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Wednesday, January 07, 2009

प्रेम


तुम
एक दिन
उलझे मंझे की तरह
लिपट गए थे
मेरी जिन्दगी से

मैंने
घंटों.....
धूप में खड़े होकर
तुम्हें सुलझाया है ।

आज
जब तुम्हारे सहारे
मन-पतंग
हवा से बातें करता है
तो झट
तुम्हें
अपनी उंगलियों में
लपेटने लगती हूँ ।

डरती हूँ
कि कहीं
किसी की
नज़र न लग जाए........

डरती हूँ
कि कहीं
तू
फिर
उलझ न जाए......!

--देवेन्द्र कुमार पान्डेय

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

वाह वाह..........
बहुत सुंदर लिखा है
उलझे मांझे से सुलझते हुवे दिल की गाथा

Unknown का कहना है कि -

जब तुम्हारे सहारे
मन-पतंग
हवा से बातें करता है
तो झट
तुम्हें
अपनी उंगलियों में
लपेटने लगती हूँ|
ati uttam

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर रचना है | कम शब्दों में बहुत गहराई लगी |

अवनीश तिवारी

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

कम शब्दों का कमाल.. क्या बात है!!!

Riya Sharma का कहना है कि -

मैंने
घंटों.....
धूप में खड़े होकर
तुम्हें सुलझाया है ।

प्रेम की गहराई लिए खूबसूरत अभिव्यक्ति

Anonymous का कहना है कि -

gaagar mein sagar ka behatarin udaharan.sundar rachna.
ALOK SINGH "SAHIL"

Nikhil का कहना है कि -

अच्छा है...
मगर अपना पक्ष भी रखें....आप लपेटे जा रहे हैं मगर आपकी प्रतिक्रिया क्या है....

शोभा का कहना है कि -

वाह बहुत सुन्दर। बहुत सुन्दर और नवीन उपमान दिए हैं। बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

आप ने एक लड़की के मन की बहुत सुंदर तरीके से कह दी .प्रेम हो या रिश्ते उलझते दोनों ही हैं .बहुत धैर्य से दोनों को सुलझाना होता है
सुंदर लिखा है आप ने
सादर
रचना

manu का कहना है कि -

मान्झों का क्या है , वो उलझें के सुलझते रहे.
पर पतंग के कारवां हर हाल में चलते रहे ..

निखिल जी, माफ़ करना ज़रा देर हुई आने में
था कहीं मसरूफ , किसी दोस्त को मनाने में..

अभिन्न का कहना है कि -

पाण्डेय जी सुन्दर सोचा ओर लिखा है आपने ...लड़की का डरना शास्वत है


डरती हूँ
कि कहीं
तू
फिर
उलझ न जाए......!

विश्व दीपक का कहना है कि -

देवेन्द्र जी! प्रेम की सुलझन और उलझन में अच्छा अंतर दिखाया है आपने।
गहरे भाव हैं।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

इतनी अधिक तारीफ पढ़कर तबियत मस्त हो गई। मैने भी जब यह कविता पढ़ी तो मुझे सहसा यकीन नहीं हुआ कि इतनी जल्दी यह कैसे हुआ । बाद मे मुझे लगा कि माँ सरस्वती की कृपा से एक प्रेमी ने अपनी प्रेयसी के नयनों की चमक--दिल की धड़कन--मन की चाहत एक झटके में पढ़ ली और इसे कुछ ही लम्हों में कागज़ में उतारने में सफल हो गया।
--निखिल जी ऐसे में सिर्फ लपेटे जाने के सिवा और क्या हो सकता है----
--सभी प्रशंसकों को कोटि-कोटि धन्यवाद।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

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