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Friday, April 30, 2010

खैराती में खुद्दारी


चलती साँसों को रोकने का जुर्म
नहीं कर सकती थी
मकसदों से मुंह नहीं मोड़ सकती थी
तो हर घाव को भरने के लिए
खैरात में मिली ज़िन्दगी पर
खुद्दारी का पैबंद लगाया है

खुद्दारी की इतनी चिप्पियाँ हैं
कि लोग हुनर की दाद देने लगे हैं
ये तो धागों की कमी थी
तो जब जहाँ जैसा मिला
उससे रफू कर दिया
काफी नाम है
इस खैराती ज़िन्दगी के पैबन्दों की
इस कारीगरी के आगे
आत्मा में लगे घावों की क्या बिसात
और क्यूँ?

सत्य तो बस इतना ही होता है
कि तुमने क्या खाया
क्या पहना
कहाँ से ... इस का उत्तर
लोगों की जुबान पर अपना अपना ही होता है
सच, झूठ की छानबीन होती नहीं
फैसला महत्वपूर्ण....

पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!

कवयित्री- रश्मि प्रभा

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Bhawna का कहना है कि -

सत्य तो बस इतना ही होता है
कि तुमने क्या खाया
क्या पहना
कहाँ से ... इस का उत्तर
लोगों की जुबान पर अपना अपना ही होता है
सच, झूठ की छानबीन होती नहीं
फैसला महत्वपूर्ण....

bahut sundar!

M VERMA का कहना है कि -

पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!
खुद्दारी का पैबन्द या पैबन्द खुद्दारी के कारण
सुन्दर रचना

himani का कहना है कि -

behtarin kavita ......tarif ke liye koi upyukt shabd nahi mil rha

neelam का कहना है कि -

eternal confession................

no words .........to say anything just speechless

अरुणेश मिश्र का कहना है कि -

उत्कृष्ट रचना ।

Unknown का कहना है कि -

खुद्दारी की इतनी चिप्पियाँ हैं
कि लोग हुनर की दाद देने लगे हैं
ये तो धागों की कमी थी
तो जब जहाँ जैसा मिला
उससे रफू कर दिया
काफी नाम है
इस खैराती ज़िन्दगी के पैबन्दों की
इस कारीगरी के आगे
आत्मा में लगे घावों की क्या बिसात
और क्यूँ?
सुंनदर रचना के लिय रश्मि जी को बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

behad shashakt rachna hai .. nayi upmayen ehsaason ko naya aayam de rahi hain .. :)

vedna का कहना है कि -

vastbikata ke bahut hi kareeb rachana rashmi apaki kavita ne mujhe mere atit men dhakel diya

vedna का कहना है कि -

vastbikata ke bahut hi kareeb rachana rashmi apaki kavita ne mujhe mere atit men dhakel diya

अपूर्व का कहना है कि -

अपनी भावना से पूर्ण न्याय करती हुई कविता..शीर्षक ही अपने विरोधाभासी प्रभाव के साथ हैरान करता है...खैरात के साथ खुद्दारी का सहअस्तित्व सहज नही है..और कविता इसी मुश्किल को उस उधेड़बुन को साथ ले कर बढ़ती है

...जिंदगी के फ़टे पैरहन पर पैबंद..
तो हर घाव को भरने के लिए
खैरात में मिली ज़िन्दगी पर
खुद्दारी का पैबंद लगाया है

सामयिक रचना

ritu का कहना है कि -

rashmi ji,
aurat par ho rahe praharo ka sajiv chitran kiya hai apne.ghav bhrte nahi hain.satya hai. bahot prabhavi kavita hai.

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

पैबंद जितना गहरा
फैसला उतना ही गहरा
और रंग चोखा!
रश्मिजी जीवन पैबन्दो से ही तो चलता है. आपने यथार्थ को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है.

कविता रावत का कहना है कि -

sundar prastuti

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