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Thursday, December 03, 2009

ग़ुस्से की 25वीं सालगिरह पर



आज भोपाल गैस-कांड की दुःखद और तल्ख स्मृतियाँ पच्चीस साल की हो गयीं. ३ दिसम्बर १९८४ की रात यूनियन कार्बाइड के प्लांट मे घटी इस दुर्घटना ने कई हजार लोगों की जिंदगियाँ छीन ली, तो भोपाल के लाखों लोग दायित्वशून्य औद्योगिक विकास की इस कीमत को आज भी चुका रहे हैं. इस मौके पर नाज़िम नक़वी ने उस शहर की बदलती नब्ज को महसूस करने की कोशिश की है, इस कविता के माध्यम से.



ये शहर भोपाल वो शहर है
यहां सितारे
नज़र झुका कर
सिंगार करते हैं झील के आईने में
हमारी तहज़ीब की नुमाइश है इस शहर में
मगर कुछ अर्से से इस शहर में
अजीब ग़ुस्सा पनप रहा है
उचाट नींदों में तल्ख़ रातें
तलाश करती हैं जाने किसको
ये नन्हें बच्चे, जवान माएं
ग़रीब मज़दूर, बूढ़े चेहरे
तमाम रूहें जो सर्द रातों
में आग बनकर
किसी अलाव में तप रही हैं

सभी को है इंतज़ार उसका
जो कह गया था
कि एक दिन वो
करेगा इंसाफ़ सब दुखों का
वो दुख जो उस रात ज़हर बन कर
तमाम लोगों पे छा गया था
तमाम सांसों में घुल गया था
ये ग़ुस्सा तब से न सो सका है
न रो सका है
बस आसमानों से लौ लगाये
किसी को हसरत से ढूँढ़ता है...
न जाने किसने कहा है उससे
कि रास्ता तो यही है उसका
यहीं से इक दिन वो बन के रहमत
किनारे इस झील के किनारे
पनाह लेगा
कि जैसे उस दिन बरस पड़ा था
क़हर बन कर
ये ग़ुस्सा पच्चीस का हुआ है
हमें है डर इस जवान ख़ूं को
मिला न कुछ तो ये क्या करेगा???

--नाज़िम नक़वी

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

इतनी बड़ी त्रासदी घटित हुई थी इस पर गुस्सा आना स्वाभाविक है
धन्याद
विमल कुमार हेडा

विश्व दीपक का कहना है कि -

दिक्कत यही है कि हम बस गुस्सा हीं कर सकते हैं...जिन्होंने कुछ करने का दावा किया था, वो तो न जाने किसी बिल में जाकर छुपे हुए हैं.....सरकार न तो पीड़ितों को मुआवजा दे रही है और न हीं युनियन कार्बाईड पर हीं कुछ कार्रवाई की जा रही है। देखते हैं क्या होता है!!

-विश्व दीपक

राकेश कौशिक का कहना है कि -

यूनियन कार्बाइड जैसी भयानक त्रासदी को हुए पच्चीस साल बीत गए. नाज़िम नक़वी जी ने अपनी कविता के माध्यम से उस दर्द को उजागर किया है जो मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी है, गुस्सा आना स्वाभाविक और जायज है. देश को चलाने वालों को जल्दी से जल्दी पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए और कंपनी के खिलाफ उचित कार्यवाही करनी चाहिए.
"बस आसमानों से लौ लगाये
किसी को हसरत से ढूँढ़ता है..."
नाज़िम जी शुक्रिया और कविता के लिए बधाई.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

नाज़िम जी गुस्सा जायज़ है कितने परिवार और घर उस दुखद घटना के शिकार हुआ कोई जवाब नही है और आज भी लोग न्याय की राह देख रहे है..उन्हे इंसाफ़ मिलना ही चाहिए..झीलों के सुंदर शहर में इस तरह एक भयानक दुख की आग लगी जिसकी लपटें आज भी ख़तम होने का नाम नही ले रही है...

बेहद उम्दा भावनात्मक प्रस्तुति...

rachana का कहना है कि -

करेगा इंसाफ़ सब दुखों का
वो दुख जो उस रात ज़हर बन कर
तमाम लोगों पे छा गया था
तमाम सांसों में घुल गया था
ये ग़ुस्सा तब से न सो सका है
न रो सका है
ji theek kaha gussa ander hai .hum jaeson ke dil me dard ka ek dariya bah raha hai.
sahi smy pr sahi kavita .
aap ko bahut bahut badhai ho
saader
rachana

Sumita का कहना है कि -

ये ग़ुस्सा पच्चीस का हुआ है
हमें है डर इस जवान ख़ूं को
मिला न कुछ तो ये क्या करेगा???
नकवी साहब बहुत ही संवेदना के साथ उकेरा है आपने भोपाल गैस पीडितों की व्यथा को..बहुत-बहुत बधाई !

मनोज कुमार का कहना है कि -

क़ाबिले-तारीफ़ है।

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