रात की आँखों में आंसू आज फिर हैं बह रहे .
टूट कर दो दिल हैं लगता आज फिर दुख सह रहे .
आशिकों को आज फिर से कर रही दुनिया जुदा,
चांद धरती आसमाँ उनकी कहानी कह रहे .
बददुआ निकली तड़प के जब हुए बरबाद दिल,
दौर-ए-महशर देख लो मजबूत घर भी ढ़ह रहे .
कितना समझाया कहीं तूँ और डेरा डाल ले,
मेरा घर अपना समझ कर दुख सदा से रह रहे .
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
पोंछने आँसू थे जिनको दर्द देते वह रहे .
महशर = प्रलय
कवि कुलवंत सिंह
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
रात की आँखों में आंसू आज फिर हैं बह रहे .
टूट कर दो दिल हैं लगता आज फिर दुख सह रहे .
बेहद उम्दा ग़ज़ल,
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
पोंछने आँसू थे जिनको दर्द देते वह रहे .
संवेदनाओं से निहित आपकी यह ग़ज़ल दिल को छू जाती है..
बहुत बहुत बधाई!!!
रात की आँखों में आंसू आज फिर हैं बह रहे .
टूट कर दो दिल हैं लगता आज फिर दुख सह रहे .
bahut hi khubsoort likha hai aapane ......badhaaee
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
पोंछने आँसू थे जिनको दर्द देते वह रहे .
वाह, क्या बात कही है कुलवंत जी । बधाई, इतनी सुन्दर और मन छू लेने वाली गज़ल के लिये ।
दर्दभरी लाजवाब गज़ल है .बल्ले -बल्ले .बधाई .
बहुत सुंदर !!
अच्छा प्रयास है ... काफिया काफी मुश्किल था पर आपने निभाने की पूरी कोशिश की .....
थोडा नयापन लाने की कोशिश भी कीजिये जैसे निम्न प्रकार के अशआर गजलों में बहुत पुराने हो चुके हैं और कई बार आ चुके हैं :
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
पोंछने आँसू थे जिनको दर्द देते वह रहे .
सादर
अरुण मित्तल 'अद्भुत'
achchhi koshish..
गम नही था आँख मेरी कितने आंसू आ गये,
ya to kuchh typing ki mistake hai ya grammar ki, ya dono ki, arthspasht nahi hai.
bahut hi saadaaran ghazal
बददुआ निकली तड़प के जब हुए बरबाद दिल,
दौर-ए-महशर देख लो मजबूत घर भी ढ़ह रहे .
कितना समझाया कहीं तूँ और डेरा डाल ले,
मेरा घर अपना समझ कर दुख सदा से रह रहे
wahhh achhe ashar kavi kulwant ji
अच्छी ग़ज़ल ..!!
बददुआ निकली तड़प के जब हुए बरबाद दिल,
दौर-ए-महशर देख लो मजबूत घर भी ढ़ह रहे .
बधाई,
केवल बहर-काफिया के पैमाने से ग़ज़ल का मूल्यांकन नहीं होता। ग़ज़लकारों को भाव, ख़्याल, तेवर और सरोकार को भी ऊपर रखना चाहिए, साथ में प्रवाह का भी। मुझे यह बेहद कमज़ोर ग़ज़ल लगी।
ग़ज़ल कुछ कमज़ोर है लेकिन एक दो शे'र सही भी है.
बददुआ निकली तड़प के जब हुए बरबाद दिल,
दौर-ए-महशर देख लो मजबूत घर भी ढ़ह रहे
gajal padhte padhte arth samjahne ke liye dimag lagana padta hai.
teek gajal hai.
kulwant ji ko badhayee.
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