गाँव मेरा भी शहरों की, बीमारी से ग्रस्त हुआ
लो फिर सूरज अस्त हुआ
मन अपना संत्रस्त हुआ
ख्वाबों में जब तुम आए
दिल मेरा अलमस्त हुआ
तुम बिन लगता है न कहीं
दिल कैसा अभ्यस्त हुआ
दिन-भर मौज मनाई खूब
सांझ-सकारे पस्त हुआ
गाँव मेरा भी शहरों की
बीमारी से ग्रस्त हुआ
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
16 कविताप्रेमियों का कहना है :
गाँव मेरा भी शहरों की
बीमारी से ग्रस्त हुआ
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ
आपकी गज़ल हमेशा ही लाजवाब होती है बधाई
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ.....कई जगह और कई बातो पर ऐसाही अनुभव होता है .......बहुत ही बेहतरीन
आदरणीय श्याम जी,
तुम बिन लगता है नहीं
दिल कैसा अभ्यस्त हुआ
पहले मिसरे में कुछ टाइपिंग की गलती लग रही है जरा चेक करें.
ये शेर ख़ास तौर पे पसंद आया
गाँव मेरा भी शहरों की
बीमारी से ग्रस्त हुआ
अरुण अद्भुत
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ..
लाजवाब गज़ल!!!!
बहुत सुंदर गज़ल !!! बधाई.
सुमीता.
सतसई के दोहे ज्यों , नाविक के तीर देखन में छोटे लगें .
घाव करे गम्भीर .
आप की गज़ल तो उपर्युक्त उक्ति की तरह है .बधाई .
गाँव मेरा भी शहरों की
बीमारी से ग्रस्त हुआ
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ
बहुत अच्छी पंक्तिया लिखी, बहुत बहुत धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
इस ब्लॉग पर पाठक कुछ उदासीन से लगे, एक से एक बढ़िया गजलकारों को पढने के बाद इस गजल में बहुत नीरसता है
मंजू जी के कमेन्ट पर तरस आता है, कहाँ सतसैया के दोहे और कहाँ ये SO CALLED गजल क्यों बिहारी जी का अपमान कर रही हैं,
खैर इश्वर रक्षा करे
अल्हड बीकानेरी जी ने ठीक ही कहा है
मकां अब मीर का ढहने लगा है
जिसे देखो गजल कहने लगा है
यदि टिप्पणियों में सिर्फ तारीफ़ करने का नियम है तो माफ़ी चाहता हूँ लेकिन इसमें या तो ग़ज़ल जैसा कुछ नहीं है या मेरी अल्पविकसित बुद्धि इसके भाव समझने में नाकाम रही है
प्रिय दीपक सैनी ,
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि इस रचना में गज़लियत पूरी तरह नदारद है गज़ल में एक खास कमनियता होनी चाहिये ,यह गज़ल का स्वभाव है प्रकृति है,इसके अलावा कई शब्द जो कवितामय नहीं होते उनका हर कविता में परहेज करना होता है-मात्र मात्रा गणना या मात्रा क्रम[ बहर में होना] किसी रचना को गज़ल नहीं बना सकता
इस रचना के सभी काफ़िये त्रस्त,संत्रस्त,अस्त
लेकिन.अभ्यस्त,ग्रस्त,ध्वस्त केवल अलमस्त को छोड़कर कवितामय नहीं हैं और इनका उपयोग गज़ल में नहीं होना चाहिये और इसी कारण यह नीरस है
एक बात और युग्म पर ही नहीं ,सारे नेट पर मात्र १०-१२ ब्लॉगर ही मुझे मिले हैं जो गज़ल को समझते हैं,और गज़ल का सबसे बड़ा नुकसान नेट पर आच्छादित गज़ल -गुरू कर रहे हैं जो अपने तथाकथित शिष्योंकी अधकचरी रचनाओं की प्रसंशा कर इन लोगो को बांस पर चढ़ा देते हैं और फ़िर उनके गज़ल संग्र्ह छापकर कमाई करते हैं
हां यहां नेट पर अच्छी या बुरी सब रचनओं को एक सरीखी टिप्पणियां मिलती हैं ,इससे अच्छी गज़ल भी और गज़लकार भी उदास विमुख होने लगता है,
मैं खुद को बहुत बड़ा गज़लकार तो नहीं कहता ,लेकिन मेरी कुछ अच्छी कहलाने लायक गज़ल आप युग्म के पुराने पोस्ट पर तथा मेरे ब्लॉग
http://gazalkbahaane.blogspot.com/ देख सकते हैं
साफगोई हेतु आभार
वाह श्याम सखा जी,
ये बढ़िया है,
हिंद युग्म पर पोस्ट करने के लिए तो नीरस सी गजल, और अच्छी गजलें पढ़नी हो तो जाए ब्लॉग पर ये तो अच्छी बात नहीं है
अपने ब्लॉग का प्रचार करने का एक घटिया तरीका है ये तो....
हिंद युग्म जरा ऐसे लोगों से सावधान रहे .......
गालिब ने लिखा है :
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
आँख खुली तो पाया यह
हर सपना ही ध्वस्त हुआ
बहुत ही लाजवाब दिल को छूते शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति, आभार
bahut khub!!
Hindi ke sath urdu ke shabdo ka behtar paryog hai, achha paryas ,badhai ho.
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