नींद
अक्सर आँखों में बंद होने से
कर देती है इंकार
छिटक कर पलकों की दहलीज से
किनारे पड़ी कुर्सी पर बैठ
पढ़ती है
दिन भर घटी घटनाओं की किताब
मैं भटकती रहती हूँ बिस्तर पर
गिनती हूँ चादर की सिलवटें
तिनका-तिनका बिखरे अपने वज़ूद को
समेटने के लिए
तमाम करवटें बदलती हूँ
पर बंद आँखों में भी चुभ जाती हैं
फांसें इनकी
इच्छाओं की गोरैया
पंखे से कट के गिरती है
टुकड़े-टुकड़े हुई अभिलाषाएँ
मेरा दामन पकड़ के पूछती हैं
आखिर कब तक
करती रहोगी हमारी हत्याएँ
रक्तरंजित हाथों को
धोने के प्रयास में
लाल रंग के धब्बे
उभर आते हैं दीवारों पर
घबराहट की चन्द बूंदें
छलक जाती हैं माथे पर
नींद मेरे सिरहाने बैठ
फुसफुसा के कहती है
सुकून का एक पल भी नहीं
कि मैं उग सकूँ तेरी आँखों में
रोशनी की धीमी किरण भी नहीं
कि खिल सके एक सूरज तेरी हथेली पर
पर तुझ में धड़क रहा है
एक नन्हा दिल
तेरे चारों ओर फैली नागफनी पर
एक फूल खिलने को है
इस खुशबू का दामन थाम
नींद उतरती है आँखों में
और पलकों का शामियाना गिरा देती है
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
तेरे चारों ओर फैली नागफनी पर
एक फूल खिलने को है
इस खुशबू का दामन थाम
नींद उतरती है आँखों में
और पलकों का शामियाना गिरा देती है
बहुत खूब !
1.
NEEND PAR LIKHI THI JEEVAN KI SABSE PAHLI KAVITA, TABSE NEEND MERI TLASH MEIN BHATAK RAHI HAI JANEY KAHAN KAHAN..
2.
YA RAB THODI NEEND DE
NEEND MEIN IK KHWAB HO
KHWAB MEIN TERE NOOR SA KOI HUSN HO
KHWAB MEIN TERI MEHAR SA MERA ISHQ HO
YOON IBADAT MEIN KATE MERI RAT..
SHYAM
bahut sundar bhavabhivyki.. ek bhi shbd vyrath nahin.. kavita pakdati hai aur roothi hui neend ki tarf soch ko le chlti hai..samaj hamein yahi deta hai.. ichhayein hame jeevan se vimukh karti hain.. jise hum jeena samajhte hain sachmuch ka jeena nahin hai..
इच्छाओं की गोरैया, टुकड़े-टुकड़े हुई अभिलाषाएँ, तिनका-तिनका बिखरे वज़ूद को,पलकों का शामियाना, एक सूरज तेरी हथेली पर आदि सुंदर बिम्ब के साथ धीरे से मन के दरवाजे पर दस्तक देती बहुत अच्छी कविता. बधाई.
बहुत प्यारी कविता ,
राकेश जी की टिप्पणी ही हमारी भी टिप्पणी समझी जाए ,हहह्हहहः
मैं भटकती रहती हूँ बिस्तर पर
गिनती हूँ चादर की सिलवटें
तिनका-तिनका बिखरे अपने वज़ूद को
समेटने के लिए
तमाम करवटें बदलती हूँ
Rachana ji ko itne khubsurat rachana ke liye badhai ! vah..! vah...!
तमाम करवटें बदलती हूँ
पर बंद आँखों में भी चुभ जाती हैं
फांसें इनकी
इच्छाओं की गोरैया
पंखे से कट के गिरती है
टुकड़े-टुकड़े हुई अभिलाषाएँ
Man ki bhawnaon ko sundar abhivakti ka madhaym bankar sundar bimb prastut karti aapki kavita bahut achhi lagi.
Shubhkamna Sahit
मीरा प्रेम दीवानी, प्रेम की अलख जगाये।
त्याग करे सब राजसी, कष्ट सहे, सुख पाये ।।
वीणा बाजे राग सुनाये, नाद से मोहित मृग चला आये ।
नाद प्रेम में जाल फ़ँसे, प्रान गमा सुख पाये ।।
दीप प्रकाशित, प्रेम आकर्षित, चुम्बन लेने पतंगा आये ।
जलकर तभी भस्म हो जाये, देह त्याग सुख पाये ।।
शशि गर्व में चूर, चातक प्रेमी आश लगाये ।
शशि समझ अंगारा लिपटे, शरीर त्याग, सुख पाये ।।
उदित रवि खिलजाये कमल, प्रेमी फ़ूला नहीं समाये ।
रविप्रताप से सूखकर, नष्ट होत सुख पाये ।।
स्वाति-पपीहा प्रेम अनौखा, बूँद स्वाति प्यास बुझाये ।
मेघा, सागर त्याग कर , पीउ-पीउ चिल्लाये ।।
प्रेमी दशा अथाह, जा में कुछ न सुहाये ।
मोहित होकर मन हरे, दुख होय सुख पाये ।।
रचना जी
बहुत ही बढिया |
दिल से महसूस की गई दिल में उतरती हुई कविता . बधाई,
सादर,
विनय के जोशी
मुद्दा बहुत सही उठाया है। रोचक और गंभीर भी।
तेरे चारों ओर फैली नागफनी पर
एक फूल खिलने को है
इस खुशबू का दामन थाम
नींद उतरती है आँखों में
और पलकों का शामियाना गिरा देती है
रचना जी की कविता बहुत सुन्दर और भावमय है शुभकामनायें
नींद..... एक सुंदर अभिव्यक्ति...
बेहतरीन भाव प्रस्तुत किए आपने..धन्यवाद
हमेशा कि तरह रचना कि रचनाओं में एक नयी विचारधारा और एक नयी सोच है. नींद का मानवीकरण अच्छा और सुन्दर है.
एक और जरूरी अनुरोध हिंदी युग्म से-
कवितायेँ कभी बासी नहीं होतीं इसलिए साहित्य का सृजन नया जरूर हो सकता है पर ताजा नहीं इसलिए हिंदी युग्म के प्रभारियों से अनुरोध है कि इस ताजे शब्द के स्थान पर यदि कोई और वाक्य प्रयोग करें तो उचित रहेगा. आखिर सब्जियों और साहित्य में फर्क तो होना चाहिये न?
धन्यवाद
शुभचिंतक
आप सभी के स्नेह शब्दों से ओतप्रोत मै क्या कहूँ समझ नहीं पा रही हूँ
सभी का धन्यवाद
आगे भी इसीतरह आप के विचार और सहयोग मिलते रहेंगे यही आशा है
सादर
रचना
छिटक कर पलकों की दहलीज से
किनारे पड़ी कुर्सी पर बैठ
पढ़ती है
दिन भर घटी घटनाओं की किताब
बड़ी मार्के की बात कही है..कहीं ख्वाब उसी हिसाबखाते का ऑडिट तो नही होते हैं..?
आखिर सब्जियों और साहित्य में फर्क तो होना चाहिये न?
प्रेमी दशा अथाह, जा में कुछ न सुहाये ।
मोहित होकर मन हरे, दुख होय सुख पाये ।।
"jagee hui aankhon mein kanch se chubhte hue khwab rat aise hi deewano ki basar hua karti hai"--MEENA KUMARI
सुकून का एक पल भी नहीं
कि मैं उग सकूँ तेरी आँखों में
रोशनी की धीमी किरण भी नहीं
कि खिल सके एक सूरज तेरी हथेली पर
पर तुझ में धड़क रहा है
एक नन्हा दिल
तेरे चारों ओर फैली नागफनी पर
एक फूल खिलने को है
इस खुशबू का दामन थाम
नींद उतरती है आँखों में
और पलकों का शामियाना गिरा देती है
behter likha hai rachna ji aapne.
badhayee swikaar kare.
बहुत सुंदर शब्द संसार बनाया है आपने...
शायद आज ज्यादा ही पढ़ गया हिंद युग्म....
शायद इसी लिए उलझ सा गया हूँ...
सिर्फ भाव समझने के लिए दोबारा आना पडेगा...और उस दिन ज्यादा नहीं पढूंगा,,,
Bimbon ka anutha aur adbhud sanyojan. Anubhuti kii saadii aur sateek abhivyakti. Padhnewala ye hii kahega ki, "Aisa to mere saath bhii hota hai.."
Rachnaji palkon ke shamiyaane girnee ki vyanjana par badhaii. Hind Yugm par aai kuch durabh kavitaon mein se ek hai ye. Shataau hovein.
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