विजयशंकर चतुर्वेदी यथार्थ के कवि हैं। वे समय के आर और पार देखने वाली कविताएँ लिखते हैं। 'पृथ्वी के लिए तो रुको' कविता-संग्रह की बहुत सी कविताओं में विजय वास्तविकता के शब्दनाव खेते हैं। देखिए कुछ और नज़ीर-
बड़े बली रहे वे
वे जब तक रहे
वायु, पृथ्वी, जल, आकाश
अग्नि में वास करते रहे
अंधेरी तंग गलियों से
उठाये चकमक पत्थर
पैदा की आग
खाते रहे जंगली पशुओं को भून-भून।
वे जब तक रहे
करते रहे दैत्यों से मुठभेड़
पछाड़ते रहे देवताओं को
देवताओं ने पछाड़ा उन्हें
उन्होंने फिर-फिर पछाड़ा देवताओं को।
वे तमाम कलायें हथेलियों में दाबे
अंकित करते रहे स्वर्णयुग
मोरपंख लिखित
भोजपत्री पृष्ठ पहुँचाते रहे हम तक
उन्हें नहीं मिली प्रेम से बैठ बतियाने की फुर्सत
खड़खड़ाते रहे बन्द मिलें
भाप के इंजिन दौड़ाने में माहिर वे फिरंतू
सनसनाते फिरे अन्तरिक्ष में।
अपने समय की सबसे खूबसूरत स्त्रियों से प्रेम की कामना लिए
वे गये कई-कई बार पर्वतारोहियों के साथ गन्धर्वों के देश
ढूँढ़ते रहे सदियों तक निर्जन में
गगनचुंबी इमारतों से देखा लटक-लटक
कहीं नहीं था प्रेम करने का माहौल
कोई हीर-राँझा नहीं हुआ उनके समय में।
वे गुजरते सहम-सहम तंग गलियों से
सड़कों पर खींचते रहे बेलन
बिखेरते रहे गिट्टी, मुरम-मिट्टी
राजपथ पर कभी नहीं रही उनके खड़े होने की जगह
वे अदबदाकर गिरते-पड़ते लहूलुहान
बनाते कदमों के निशान
भागते रहे अनवरत
साँसें दुरुस्त करते पार करते रहे हर सदी का जंगल
लिये चकमक पत्थर पुरातन
सुलगाते रहे आग।
बड़े बली रहे वे
घात लगा कर बैठे छली देव
अब भी क्या बिगाड़ सकते हैं उनका?
क्यों राज करेंगे वे
सबसे पहले लग जायेंगी फलियों में इल्लियाँ
फिर घुनेगा गेहूँ
फुस्स हो जायेगी हवा
लुप्त हो जायेंगे पशु-पक्षी
पेड़ चल देंगे किसी अज्ञात दिशा में
हरियाली छोड़ देगी हरा रंग
जब राज करेंगे वे।
ध्वस्त कर दी जायेंगी ऐतिहासिक इमारतें
पुरखों के बनाये मकान ज़मींदोज़ होंगे
प्रमाणों के अभाव में पाट दिये जायेंगे तालाब
वह कुछ नहीं होगा जो उन्हें नहीं है पसन्द
मछली की गंध तक नहीं रहेगी फिज़ाँ में
इत्र बेचनेवाले होंगे गिरफ़्तार
संभलना मुश्किल होगा उनका
जो अब तक खड़े रहे हैं इतिहास में।
कैद कर ली जायेंगी गर्भवती स्त्रियाँ
ताकि पैदा न हो सके
भूख और भाषा के लिए लड़नेवाली नस्ल
जो कम हैं तादाद में
कर दिये जायेंगे नेस्तनाबूद
जब राज करेंगे वे
.........
..............
................
क्यों राज करेंगे वे?
बयानात
पिता का बयान है- वह हँसने-खेलनेवाली लड़की थी
जिन्दगी में कोई तकलीफ नहीं थी उसे
वह सजा रही थी भविष्य के सपने
भाई ने बताया-
कल ही तो कहा था उसने
भैया, अभी मत आना
मैं जा रही हूँ इनके साथ बाहर कहीं घूमने
सहेलियों ने याद किया-
हममें सबसे अच्छी बोलनेवाली थी वह
सबसे अच्छी खिलाड़ी
बड़ी ज़िन्दादिल
माँ ने छाती पीट ली-
हे विधाता! इसका ही अन्देशा था मुझे
कितना कुछ छिपाती रहती हैं लड़कियाँ
आत्महत्या के एक दिन पहले तक
...और कितना छिपाती रहती है माँ जिन्दगी भर।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
कितना कुछ छिपाती रहती हैं लड़कियाँ
आत्महत्या के एक दिन पहले तक
क्या नहीं कह रही हैं ये दो पंक्तियाँ
सुन्दर रचनाएँ
...क्यों राज करेंगे वे ?
...वैसे तो तीनों ही कविताएँ अच्छी हैं मगर यह सबसे अच्छी लगी.
कैद कर ली जायेंगी गर्भवती स्त्रियाँ
ताकि पैदा न हो सके
भूख और भाषा के लिए लड़नेवाली नस्ल
ये पंक्तियां असरदार है और कविताएं भी...
अंतिम पंक्तियाँ लाजवाब हैं..
मेरे लिए यह कविता का नया विषय रहा...
बेहतर लेखन के लिए बधाई.
मैं जा रही हूँ इनके साथ बाहर कहीं घूमने
सहेलियों ने याद किया-
हममें सबसे अच्छी बोलनेवाली थी वह
सबसे अच्छी खिलाड़ी
बड़ी ज़िन्दादिल
माँ ने छाती पीट ली-
हे विधाता! इसका ही अन्देशा था मुझे
कितना कुछ छिपाती रहती हैं लड़कियाँ
आत्महत्या के एक दिन पहले तक
...और कितना छिपाती रहती है माँ जिन्दगी भर।
सहने,करने और छुपाने में लडकिओं की कोई बराबरी संभव नहीं एक दम सही भाव प्रकट किये गये हैं वह भी कविता के माध्यम से वाह! भाई वाह!
वे अदबदाकर गिरते-पड़ते लहूलुहान
बनाते कदमों के निशान
भागते रहे अनवरत
साँसें दुरुस्त करते पार करते रहे हर सदी का जंगल
लिये चकमक पत्थर पुरातन
सुलगाते रहे आग।
बड़े बली रहे वे
घात लगा कर बैठे छली देव
अब भी क्या बिगाड़ सकते हैं उनका?
बहुत अच्छा! उनका की जगह हमारा कह पाते तो कितना अच्छा रहता. काश! हम राजपथ की अपेक्षा न कर उन्हीं के रास्तों पर चल पाते.
कैद कर ली जायेंगी गर्भवती स्त्रियाँ
ताकि पैदा न हो सके
भूख और भाषा के लिए लड़नेवाली नस्ल
जो कम हैं तादाद में
कर दिये जायेंगे नेस्तनाबूद
जब राज करेंगे वे
.........
..............
................
क्यों राज करेंगे वे?
भाई हम कुछ भी कहें राज तो उन्होनें ही किया है, वही कर रहे हैं और वही करेंगे यह अलग बात है कि वे समय-समय पर लबादा बदलते रहते हैं और हम समझते हैं कि राज बदल गया. सुन्दर अभिव्यक्ति है.
प्रशंसनीय ।
BAHUT KHUB KAHA AAPNE "KITNA KUCH CHUPATI RAHTIN HAIN LADKIYAN"KOI NAHI JAN SAKTA KI LADKIYAN KYA KARTI HAIN,KYA SOCHTI HAIN OR KYA CHHUPATI HAIN|IS VISHAY PAR AAPNE APNI RACHNA DWARA SUNDAR ROSHNI DALI HAI|
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