( घरेलु हिंसा के विरुद्ध संघर्ष – एक शीर्षक )
मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी
खौफ़ दिया क्रूर कर्मों से
भँडास निकाली जी भर कर
रोई मैं चुपचाप अकेले
करवट बदली रात-रात भर
पर न बहाऊंगी सावन अब
बिजली बन कर कड़कूँगी मैं
वार किया तो चूप न रहूँगी
मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी
प्रतिकार में तेवर बदलु
माथा मेरा ठनक गया तो
एक चीख न्यायालय पहुँचे
बात बात में तुनक गया तो
जहर बहेगा आँचल से
आँखों से खून के फव्वारे
प्रतिशोध से क्यों न कहूँगी
मारपीट अब बहुत हो गई
ओछी हरकत अब न सहूँगी
-हरिहर झा
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
जहर बहेगा आँचल से
आँखों से खून के फव्वारे
aakrosh ki paraakashtha .
हरिहर जी,
कविता सीधे सीधे हाल कुछ इस तरह बयाँ करती है कि जैसे किसी आँखों देखे हाल को सुना जा रहा हो।
ऐसे ही ना जाने कितने दृश्य हमारे मन पर अंकित होंगे, उन्हें आपने बाहर ला, झाड़-पोंछ शब्द दे दिये।
बधाईयाँ
मुकेश कुमार तिवारी
siidhi-saadhi, saral, samajh mein aane wai kavita.
is ki saadgi hi is ki khoobsoorti hai.
-ahsan
हैं वही हालात
तुम कमजोर या मजबूत हो,
यह तुम्हीं को
करना है तय.
तुम हार लो
या जीत लो.
प्रतिकार में तेवर बदलु
माथा मेरा ठनक गया तो
एक चीख न्यायालय पहुँचे
बात बात में तुनक गया तो
" khushi mein tewar nahi badaltey....... justice ke liye...ladna to padega hi. ... accha prayas
हिंद युग्म पर ओछी हरकत,,,,,,
हम तो घबरा ही गए थे,,,,, अब तो हम ऐसे कमेंट भी नहीं करते ,,,,,
फिर आपकी रचना पढी,,,,,
to pataa lagaa,,,,
बहुत अच्छी है,,
झा जी,
सदियों से विभिन्न रूपों में सताई हुई नारी का चित्र आपने अपने शब्दों में बखूबी उतार दिया है. दुनिया में पता नहीं कितनी औरतें दुखों की पराकाष्ठा को झेल रही हैं लेकिन आगे बढ़ कर आने की हिम्मत नहीं करतीं और जो भी करती हैं उनकी तरफ समाज प्रशंशा की वजाय तिरस्कार की नज़रों से देखने लगता है. जो औरत अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह निभाती है वोह सम्मान की अधिकारी होती हैं, अपमान की नहीं. लेकिन किस-किस को समझाया जाये इस संसार में.
और मनु जी,
आप भी ना क्या चीज़ हैं. इतनी जल्दी घबरा क्यों जाते हैं पूरी बात बिना जाने hee. Very bad habit (ही..ही..ही..).
हरिहर जी बहुत ही सुंदर तरीके से आप ने अपनी बात कही
सच उजागर करती कविता
रचना
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