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Monday, May 23, 2011

फर्क



माह के सोमवारों को महीने के यूनिकवि की अन्य नयी कविताओं को पाठकों तक पहुँचाने की हमारी कोशिश होती है। इस बार प्रस्तुत है अप्रैल माह के यूनिकवि पंकज रामेंदु की कविता।


फर्क

आदर्श होना बेहतर है,
बस शर्त ये रहे,
दोहराए जा रहे आदर्श
बल्ली की तरह हों,
भीतर और बाहर से एक जैसे,
ठोस रुप लिए,
जो आदर्श बांस की तरह
खोखले और लचर हैं,
उनकी नियति में
ठठरी की तरह बंधना ही है ।

पुरुषोत्तम होने में कुछ बुरा नहीं
मर्यादा का ख्याल रखने में कुछ ग़लत नहीं,
बुरा है, ग़लत है,
बिना सोचे समझे बस
आज्ञा में सिर हिला देना
फिर चाहे जंगल में भटकना हो
या एक औरत का पांच पुरूषों में बंटना।

शांत चित्त होने में खराबी कुछ नहीं
बस ये फर्क मालूम रहे,
किस जगह पर गाल बढ़ाना है
किस जगह पर हाथ उठाना है
क्रोध भी जीवन का सृष्टा हो सकता है
औऱ शांत मन
एक कदम के फासले पर कायर ।


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