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Friday, June 26, 2009

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं


हिन्द-युग्मी मनु-बेतखल्लुस यूनिपाठक भी रह चुके हैं, कार्टूनिस्ट हैं, कहानीकार हैं और समय-समय पर अपनी कविताओं-ग़ज़लों से भी नवाज़ते रहते हैं। मई माह की प्रतियोगिता में इन्होंने भाग लिया, और प्रतियोगिता के बाग में फूल भी खिलाया।

कविता

मिला जो दर्द तेरा और लाजवाब हुई
मेरी तड़प जो खींची तो, ग़म-ए-शराब हुई

कोई खबर न हुई, जब थी लाख परदों में
फलक से टूट के शबनम, सुहाना बाब हुई

वो क्या नज़र थी के यूं चाक हो गया सीना
वो क्या अदा थी, के दिल पर मेरे अजाब हुई

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

शब्दार्थः-
बाब- द्वार, अज़ाब- दुःख, पीड़ा, परेशानी, विसाल- मिलन, संयोग, दीद- दर्शन


प्रथम चरण मिला स्थान- नौवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- उन्नीसवाँ

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34 कविताप्रेमियों का कहना है :

ओम आर्य का कहना है कि -

atisundar......laazawaab.....har ek pankti mano ship ke moti ho...

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

Vinay का कहना है कि -

सुन्दर अति सुन्दर


---
मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से

Disha का कहना है कि -

bahut hee khoobasoorat rachanaa hai.
dhanayvaad

rachana का कहना है कि -

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई
मनु जी कितने गहरे भाव हैं .
हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई
गहरा दर्द सुंदर अंदाज में
आप के शेर लाजवाब हैं खुद के बहुत करीब लगते हैं .आप अपनी बात बहुत मधुर तरीके से कह जाते हैं .पढने वाला सोचता रह जाता है
बधाई
सादर
रचना

Riya Sharma का कहना है कि -

मनु जी
आपका भी जवाब नहीं !!!!
कहीं भी , किसी भी रूप में ग़ज़ल लिख देतें हैं

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

Amazing !!

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

वो क्या नज़र थी के यूं चाक हो गया सीना
वो क्या अदा थी, के दिल पर मेरे अजाब हुई
मनु साहब , यह बेहतरीन शे'एर है. संभाल कर रख लीजिये.

कोई खबर न हुई, जब थी लाख परदों में
फलक से टूट के शबनम, सुहाना बाब हुई
'बाब' का अर्थ द्वार से होता है लेकिन साहित्य में अध्याय ( chapter ) से भी होता है इस लिए इस शब्द का प्रयोग शबनम के साथ थोडा मुझे आखर रहा है.

बाक़ी शे'एर भी उम्दा किस्म के हैं क्लासिकी अंदाज़ के
प्रसन्न रहिये

manu का कहना है कि -

जी अहसन साहिब,
मैंने भिअभी अभी आकर ही देखा है के इसके अर्थ लिखे हुए हैं,,,जबके मैंने नहीं लिखे थे,,,,
हालांके लिखने चाहिए थे,, बे/अलिफ़/बे---बाब,,,,
मैंने भी इसे स्वर्णिम-अध्याय ही सोच कर लिखा है .. इसका अर्थ द्वार भी होता है ये आज से पहले नहीं मालूम था....आप सभी का गजल पसंद करने और अहसन जी का एक नए जानकारी से रूबरू कराने हेतू ,,
बहुत बहुत आभार,,

"अर्श" का कहना है कि -

MANU JI KYA BAWALE HO GAYE HO JI AAP KYA KOI AISE SHE'R LIKHTAA HAI KE SINAA CHIR KE RAKH DE ...... HUZUR KUCH TO KARAM KARO IS NAACHIJ KE LIYE ....AB IS SHE'R KO HI JARAA LE LIJIYE....MAAR DAALAA HAY MAR DALAA..ISHHHHHHHHHHH....

वो क्या नज़र थी के यूं चाक हो गया सीना
वो क्या अदा थी, के दिल पर मेरे अजाब हुई

BAHOT HI MUKAMMAL SHE'R HAI ... BEHTARIN HUZUR.... BADHAAYEE

ARSH

दिपाली "आब" का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

waah sir, bahut khoobsurat ghazal kahi hai.
badhai

neelam का कहना है कि -

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

sabse umda sher
humaari najar se,
deri se comments likhne ke liye maafi chaahti hoon manu ji

Sushil Kumar का कहना है कि -

क्या गजल फ़रमाया है दिल ही नही साँसे भी बागवान हो गयी
गजल है ऐसी कि रूह तक डूब कर बाग-बाग हो गयी।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मनु जी..
मुझे ये शे’र सबसे अधिक पसंद आया..

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई
अपने समझ तो केवल ये दो पंक्तियां ही आईं.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

मुझे यह शेएर बहुत पसंद आया.
मनु जी कभी कभी बहुत जज्बातीपन मिलता है आपकी शाएरी.

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

मनुजी,
बहुत ही संजीदगी के साथ शब्दों को सजाया है |
मनु मुकम्मल हुआ 'बेतखल्लुस' होकर
अशआर कीमती हुए ग़ज़ल लाज़वाब हुई|
*
saadar,
vinay k joshi

स्वप्न मञ्जूषा का कहना है कि -

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

मनु जी, सबने सबकुछ कह दिया, और हमारे पास शब्द ही नहीं रहे, आपकी तारीफ करने के लिए ...
बस हम तो फ़िदा हो गए ...


हमने होंठ सीना ही सही समझा
अल्फाज़ की कमी भी जनाब हुई

Nikhil का कहना है कि -

मिला जो दर्द तेरा और लाजवाब हुई
मेरी तड़प जो खींची तो, ग़म-ए-शराब हुई
यहां 'तो' का प्रयोग मेरे हिसाब से लय. तोड़ रहा है....

कोई खबर न हुई, जब थी लाख परदों में
फलक से टूट के शबनम, सुहाना बाब हुई
बढ़िया शेर...
वो क्या नज़र थी के यूं चाक हो गया सीना
वो क्या अदा थी, के दिल पर मेरे अजाब हुई

फिर एक शब्द ज़्यादा है, 'के' या 'यूं'हटाकर पढ़ने में ज़्यादा चाक हो रहा है सीना....और जल्दी भी हो रहा है....

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

ये तो आप दर्द साझा कर रहे हैं, शायद मेरी नज़्म अब तक याद है...

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई
ये अच्छा है....शेर कहने का सबसे आसान फारमूला है....

कुल मिलाकर अच्छी लय में है ग़ज़ल...बरकरार रखें मेरे मनु माइकल जैक्सन....

Harihar का कहना है कि -

मिला जो दर्द तेरा और लाजवाब हुई
मेरी तड़प जो खींची तो, ग़म-ए-शराब हुई
मनुजी, बहुत सुन्दर गज़ल !

सदा का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई ।

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, बधाई ।

manu का कहना है कि -

nikhil ji,
kisi ki yaad mein duniyaa ko hain bhulaaye huye....
zamaana gujraa hai apnaa khyaal aaye huye.......

film jahaanaaraa ke rafi saahib dwaaraa gaaye is geet ki dhun par aap ye gaayeinge to spasht ho jaayegaa....

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

मनु जी
आप तो बड़े बड़े शायरों वाली गजले लिखा रहे हैं ....
हर शेर अच्छा लगा बहुत अच्छा. अहसन जी ने ठीक कहा मुझे भी द्वार शब्द थोडा खटक रहा था
लेकिन गजल इतनी अच्छी है की कुछ भी पचाने को मन कर जाता है
ऐसी गजलें एकत्रित करते रहें जल्द ही एक बढ़िया गजल संग्रह तैयार हो जाएगा

साधुवाद
अरुण मित्तल अद्भुत

Pooja Anil का कहना है कि -

मनु जी,

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने, सभी अशार सुन्दर लगे. मुबारकबाद कबूल करें.

दर्पण साह का कहना है कि -

kisi bhi kavita ki...
...kisi bhi nazam ki...
...kisi bhi ashar ki....
samikasha nahi ki ja sakti....
mera dard 9th sthan main hai aur tumahara pehle pe...
....chalo agar kabhi dard napne ki machine banegi to napna usmein mera bhi dard...
...main dard hoon !
hamesha hi....
...ek sa nahi rehta...
....to kaise napoge dard ko?
chaand ke liye bhala kaise kapde banooge?
dard to nanga...
...chaand ki tarah saare daag dikhai dete hai usmein...
...to main nahi janta(shayad itna aklmand nahi hoon) ki manu ji ke dard ko kaunsa sthan mila,
par wah karna bhi azeeb sa lagta hai dard mai...

...kyunki kavita ki to samiksha ki ja sakti hai...
...dard ki shayad nahi !!

Unknown का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

ये दो शेर बहुत अच्छे लगे
ग़ज़ल पढ़कर मज़ा आ गया

Unknown का कहना है कि -

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

हुआ तू कब भला रुसवा मेरे विसाल से कह
मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई

ये दो शेर बहुत अच्छे लगे
ग़ज़ल पढ़कर मज़ा आ गया

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

मनु जी आदाब......

किसी ने खबर दी की मनु जी ने हिंद युग्म में गज़ब ढाया है तो देखने चले आये ......

कोई खबर न हुई, जब थी लाख परदों में
फलक से टूट के शबनम, सुहाना बाब हुई

वाह.......!!!!!
कहाँ - कहाँ से ढूंढ कर लाते हैं इतने बढिया शे'र ....?

और ये तो माशाल्लाह दिल छु गया .....

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई

सूखा गुलाब ...!!!
कमाल की उपमा ....वाह ....!!

मुझे ही दीद तेरी कब, बगैर ख्वाब हुई.....लाजवाब......!!

न जाने आप अब तक कहाँ छुपे बैठ थे .....!!!!!!!!

MANVINDER BHIMBER का कहना है कि -

मुझे ये शे’र सबसे अधिक पसंद आया..

हरेक शाख पे पतझड़ के आशियाने हैं
हरेक आरजू सूखा हुआ गुलाब हुई
सुन्दर अति सुन्दर

neelam का कहना है कि -

harek shaakh pe bahaaron ka mausam ho
harek aarjoo gar surkh gulab jo ho

manu ji humne ulta kar diya aapke sher ko bebahar -bahar ka to hume pata nahi sher-o shaayri bhi hume pata nahi ,par humne socha har koi kuch n kuch suggestion de raha hai to hum bhi bahti ganga me haath dho le .
ha ha ha hah hhhhhhhhhhh(bura mat maaniyega )

Manju Gupta का कहना है कि -

Wah! kamal ki gazal!!!!!!!!!

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

वो क्या नज़र थी के यूं चाक हो गया सीना
वो क्या अदा थी, के दिल पर मेरे अजाब हुई
मनु जी आपकी ग़ज़ल वाकई लाजवाब है |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी,
मेरे पास तो आपकी बेमिसाल गज़लों की तारीफ़ करने के लिए अल्फाज़ ही नहीं हैं. लाजबाब!!!! SUPERB!!!!!
क्या खूब लिखते हैं आप की कोई सोच भी नहीं सकता उन गहराइयों को.

Anonymous का कहना है कि -

मेरी तड़प जो खींची तो ,गमे शराब हुई
यहां या तो तड़प जो खिंचीआनाचाहिये था खींची केवल वज्न पूरा करने हेतु दिया गया लगता है
खींची ही रखना हो तो किसने खींची को बताना पड़ेगा जैसे मैने या उसने खींची तड़प
खिंची तड़प जो मेरी तो ,ग़म-ए-शराब हुई-

manu का कहना है कि -

अनाम भाई......
जिसने भी खींची हो,,,पर ये प्रिंटिंग-मिस्टेक है....
"खिंची'' शब्द ही आना है...अभी भी बड़ी मुश्किल से लिखा है..और इसका वजन भी "खिंची" से ही आयेगा ...
वजन पूरा बैठाने के लिए मैंने इसे खींची नहीं लिखा है...
:)
ध्यान दिलाने का आभार....

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