सूखी रोटी को
पानी और शक्कर के घोल में
डुबो-डुबो कर मां
लाडले को ‘दूध-रोटी’ खिलाया करती थी
और कभी घर में
सचमुच दूध आ गया...
फिर तो कहना ही क्या!
बासी भात के संग उबला
‘खीर’ तो खाता ही था लाडला.......
भीड़ को नहीं पता थी
उस ऑफिसर की कहानी
उसे तो उनके नेता ने बताया था –
‘यही है प्रशासन...मार डालो!’
भीड़ की मार से बेसुध हुए...
बेकसूर ऑफिसर की आंखों में
मरी हुई मां का चेहरा...
नाचता रहा.....
वो ‘दूध-रोटी’...
‘खीर’ को याद करता रहा....
....मर गया !
ग़लत था या सही…
उस नेता का उकसाना ?
मामला अदालत पहुंचा...
फैसला भी आया....
मौत बांटनेवालों को
बख़्श दी गई थी ज़िंदगी...
क्योंकि...ऑफिसर के बच्चों ने
अदालत को दी थी अर्ज़ी....
क्योंकि...वो नहीं चाहते थे
कोई उनकी तरह अनाथ हो जाए!
(जी. कृष्णैय्या याद हैं!!!!)
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
http://www.indianexpress.com/news/i-also-had-no-clothes-to-wear-when-i-was-as-old-as-these-children.-that-is-why-i-feel-for-these-poor-people-so-much-said-the-dalit-ias-officer-who-was-killed/225365/
पाटनी जी,
मुझे यहाँ से उस घटना की पूरी जानकारी मिली। जानकर बड़ा हीं दु:ख हुआ। वैसे खुशी की बात यह है कि दोषियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है, बस देखना यह है कि उन्हें दफ़ा ३०२ के अंतर्गत सजा मिलती है नहीं।
सिविल सर्विसेज के साथ यही दिक्कत है कि पैसे लो तो ईमान से जाओ और ईमान से काम करो तो जान से जाओ। सबसे बुरी बात यह है कि जनता को अच्छे और खराब में अंतर हीं नहीं मालूम। जब जनता सुधरेगी तब नेताओं की भी नहीं चलने वाली। तभी हम सही से कह पाएँगे कि "सत्यमेव जयते"।
पाटनी साहब, आपने कवि होने का सही धर्म निभाया है। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
सच्चाई को उजागर करती कविता,बहुत ही मार्मिक ,,,बधाई!!
शीर्षक आज की सच्चाई को बता रहा है.उक्ति भी है -'सत्यमेव जयते ना नृतम '. ऐसे भ्रष्ट लोगो को जल्दी सरकार पकडे . फाइल गायब न हो . बधाई
पाटनी साहब आँखों में आसूं आ गये.. जानकारी के लिए तन्हा जी को विशेष धन्यवाद
बिहारी होने पर मुझे फक्र है...मैं यदा-कदा तमाम मंचों से बिहारी होने की खासियतों की गिनाने का काम भी करता रहा हूं...लेकिन यही एक ऐसा मुद्दा है...जहां बेहद शर्मिंदगी होती है...बतौर बिहारी..जी कृष्णैया की हत्या मेरे दिल पर बोझ है......विश्वदीपकजी समेत आप सभी का शुक्रिया...
सुन्दर रचना |
अवनीश
पूरा नहीं पढ़ रहा हूं ..पाटनी भाई ने लिखी है ..अनाथों की अर्जी ..हवा की तरह ही है ..20 प्रतिशत आक्सीजन और बाकी नाइट्रोजन ...कहीं ना कहीं मैं भी अनाथ हूं ...बधाई स्वीकार करें ..
पूरा नहीं पढ़ रहा हूं ..पाटनी भाई ने लिखी है ..अनाथों की अर्जी ..हवा की तरह ही है ..20 प्रतिशत आक्सीजन और बाकी नाइट्रोजन ...कहीं ना कहीं मैं भी अनाथ हूं ...बधाई स्वीकार करें ..
कितना खुबसूरत लिखा है पाटनी भाई आपने
मौत बांटनेवालों को
बख़्श दी गई थी ज़िंदगी...
क्योंकि...ऑफिसर के बच्चों ने
अदालत को दी थी अर्ज़ी....
क्योंकि...वो नहीं चाहते थे
कोई उनकी तरह अनाथ हो जाए!
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