जीवन को इक गीत बनाएँ
सुर ताल से इसे सजाएँ ।
खुशबू से इसको महकाएँ
अधरों से सदा गुनगुनाएँ ।
खुशियों की हो छांव घनेरी
आशा निखरी धूप सुनहरी ।
कल कल बहती नदिया गहरी
उपवन भरी छटा हो छहरी ।
जीवन को इक गीत बनाएँ
आँखों में सपने बसाएँ ।
उड़ने को आकाश दिलाएँ
सरगम से मोती बिखराएँ ।
कवि कुलवंत सिंह
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3 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुशियों की हो छांव घनेरी
आशा निखरी धूप सुनहरी ।
कल कल बहती नदिया गहरी
उपवन भरी छटा हो छहरी ।
bahut achchi kavita kulwant ji
रचना अच्छी है |
बधाई |
अवनीश तिवारी
ऐसा लगता है कि जैसे कुछ लिखना था, इसलिए चलो लिख डालते हैं। कविता अब इन बातों से बहुत आगे निकल चुकी है।
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