गुमराह हो जाते है जब
उजालों के मकसद वहीं से,
रात शुरू होती है
मुस्कराए कोई मजलूम जब
कातिल को देखकर, समझलो
शुरूआत शुरू होती है
ठंडक देने लगते है जब
तपती लू के थपेडे, जलाने को
बरसात शुरू होती है
आजाद है महसूसियत
हमारे जहन में, हमसे परे
हवालात शुरू होती है
हम्माम में आने और जाने के
बीच ही कही, हर एक की
औकात शुरू होती है
ऊपर रुह नीचे ज़िस्म दरमिया
आग का दरिया, इसी में डूब
आदमज़ात शुरू होती है
तरन्नुम सिसकियों का औ झूमते अश्क
आरिज पर, क्या खूब दर्द की
बारात शुरु होती है
ख़त्म हो जाते है जहाँ
लफ्जो के कारवां, वहीं से मेरी
बात शुरू होती है
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब,
तारीफ के लिए शब्द नही मिल रहे ||
बहुत ही अद्भुत||
साधुवाद...
ख़त्म हो जाते है जहा
लफ्जो के कांरवां, वही से मेरी
बात शुरु होती है
बहुत खूब विनय जी
हर जुमला तारीफे काबिल
सुंदर !!!
आपकी नज्म पढकर निदा फाजली याद आ गये....
चांद से,फूल से या मेरी ज़बां से सुनिए,
हर तरफ आपका चरचा है, जहां से सुनिए,
मेरी आवाज़ ही परदा है मेरे चेहरे का,
मैं हूं खामोश जहां,मुझको वहां से सुनिए.....
निखिल
ख़त्म हो जाते है जहा
लफ्जो के कांरवां, वही से मेरी
बात शुरु होती है...
शब्द तो मेरे पास भी नहीं रहे...
Beautiful Vinay ji!! Too good. But I'd still like to repeat my previous feedback :) Give spaces !!
RC
ख़त्म हो जाते है जहा
लफ्जो के कांरवां, वही से मेरी
बात शुरु होती है
बहोत खूब साहब वाह क्या खूब लिखा है आपने मज़ा आगया ढेरो बधाई स्वीकारें साहब...
अर्श
आज तो जो भी पढ़ रहा हूँ ...मस्ती से भरा जा रहा हूँ..........ये भी लाजवाब रचना
बधाई
ख़त्म हो जाते है जहा
लफ्जो के कांरवां, वही से मेरी
बात शुरु होती है
क्या खूब लिखा है ...उम्दा दर्जे की शायरी ..पढ़ कर लगा की लिखने वाले ने दिल से लिखा है ........धन्यवाद
umdaa.......
ALOK SINGH "SAHIL"
आजाद है महसूसियत
हमारे जहन में, हमसे परे
हवालात शुरू होती है
वाह ! वाह ! मरहबा ! क्या बात है
तरुण
ख़त्म हो जाते है जहाँ
लफ्जो के कारवां, वहीं से मेरी
बात शुरू होती है
वाह.........बहुत खूब लिखा
मज़ा आ गया
ग़ज़ल की रवानी है इसमे
बहुत ही सच्चाई लिए मनोभाव हैं,
बहुत सही कहा-तभी शुरुआत होती है !
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