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Monday, May 09, 2011

कैसे करूं हिसाब बराबर???


(1)
मुझे भूख लगी होती थी
और मैं सामने रखा खाना
कभी ख़ुद नहीं खाता था
फिर?
फिर क्या…
खाना ऱखनेवाली ‘वो औरत’
अपनी व्यस्तता से
फुर्सत के लम्हें चुराती
और कौर-कौर कर मुझे खिलाती
कभी कहानी सुना-सुना...
कभी गाने गा-गा...
और तब तक खिलाती
जब तक मन अघा नहीं जाता
उसका भी...मेरा भी...
मुझे वो हिसाब बराबर करना है...
कैसे करूं???

(2)

नींद हर रोज़ रात को
मुझे दूसरी दुनिया में ले जाने को
बेताब रहा करती थी
लेकिन मैं हर रोज़
नींद को चकमा देता
और हर रोज़ ‘वो औरत’
अपना सब काम-काज छोड़ आती
मुझे अपने कलेजे से चिपका लेती
थपकियां देकर सुलाती...
लोरियां गाकर सुलाती...
उसके गाए लोरियों के शब्द मुझे याद नहीं...
हां उसकी धुनें कानों में गूंजती हैं...
उसकी थपकियां मैं महसूस करता हूं
और कलेजे से चिपके होने का एहसास भी
मुझे ये हिसाब भी बराबर करना है...
कैसे करूं???

(3)
मैं जो चाहता था
उसे वो
नहीं जानते हुए भी, जानती
और मेरे मायूसियों को भी पहचानती
न जाने कौन-सी ताक़त थी उसके पास
हर बार मुझे मायूस देखकर
मेरा माथा चूम जाती
कहती – ‘सब ठीक हो जाएगा’
और सचमुच सब ठीक हो जाता
आज भी उस ताक़त को महसूस करता हूं
क्या कभी हिसाब चुकाने लायक हो पाऊंगा?
सोचता हूं वो जान जाती है
अपनी झुरियों में मुस्काती है
और मेरा माथा फिर चूम लेती है
वो अपनी ताक़त से
मुझे लबरेज़ करती है
क्या फिर भी हिसाब बराबर हो पाएगा??

मेरी सोच...उसके भाव
चार आंखों में छलकते
पानी के खारेपन का अंतर भारी है!!!
(मदर्स डे पर विशेष)

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

अतुल अवस्थी "अतुल" का कहना है कि -

मैं जो चाहता था
उसे वो
नहीं जानते हुए भी, जानती
और मेरे मायूसियों को भी पहचानती
न जाने कौन-सी ताक़त थी उसके पास
हर बार मुझे मायूस देखकर
मेरा माथा चूम जाती
कहती – ‘सब ठीक हो जाएगा’ ianktia man ko choo rahi hai. jamini soch hai.bhut bariya.aasu chalak aaye.

Disha का कहना है कि -

सुंदर रचनाएँ। इतना ही कहेंगे-

लाखों-करोड़ों दुआओं का
हाथों से लेती बलाओं का
हिसाब देना मुश्किल है
झूला झुलाती बाँहों का
ममता के आँचल की छाँव का
हिसाब देना मुश्किल है
निश्चल समर्पित प्यार का
अनगिनत उपकार का
हिसाब देना मुश्किल है
ममता का पलड़ा है भारी
देवों की भी पूजनीय नारी
उस करुणामयी माँ का
हिसाब देना मुश्किल है

Rachana का कहना है कि -

ma ka karz utarna is janam me to mumkin nahi hai .aapne kitna sunder likha hai bahut bahut badhai
rachana

रंजना का कहना है कि -

एकदम से भावुक कर दिया...

मन को छूती विभोर करती अद्वितीय रचना...

बहुत बहुत आभार...

दीपक 'मशाल' का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता..

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

बेहतरीन रचना . बधाई.
एक बार "माँ" कह कर उस औरत से लिपट जाओ, हिसाब की पोथियाँ में आग लग जाएगी

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

एक अविस्मरणीय एवं अद्वितीय रचना।

बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद। लिखते रहें।

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

Thnk u Bhaiya...Thnx a ton 2 u all 4 ur kind and encouraging words..i'm trying hard to write well

लीना मल्होत्रा का कहना है कि -

bahut sundar vichar aur utne hee sundar shabdo me dhali hai bhavnaaye. maa par likhi kavita itne sundar hai to maa kitni sundar hogi? adviteey.

mona का कहना है कि -

Very beautiful poem.
क्या फिर भी हिसाब बराबर हो पाएगा??
मेरी सोच...उसके भाव
चार आंखों में छलकते
पानी के खारेपन का अंतर भारी है!!!
very true.हिसाब बराबर nahin ho sakta.How can you think and write so minutely about the differnt kinds of feelings? Simply awesome.

ekta yadav का कहना है कि -

bht badhiya sir...maa ka arth bakhubi smjhaya hai aapne....aur rhi hisaab chukane ki baat to wo naamumkin hai..

AlbertLee का कहना है कि -

There is noticeably a bundle to know about this. I assume you made certain nice points in features also.

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