर से
पता नहीं
ये समस्या केवल मेरी है
या सबकी है
मेरी दिक्कत
असमर्थकता या अल्पज्ञता होती
नहीं कर रहा होता
बर्बाद आपका वक्त
आज ये दिक्कत
सबकी है सब ओर फैली है
नहीं, नहीं श्रीमान
हिकारत से हाथ हिलाते हुए
मेरी बात टालने से पहले
जरा ठहरिए
मेरे पास प्रमाण हैं
जी, हाँ
गांधी से प्रेमचन्द तक के सारे प्रयास
विफल रहे हैं
सहानुभूतिपूर्ण संवाद से इस दूरी को
मिटाने में
असफल रहे है सारे महापुरुष
राजनीति से लेकर समाज-शास्त्र तक के महापंडित
शहरी और देहाती समझ के बीच फैली
इस खाई को पाटने में
सारे बड़े-बड़े दावे
चाहे वो धोती वाले के हों, लुंगी वाले के हों
या पगड़ी वालों के हों
वहाँ उस तपती रेत में निष्प्राण पड़े हैं
जी, श्रीमान
ठीक वहीं, जहाँ पड़े हैं निष्प्राण शरीर किसानों के
उन लाखों-लाख ग्रामवासियों के
जो मजबूर थे
मौत को माँ की गोद समझ
सो जाने के लिए
क्षमा करें श्रीमान
मैं भी कहाँ-कहाँ भटक जाता हूँ
बेकार की बातों में अटक जाता हूँ
लउर के अफसाने में व्यवस्था का जिक्र
जब कि कुछ लेना-देना नहीं है
लउर को आत्म-हत्या से
लउर से सम्बन्धित मुहावरे हैं-
लउर ना अउर चले,
चल मियाँ जगदीशपुर।
तो गीत भी हैं-
धुरिया चटावे जाने, पीठ न देखावे जाने
डीठ ना लगावे जाने, आने के बहुरिया।
आन पर लड़ावे जाने, जान के ना जान जाने
चले के उतान जाने, तान के लउरिया।
परन्तु लउर का
ठीक-ठीक अर्थ जानने के लिए
आवश्यक है आप जानें
लउर के निर्माण की प्रक्रिया
सबसे पहले तो खोजनी होती है
बँसवाड़ी
जो न एकदम नई हो, न बहुत पुरानी
फिर मुट्ठी-भर के समान अन्तर पर ठोस गाँठों वाला
एक सीधा हरौती बाँस
न कच्चा हरा, न पका पीला
न बहुत लचीला, न बहुत हठीला
यानी पकड़े रहना है
बीच का रास्ता
देखो यह दिलचस्प प्रक्रिया
होती है बँसववाड़ियाँ
विषधर नागों का प्रिय स्थान
हिकमत, चौकन्नापन और फुर्ती हो
तभी आप तलाश सकते हैं
और काटकर ला सकते हैं
मनचाहा हरौती बाँस
यानी समझदार और साहसी की ही
सम्पत्ति हो सकती है लउर
नहीं है आसान
मनचाहे बाँस को
लउर में बदलना
कोई ब्रांड प्रोडक्ट तो है नहीं
बन्दूक, तमंचे, पाउडर या क्रीम जैसा
भिन्न होती है प्रत्येक लउर
दूसरे किसी भी लउर से
ठीक वैसे ही जैसे होते हैं भिन्न चेहरे
लउर रखने वालों के
पहली बात लम्बाई की
आपके लउर की लम्बाई होनी चाहिए
आपकी लम्बाई से बित्ता भर ज्यादा
ताकि बनी रहे आपकी पहुँच दूर तक
और चलाने में भी रहे आसानी
फिर आग में तपा कर बाँस को सीधा करना
तकरीबन उतना ही श्रम-साध्य
उतनी ही कुशलता आवश्यक
जितनी सोने को तपा शुद्ध करने में
अब तो आप समझ गए होंगे
क्यों होती है लउर इतनी कीमती
अपने स्वामी के लिए
इतना सब निबटाने के बाद
शुरू होता है लउर को
तेल पिलाने का काम
जब फुर्सत मिली लउर को निकाल
उस पर सरसो का तेल चुपड़ना
करना इंतजार
जब तक सोख न ले तेल पूरी तरह
और फिर खोंस देना लउर को चुहानी के छप्पर में
ताकि चूल्हे का धुँआ लगते-लगते
उसका रंग हो जाए गहरा कत्थई
चलती है एक लम्बे समय तक लगातार यह क्रिया
तब होता है तैयार लोहे-सा लउर
बम की तरह कारगार वह दिखने वाला
पर डरावना कभी मत पड़िए बहकावों में
इस्पात कंपनियों के दावों में
लउर लोहा ही है
असली भारतीय लोहा
अन्तिम शृंगार के लिए
दोनों छोरों पर आप
पसंद अनुसार
लगावा सकते हैं लोह-बंद
पीतल या लोहे का
ताकि लउर की ठनक
पड़े हमेशा भारी
सिक्कों की खनक पर
तो तैयार होते हैं ऐसे लउर
और फिर जब
थामे अपनी लउर होकर उतान
निकलते हैं, गाँव देहात से मर्दे हिन्दोस्तान
होती है अलग ही उनकी आन-बान शान
खेत-खलिहान, घर-दुआर
गाय-बैल जैसा ही लउर
एक सुरक्षित प्रमाण
जुड़ जाता है पोशाक की तरह
ग्रामीण की सम्पत्ति में
अविभाज्य
पढ़ रहा हूँ
चेहरे पर आए
मनोभाव आपके
किसी भी दमदार डंडे, लाठी या गोजी को
नहीं कर सकते लउर
लउर को समझिए
लउर है प्रतीक
आन-बान शान का
हमले का हथियार नहीं
सम्बल शक्ति है
लउन ढाल है
किसी भी आपदा-विपदा के विरुद्ध
सम्राट के हथ में उठा
राजदंड
आज भी दिलाता है भरोसा
न्याय का, अनुशासन का
सन्नद्ध हाथों में उठा हुआ लउर
‘प्रजादंड’
दया का, सुरक्षा का और समृद्धि का
किसी ग्रामीण के हाथ
लउर का आना
विरथ रघुवीरा के लिए
जेहि जय होई सो
स्यंदन आना
लोगों की मजबूत पकड़ में बँधी
यह महान अहिंसक शक्ति
बन जाती है सुरक्षा कवच
ताकतवर माकूल
प्रायोजित हमलों के विरुद्ध
आपको मसझाने के चक्कर में
लउर पर कविता लिख
मोल ले रहा हूँ मैं
बहुत बड़ा खतरा
बन्दूक या तमंचे की तरह
लगा लाइसेन्स
लोगों के हाथ में लउर
और सामने मेरी कविता
एक हिदायतनामें की तरह
भविष्य का शांति-कपोत होगा
समझते थे बापू
लउर को
प्रतीकात्मक रूप में
लाठी बन रहा उनके हाथों में
सदा बना रहा प्रहरी
हाँ प्रहरी भी तो है
लउर
खेत-खलिहान का
परिवार, परिजनों के कल्याण का
आत्म-सम्मान का
उतरता है बाढ़ का पानी
गंगा के दियर में
तो मिट चुकी होती है
खेतों की विभाजक आड़-डंरेड़
कठिन हो जाता है
पहचानना अपनी-अपनी जमीन
कहावत है कि
लउर से ही जाती है खीची
आड़-डंरेड़
जी हाँ
खेतों के सीमान्त
निर्धारित होते हैं तब लउर से
समझदारी
शांति, मैत्री, सद्भाव
सम्मानजनक समझौतों के लिए
भी
आवश्यक है
लउर
एक लउर सदा रखी रहनी चाहिए
सौंदर्य वृद्धि के लिए
अपने विदेश मंत्री के दफ्तर में भी
मत भूलिए
सशक्त हाथों में
दृढ़ता से पकड़ी गई लउर की
अहिंसक मुद्रा ही थी
जिससे घबड़ा
भागे थे अंग्रेज
जन-मानस में रचा-बसा
लउर
सम्राट अशोक के ऐतिहासिक लाट की तरह
पूजा लउर-बाबा के नाम से
ग्रामीणों द्वारा बिहार में
पूजा स्थल
बेतियों के पास लउरिया में
मैं
कायम हूँ अपनी बात पर
नहीं होता कोई संबंध
लउर का आत्महत्या से
पर लउर का आत्महत्या से
पर लउर का होकर रहेगा संबंध
उन हाथों से
जो करते हैं विवश किसानों को
आत्म-हत्या के लिए
श्रीमान शहरी बाबू
लाख चिल्लाने पर भी
आप समझ गए होंगे
या
मैं समझाता रहूँगा
तब तक
जब तक आती रहेंगी खबरें
किसानों के खुदकुशी की
मैं तो लउर की बात
लिख रहा हूँ
हाथों में कलम लिए
आ जाएँगे लाखों-लाख
हाथों में लउर
लिखे को क्रिया में बदलने के लिए
भस्मासुरी-उदारता जैसी
उदार आर्थिक नीतियाँ
और विश्व बाजार के लिए नये नक्श
पलट देंगे वे नक्शे
तब खोजते रहेंगे आप
सुरक्षा-तंत्र
आज भी खड़ा है
प्रहरी लउर
किसान
न बदले जा सकेंगे वे
मजदूरों में
कितनी भी कोशिश करें
सेठ और बहुदेशीय कंपनियाँ
अपने अटूट मनोबल
असीम मनोबल
असीम शक्ति के साथ
लउर पकड़ने वाले हाथ
बेताब है
अपनी अहिंसक मुद्रा में आने को
महाने अशोक की लाट में बदल जाने को
‘प्रजादंड’ बन जाने को।
कवि- उपेन्द्र कुमार
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
बाप रे...!
इस कविता को पढ़ना...समझना...समझने के बाद महसूस करना..महसूसने के बाद उभरे दर्द को सहना..सभी कठिन है।
आप जो भी हैं दोस्त...
लिखा बहुत अच्छा है...पूरा नहीं पढ़ सके हैं....आधे पर ही कमेन्ट दे कर जा रहे हैं....
बड़ा दमदार लिखे हो..
आप जो भी हैं दोस्त...
लिखा बहुत अच्छा है...पूरा नहीं पढ़ सके हैं....आधे पर ही कमेन्ट दे कर जा रहे हैं....
बड़ा दमदार लिखे हो..
इस्पात कंपनियों के दावों में
लउर लोहा ही है
असली भारतीयलोहा उत्कृष्ट कविता प्रस्तुत की है आपने|सारगर्भित और सहज रचना के लिए बधाई।
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