आख़िरी ख्वाहिश है पूरा कर दूं
कोई मिले शहर का सौदा कर दूं
बंद हों आँखें तो दीदार होता है
सोचता हूँ नींद से तौबा कर दूं
पड़ते हैं जहाँ शैतान को पत्थर
तेरे कूचे को वो मक्का कर दूं
रटता है दिल हर पल इक नाम
सैयाद के हवाले ये तोता कर दूं
ज़िंदगी के लिबास में मौत की बेवा
पूछती है निकाह पक्का कर दूं
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या कह दिया है आपने सुभान अल्लाह
दिल कहता है मैं भी एक गज़ल कह दूँ.
http://deepali-disha.blogspot.com
क्या बात है क्या बात है !
क्या बात है क्या बात है !
बंद हों आँखें तो दीदार होता है
सोचता हूँ नींद से तौबा कर दूं
बहुत अच्छा शेर लगा ,,,
ज़िंदगी के लिबास में मौत की बेवा
पूछती है निकाह पक्का कर दूं
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.
कबिले तारिफ..........
विपुल भाई, आखिरी की पंक्ति में तो आपने जान ही हत ली...
बहुत ही जानदार प्रस्तुति...
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छा विपुल भाई
पड़ते हैं जहाँ शैतान को पत्थर
तेरे कूचे को वो मक्का कर दूं
ये शेर बहुत अच्छा लगा
बहुत बढ़िया बधाई
वाहवा.................
यह ग़ज़ल अगर किसी कस्बे के भी मुशाएरे में पढ़ी जाए तो हूट हो जाए गी . पहला शे'एर छोड़ के कोई प्रभाव नहीं डालता है.
ahsan bhaai ,
khaas aapke liye hi
kudarat ko bhi naapasand hai sakhti bayaan me ,
bakshi nahi usne bhi haddi jubaan me ,
ye waali baat aapko kaisi lagi .bataayiytega jaroor
kudarat ko naapasand hai sakhti bayaan me ,
bakshi nahi "hai" usne bhi haddi jubaan me ,
ab shaayad theek hai...
:)
par ye vipul bhaai to apne DARD-SPESHLIST the.... ye aaj kis mood mein hain...
नीलम जी,
अच्छा शे'एर है. पसंद आया.
तल्क़ीन के लिए शुक्रिया. आप की बातों से हमेशा लुत्फ़न्दोज़ होता हूँ.
मनु जी,
शुक्रिया
बंद हों आँखें तो दीदार होता है
सोचता हूँ नींद से तौबा कर दूं...
विपुल भाई... मुझे तो ये पसंद आया...
बाकियों में वो मज़ा नहीं....
तौबा कर दूं...
वैसे 'तौबा कर लूँ ...' मुहावरा एस्ते'माल होता है. कृपया इस की पुष्टि एनी स्रोतों से भी कर लें
Short-sweet gazal.
बंद हों आँखें तो दीदार होता है
सोचता हूँ नींद से तौबा कर दूं।
बहुत ही बढि़या लिखा है आपने ।
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल...बधाई
मुझे ग़ज़ल सुनना उतना ही पसंद है जितना लिखना नापसंद! अव्वल तो यह हज़ल है ग़ज़ल नहीं|मुशायरे में बुलाया जाउ ये हसरत भी नहीं| दिल से निकली बात में यकीन रखता हूँ चाहे शैली कोई भी हो|गज़ल मेरा इलाक़ा नहीं..मनु जी अगली बार दर्द से ही रुबरू होंगे आप|
नीलम जी बढ़िया शेर सुनाने के लिए धन्यवाद और एहसान जी यूँ ही खरी-खरी कहते रहिए| सुधार के लिए कमियाँ जानना पहली आवश्यकता है|
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
बंद हों आँखें तो दीदार होता है
सोचता हूँ नींद से तौबा कर दूं
ये शेर अच्छा लगा
बधाई
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