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Saturday, December 27, 2008

*****शाखों में जा दुबकी कलियां


धरती सोई थी
अम्बर गरजा

सुन कोलाहल
सहमी गलियां
शाखों में जा
दुबकी कलियां

बिजली ने उसको
डांटा बरजा
धरती सोई थी अम्बर गरजा

राजा गूंगा
बहरी रानी
कौन सुने
पीर-कहानी

सहमी सी गुम-सुम
बैठी परजा[प्रजा]
धरती सोई थी अम्बर गरजा

घीसू पागल
सेठ-सयाना
दोनो का है
बैर पुराना

कौन भरेगा
सारा कर्जा
धरती सोई थी ,अम्बर गरजा

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

raja goonga behri raani kaun sune kahaani sach kaha

Divya Narmada का कहना है कि -

मन को छूता
गीत है सिरजा..

भाषा सरल सहज
भाती है.
सलिल सखा से
मिलवाती है.
मीत गीत को
लेकर घर जा...

हिन्दी-हिंद
युग्म है सुंदर.
चूक न ऐसा
फ़िर हो अवसर.
सारस्वत पूजा
तो कर जा...

वहम अहम का
पाले बैठा.
जनगण-मन में
कभी न पैठा.
गर जीना चाहे
तो मर जा...
* * * * * * * * * *
अच्छी रचना हेतु बढ़ाई. पढ़कर जो उतरा वह सादर समर्पित.

nitin का कहना है कि -

कोतवाली शमशान
न्यायालय सुनसान
कहाँ हो सुनवाई
फरियादी मरता है
तो मर जा
धरती सोई
और अम्बर गरजा
---------------
संजीव सलिल जी की भी अच्छी कृति....
दोनों को बधाई...

नितिन जैन

manu का कहना है कि -

वहम अहम् का पाले बैठा
जन गण मन पे कभी ना पैठा..............

वाह आचार्या ..वाह ..
प्रणाम....

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar..
ALOK SINGH "SAHIL"

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar..
ALOK SINGH "SAHIL"

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

घीसू पागल
सेठ-सयाना
दोनो का है
बैर पुराना
कौन भरेगा
सारा कर्जा
धरती सोई थी ,अम्बर गरजा

यथार्थ के धरातल पर कही बेहतरीन रचना

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