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Wednesday, January 28, 2009

जीवन को गीत बनाएँ


जीवन को इक गीत बनाएँ
सुर ताल से इसे सजाएँ ।
खुशबू से इसको महकाएँ
अधरों से सदा गुनगुनाएँ ।

खुशियों की हो छांव घनेरी
आशा निखरी धूप सुनहरी ।
कल कल बहती नदिया गहरी
उपवन भरी छटा हो छहरी ।

जीवन को इक गीत बनाएँ
आँखों में सपने बसाएँ ।
उड़ने को आकाश दिलाएँ
सरगम से मोती बिखराएँ ।


कवि कुलवंत सिंह

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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

खुशियों की हो छांव घनेरी
आशा निखरी धूप सुनहरी ।
कल कल बहती नदिया गहरी
उपवन भरी छटा हो छहरी ।

bahut achchi kavita kulwant ji

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

रचना अच्छी है |
बधाई |

अवनीश तिवारी

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ऐसा लगता है कि जैसे कुछ लिखना था, इसलिए चलो लिख डालते हैं। कविता अब इन बातों से बहुत आगे निकल चुकी है।

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