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Monday, April 25, 2011

घड़ी


घर के हर कमरे में है – एक घड़ी

रात के सन्नाटे में

सारी घड़ियां

एक-दूसरे से बातें करती हैं...

एक-दूसरे को चिढ़ातीं हैं...खेलती हैं...

एक-दूसरे संग दौड़ लगाती हैं

वे हर कमरे में अकेले पड़ी हैं

किसी एक के पास खड़े होने पर

दूसरे की आवाज़

गूंजती-सी है

सन्नाटा भी शायद

अपनी पूर्णता ढूंढ़ता है

उनकी आवाज़ों में

रात तो फिर भी रात है

लेकिन ये घड़ियां

संदेश अजीब देती हैं...

कि काम बहुत है करने को

हर काम के बाद

SSSS घड़ी चल रही है.....

(ग्रामीण विकास को समर्पित पत्रिका कुरूक्षेत्र में प्रकाशित कविता)


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2 कविताप्रेमियों का कहना है :

Dinesh pareek का कहना है कि -

व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक



दूरियां होने से यादे धुंधली हो जाती लेकिन कुछ यादें ऐसी होती है जो जिंदगी भर आप के साथ रहती है | यादे खट्टी मीठी सी उन्ही यादो के झरोखों से आप सब के लिए एक कविता लायी हूँ | जो कि मेरी नहीं अश्वनी दादा कि है उनकी ही इजाजत से आप सब के सामने रख रही हूँ |
काश कभी ऐसा हो जाए ,
दुनिया में बस हम और तुम हो ,
सारा जग खो जाए ,

Disha का कहना है कि -

sahi hai
samay ka pahiyaa kabhi nahi rukta hai.

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