सपने (1)
सपने ऐसे थे....
कि कोंपल भी निकलते....
और पत्ते सूखे....हरे होकर
पेड़ों से लग जाते
कि समंदर भी रहते
और कुछ मीठे हो
सूखी नदियों से मिल जाते
कि सपने....सपने होते
और कुछ सच्चाइयों में भी ढ़ल जाते
सपने (2)
पता नहीं आदमी
ऐसे सपने देखता ही क्यों है
जिसे पूरा.... वो अपने दम पर
कर ही न सके....
जब से होश संभाला है
सपने देखने वालों से परेशान हूं
और उससे ज्यादा परेशान इस बात से
कि कोई भी सपना
सिर्फ अपने लिए नहीं देखता !
सपने (3)
हर किसी के सपने से
कोई जुड़ा है
ऐसा क्यों है...
क्या इसलिए कि
सपने में साये साथ नहीं देते
.....और आदमी
अपनी परछाई की आदत का मारा हुआ।
सपने (4)
मेरे सपनों में कोई था
और उसके सपने में...कोई और
मेरी मजबूरी है कि
मैं उसे उसका सपना
हासिल करने में मदद करुं
क्योंकि मुझे पता है...
कि मैं अपना सपना हासिल करके भी
नहीं हासिल कर पाऊंगा...
...और वो अपना सपना खोकर भी
हासिल कर ही लेगा !
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
चारों सपने बहुत अच्छे .....अभिषेक जी.........
पर आखिरी सपना...............वही........
पर मुझे आसानी से हजम हो गया........
ख्वाब अपने तेरे ख़्वाबों को अता करके चले
चाह अपनी, चाह पर तेरी फ़िदा कर के चले
दिल की ख्वाहिश थी, तुझे भी बावफा करके चले
"बे-तखल्लुस" इश्क का यूँ हक अदा करके चले
dusre ke sapne jab poore karne ki khwaahish hoti hai to apne sapnon ki khubsurti nikhar jaati hai......sapnon ka har padaaw bahut hi achha hai.....
अभिषेक जी!
चारों लघु-कविताएँ अच्छी हैं। तीसरी बेहतरीन लगी।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
आखिरी सपने में मजा आ गया!!!
बहुत खूब सपने
पढ़ कर अच्छा लगा
मनु जी आप के शेर लाजवाब
सादर
रचना
सपने और जिन्दगी मे बहुत ज्यदा अंतर नही होता है, सपने सुप्त हकीकत हैं और जिन्दगी जागृत सपना।
आपके विभिन्न विचार आपकी सपनों की व्यख्या सराहनीय प्रयास है।
ख्वाब अपने तेरे ख़्वाबों को अता करके चले
चाह अपनी, चाह पर तेरी फ़िदा कर के चले
घर से दो -दो सेरिडोन खा कर चले
कम्बखत दर्द फिर भी न घटे -न घटे
अब तो शेर की भी टांग टूट गई ,अब क्या होगा ??????
दोनों शेर बेहतरीन हैं वाकई
abhisek ji ,kaavyapaath me aapki
aawaj suni ,bahut hi taajgi liye hue ,hume to lagta hai seriously lijiye hum to aapki aawaj ko amitaabh ke baad rakh rahen ,are wahi apne BIG B .
kavitaayen achchi hain ,par unse kahi jyaada manu ji sher achche lage
very sweet n touching poem.
पता नहीं आदमी
ऐसे सपने देखता ही क्यों है
जिसे पूरा.... वो अपने दम पर
कर ही न सके....
Mera manana hai hamara=e sapne hi hame agae badnae ke liye, kuch karne ke liye uksate hain....har sapna poora nahi ho phir bhi koshish karna hamra farz hai.
उससे ज्यादा परेशान इस बात से
कि कोई भी सपना
सिर्फ अपने लिए नहीं देखता !
Bahut sundar bhav hain.....jab hum kisi aur ke sapne sache dil se poore karne ki koshish karte hain toh uska maja....uss se mila sukon alag hi hota hai. Haan agar koi galat samjhe toh dukh jaroor hota hai.
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