बदनामी के डर से
अवैध नवजात ‘सच’ को
उसकी ‘मां’ ने जनते ही
कूड़े के ढ़ेर पर फेंक दिया
बिलबिलाती गंदगी पर
धूप में
भूख से बिलखते ‘सच’ पर
आततायी आवारा कुत्तों ने
जश्न मनाने के लिए
बोल डाला है धावा
चारों तरफ से
नोच डाला नवजात को
लेकिन
नवजात ‘सच’
फिर भी नहीं मरा
बढ़ गईं हैं धड़कनें
उफन रही हैं सांसें
जीने की चाह
यकीनन बाकी है
रह-रह उठा रहा है
शिशु-मुख से चीत्कार
मौन समाज में जा कर
कहीं छिपी बैठी है
उसकी उत्तर-आधुनिक ‘मां’
इस इंतज़ार में
कि मिट जाए ‘सच’
तो फिर इठला सके
अपने कुंआरेपन पर
समाज में.....
(रांची की स्वयंसेवी संस्था स्पेनिन द्वारा आयोजित स्पेनिन सृजन सम्मान के लिए चयनित कविता)
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुंदर रचना, बस इतना ही कहूँगा कि अब माएँ ‘सच’ के मरने का इंतजार का नहीं करतीं, ‘सच’ को कूड़े के डब्बे में डाला और फुर्सत।
बेहतरीन रचना
मार्मिक और समाज के एक विद्रूप सच को दर्शाती हुई.
यह दृश्य हृदय चीर देने वाला है।
काश! हम कुंवारेपन की अपेक्षा सच को अपनापाते.
समाज के एक वर्ग की कुत्षित मानसिकता को बहुत संजीदगी से उभारती हुई बहुत ही मार्मिक रचना | इतना कहूँगा :
सत्य को छुपाने के लिए
दामन को बचाने के लिए
क्या कुछ गलत नहीं किया
पर अफ़सोस
दुष्कर्म का फल
सामने आयेगा
कैमरे से बचा नहीं कोई
कोई बच नहीं पायेगा |
बेहतरीन मार्मिक रचना
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही मार्मिक रचना
bahut hi marmik rachna aur badhiya bhi
Its sad to think about how people make a mistake,try to run away from it and the life long sufferer is an innocent being with no worldly knowledge.One of my acquaintances adopted a new born left in the hospital but after a similar mother fled away it was realized that the child wud be physically challenged coz d mother used to eat pills to destroy it. The new parents r so good that they r doing the best possible for the child n keeping it as real parents.
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