चलती साँसों को रोकने का जुर्म
नहीं कर सकती थी
मकसदों से मुंह नहीं मोड़ सकती थी
तो हर घाव को भरने के लिए
खैरात में मिली ज़िन्दगी पर
खुद्दारी का पैबंद लगाया है
खुद्दारी की इतनी चिप्पियाँ हैं
कि लोग हुनर की दाद देने लगे हैं
ये तो धागों की कमी थी
तो जब जहाँ जैसा मिला
उससे रफू कर दिया
काफी नाम है
इस खैराती ज़िन्दगी के पैबन्दों की
इस कारीगरी के आगे
आत्मा में लगे घावों की क्या बिसात
और क्यूँ?
सत्य तो बस इतना ही होता है
कि तुमने क्या खाया
क्या पहना
कहाँ से ... इस का उत्तर
लोगों की जुबान पर अपना अपना ही होता है
सच, झूठ की छानबीन होती नहीं
फैसला महत्वपूर्ण....
पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!
कवयित्री- रश्मि प्रभा
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
सत्य तो बस इतना ही होता है
कि तुमने क्या खाया
क्या पहना
कहाँ से ... इस का उत्तर
लोगों की जुबान पर अपना अपना ही होता है
सच, झूठ की छानबीन होती नहीं
फैसला महत्वपूर्ण....
bahut sundar!
पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!
खुद्दारी का पैबन्द या पैबन्द खुद्दारी के कारण
सुन्दर रचना
behtarin kavita ......tarif ke liye koi upyukt shabd nahi mil rha
eternal confession................
no words .........to say anything just speechless
उत्कृष्ट रचना ।
खुद्दारी की इतनी चिप्पियाँ हैं
कि लोग हुनर की दाद देने लगे हैं
ये तो धागों की कमी थी
तो जब जहाँ जैसा मिला
उससे रफू कर दिया
काफी नाम है
इस खैराती ज़िन्दगी के पैबन्दों की
इस कारीगरी के आगे
आत्मा में लगे घावों की क्या बिसात
और क्यूँ?
सुंनदर रचना के लिय रश्मि जी को बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
behad shashakt rachna hai .. nayi upmayen ehsaason ko naya aayam de rahi hain .. :)
vastbikata ke bahut hi kareeb rachana rashmi apaki kavita ne mujhe mere atit men dhakel diya
vastbikata ke bahut hi kareeb rachana rashmi apaki kavita ne mujhe mere atit men dhakel diya
अपनी भावना से पूर्ण न्याय करती हुई कविता..शीर्षक ही अपने विरोधाभासी प्रभाव के साथ हैरान करता है...खैरात के साथ खुद्दारी का सहअस्तित्व सहज नही है..और कविता इसी मुश्किल को उस उधेड़बुन को साथ ले कर बढ़ती है
...जिंदगी के फ़टे पैरहन पर पैबंद..
तो हर घाव को भरने के लिए
खैरात में मिली ज़िन्दगी पर
खुद्दारी का पैबंद लगाया है
सामयिक रचना
rashmi ji,
aurat par ho rahe praharo ka sajiv chitran kiya hai apne.ghav bhrte nahi hain.satya hai. bahot prabhavi kavita hai.
पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!
रश्मिजी जीवन पैबन्दो से ही तो चलता है. आपने यथार्थ को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है.
sundar prastuti
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