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Wednesday, April 15, 2009

मौत न जाने कैसी होगी ?




दिल ग़म से बेहाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है

मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है

शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है

वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है

हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है

क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है

दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है


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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

PREETI BARTHWAL का कहना है कि -

बहुत अच्छा लगा आपकी रचना को पढ़कर बहुत खूब लिखा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है

दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
बहुत बढ़िया।

SUNIL KUMAR SONU का कहना है कि -

jise gam mili ho bhar-bhar mutthi,use khushi se sarokar kya

Divya Narmada का कहना है कि -

lajawab.

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

श्याम जी,

मुझे तो यह गजल कम एक चिकित्सक का प्रिस्क्रिप्शन ज्यादा लगी खासकर एक मनोचिकित्सक का, इन पंक्तियों के देखे :-

शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है

और वहीं साथ-साथ जीवन का फलसफा भी किसी सूफी तरह देता है, इन पंक्तियों पर गौर फरमायें :-

दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है

एक बहुत ही अच्छी रचना के लिये, ढेरों बधाईयाँ.

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

manu का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर गजल श्याम जी,
चिकित्सक वाली बात से तो सहमत हो सकता हूँ पर मनोच्कित्सक वाली बात से शायद नहीं,,,
पर अच्छी गजल ,,,, गजल के जैसी गजल....
बधाई स्वीकारें ..

Riya Sharma का कहना है कि -

वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है

श्याम जी

उम्दा ग़ज़ल !!!
ज़िन्दगी का सही रूप दर्शाती

सादर !!!

गोविन्द गुलशन का कहना है कि -

ग़ज़लकार नाम नहीं दिया गया है "घर को क्यों खंगाल रहा है" मीटर में नहीं है. "घर को कौन खँगाल रहा है होना चाहिए

श्याम सखा श्याम का कहना है कि -

गज़ल कार का नाम तो लिखा है हुजूर-और वह है श्याम सखा श्याम
"घर को क्यों खंगाल रहा है"अगर खंगाल को खँगाल लिखे तो जरूर बहर से बाहर हो जाएगी लेकिन खंगाल मे तो बहर में ही रहेगी
हां खँगाल लिखें तो इसे-"घर को क्यों तू खँगाल रहा है"कर सकते हैं,"घर को क्यों कौन खंगाल रहा है"्से तो भाव गाइब हो जाएगा शे‘र का

Harihar का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर गज़ल श्यामजी!

Anonymous का कहना है कि -

क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है

Mansoor ali Hashmi का कहना है कि -

khubsurat gazal, har sher umda hai,
regards.

m.hashmi

rachana का कहना है कि -

दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
क्या खूब लिखा है पूरी ग़ज़ल ही बहुत सुंदर है
सादर
रचना

Yogi का कहना है कि -

Bahut hi badhia..
har ek sher bahut hi gazab ka hai...
Lajawabb...shabdo. mein kya tareef karu ab is gazal ki..

Bahut badhia...

Amazing...

manu का कहना है कि -

govind ji ,
mere khyaal se sab kuchh bahar mein hai aur theek hai...

प्रिया का कहना है कि -

वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है

sahi hain waqt aur haalat ke aagey insaan bebas aur lachaar ho jata hain

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