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Saturday, December 13, 2008

लडकियां


पिछले दिनो एक लडकी से तार्किक-चर्चा(बहस कहना उपयुक्त नहीं होगा)हुई|विषय था लडके और लडकिय़ों में से कौन अच्छा है। बहस के दौरान उस लडकी ने लडकियों का पक्ष बडॆ दमदार तरीके से रखा। ईमानदारी से कहूं तो मैनें खुद को थोडा-सा कमज़ोर भी महसूस किया। बहस में मज़ा तो आया ही साथ में कुछ नया सोचने को भी मिला। क्या-क्या बातें हुई आप सब से बांटना चाहता हूं।
इस कविता के जरिये पहले उस लडकी ने जो कुछ कहा उसे मतलब लडकियों का पक्ष रख रहा हूं। बाद में कभी अपनी बात करूंगा। कविता पढने वाले सारे लडकों से आग्रह है ज़रा बारीकी से विश्ललेषण कर टिप्पणी द्वारा कुछ ठोस बिन्दू मुहैया करायें जिससे मैं अपना मतलब लडकों का पक्ष मजबूती से रख सकूं। और लडकियां भी सूचित करें कि उनकी बात उन तक पहुंची कि नहीं।
जिसकी बात कह रहा हूं उसका नाम नहीं लिखूं तो गलत होगा। भाव हैं इन्दौर की आई.पी.एस. एकेडेमी में एम.सी.ए. अंतिमवर्ष की छात्रा प्रीति चौधरी के और शब्द मेरे।



ट्रैफिक के शोर से तंग आकर
कभी पेनकिलर नहीं खातीं
सन्नाटॆ की चीखों से लडना भी
खूब आता है उन्हें
जो अच्छा लगता है..
उसे देखकर बनाती हैं मुंह
क्योंकि
अनचाहा मतलब निकलने का डर
बहुत बडा होता है !
अक्सर लगते रहे हैं उन पर
दिल तोडने के इल्ज़ाम
मगर..
दिल तोडने का बेहिसाब दर्द
उन्हीं के हिस्से आता है!
कुछ जताने में फिसड्डी..
बदल जातीं हैं रिश्ते बनने के बाद।
ज्यादा ध्यान रहते हैं अब
बर्थ-डे और शादी की साल-गिरह..
फोन ना करने की शिकायत
बन जाती है
ज्यादा ध्यान रखने की बीमारी !

आंखें बन्द करके ही
देख लेती हैं सबकुछ
उन्हे नहीं होती ज़रूरत
अपने पर्स में
किसी भी तसवीर की !
कभी इतनी स्वार्थी
कि चिढ होती है
और कभी इतनी उदार
कि गुस्सा आ जाये देखकर..
सीता भी वो है और शूर्पणखा भी!
अधिकतम भी वही और न्यूनतम भी !
सिर्फ सांस लेना ज़िन्दगी नहीं होती
जानती हैं वो..
और यह भी
कि सिर्फ प्यार करना भी नहीं!
बिना एम.बी.ए. की
जन्मजात मैनेजर होतीं हैं
सच्ची लडकियां !


हम सबके लिये
खुदा होते हैं मां-बाप
मगर शादी के बाद
बदल लेती हैं..
वो अपना खुदा भी !
और फिर..
खुदा की खुशी के लिये
सपनों के मुंह में कपडा ठूंसकर
हंसते हुए..
कत्ल कर देतीं हैं उनका !
जैसे परिन्दा
खुद ही काट ले अपने पर
और आंसू का
एक कतरा भी ना गिरे !

बिना आंसू बहाए रोना
खूब सिखाया है भगवान ने
और मौका भी देता है
कला आज़माने का।
वैसे..
आंसू बहाकर भी रोतीं है वो अक्सर
क्योंकि जानती हैं
रोना सिर्फ दुख जतलाने के लिये नहीं होता।
रोने के बाद
पूरी करनी होती है चिंटू की स्वेटर,
गलाने होते हैं बाबूजी के चने,
और सास के सिर में मेंहदी लगाकर
चेहरा भी धोना होता है
ताकि आफिस से लौटा पति
देख सके..
हमेशा की तरह हंसमुख बीवी!

सचमुच..
रोना ज़रूरी होता है उनके लिये
शायद इसीलिये बचपन से ही
रोतली होती हैं लडकियां!

हां...
दुनिया का आधार हैं वो।
जानता हूं
कईयों को हो सकता है एतराज़
विश्वास ना हो
तो छीन कर देखो कवि से
उसकी मां और प्रेमिका !
जो हुआ ऐसा...
इतिहास से मिट जायेंगे बडे-बडॆ नाम
और लुप्त हो जायेगा
दुनिया का अस्सी-प्रतिशत साहित्य।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

21 कविताप्रेमियों का कहना है :

Nikhil का कहना है कि -

बढ़िया विश्लेषण....लेकिन लगता है प्रीति जी से बातचीत के बाद आपने अपने कवि को ज़्यादा समय नहीं दिया सोचने का....थोड़ा समय देते तो कविता एक ही दिशा में बहती...
बहरहाल, कुछ प्रयोग बड़े अच्छे लगे..
बिना एम.बी.ए. की
जन्मजात मैनेजर होतीं हैं
सच्ची लडकियां !

विश्वास ना हो
तो छीन कर देखो कवि से
उसकी मां और प्रेमिका

और फिर..
खुदा की खुशी के लिये
सपनों के मुंह में कपडा ठूंसकर
हंसते हुए..
कत्ल कर देतीं हैं उनका !


मेरा मानना है कि इस विषय पर कितना भी लिखा जाए, कम ही पड़ेगा....आलोक धन्वा से लेकर प्रसून जोशी और गौरव सोलंकी तक इस विषय पर लाथ आज़मा चुके हैं और हमेशा ऐसी कविताएं रोचक लगती हैं क्योंकि उम्र के हर पड़ाव पर विपरित लिंग किसी न किसी रूप में आपके अस्तित्व का हिस्सा होता है....

आगे भी ईंतज़ार रहेगा...

निखिल

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

निखिल ने बहुत कुछ लिख दिया। कुछ पंक्तियाँ जिसमें सच्चाई लगती है:

बिना एम.बी.ए. की
जन्मजात मैनेजर होतीं हैं
सच्ची लडकियां !

हां...
दुनिया का आधार हैं वो।
जानता हूं
कईयों को हो सकता है एतराज़
विश्वास ना हो
तो छीन कर देखो कवि से
उसकी मां और प्रेमिका !
जो हुआ ऐसा...
इतिहास से मिट जायेंगे बडे-बडॆ नाम
और लुप्त हो जायेगा
दुनिया का अस्सी-प्रतिशत साहित्य।

गौरव भाई को ज्यादा अनुभव है... तो वही बतायें..

विवेक सिंह का कहना है कि -

भाई दोनों ही अच्छे भी होते हैं और बुरे भी .

Unknown का कहना है कि -

bhai kavita mai dum hai .......
baki tu ladko ka pakch kab rakhega..........

Harihar का कहना है कि -

bahut achchhe Vipul Ji

Divya Prakash का कहना है कि -

भइया विपुल ,
सही बताऊ तो कविता पढ़ के न सही लेकिन कविता के पहले की प्रस्तावना पढ़ के मेरा मन हुआ की कुछ लिखा जाए ..बहुत बहुत धन्यवाद दो आप प्रीती का की आपको तार्किक चर्चा करने का मौका दिया उन्होंने ...
वैसे इस विषय मैं आपको एक भी ठोस बिन्दु मुहैया नही करा सकता मैं केवल और केवल लड़कियों का पक्ष लेने के लिए मजबूर हूँ ... और मुझे लगता है अपने भी यही किया है क्यूंकि कविता का शीर्षक भी "लड़कियां" है न कि "लड़के और लड़कियां" ...
हाँ मुझे लगता है कुछ लोग इससे सहमत नही होंगे शायद ,,,, और लड़कियों के वर्तमान स्वरुप आधार बना कर अपना तर्क भी रखें और कुछ ठोस बिन्दु भी मुहैया करा दें ....लेकिन ये सारेतर्क वितर्क बेमानी ही होंगे ...
मेरी मानो तो आप भी अब अगली चर्चा मैं लड़कियों का पक्ष ले लेना ...वही सही है .....लड़का होके लड़के का पक्ष लिया तो क्या पक्ष लिया .... That would be natural bias only....
PS-हाँ लड़कियों का पक्ष लेने में कभी तर्कों से लेकर उदाहरण तक कोई भी कमी आय तो बन्दा हाज़िर है
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
SIBM,Pune

manu का कहना है कि -

लड़की का ही अक्सर पक्ष लेता हूँ मैं भी ...
चाहे अपने बच्चे हों या सफर में मिलने वाली लडकियां...और विपुल का शुक्रिया के उन्हूने कविता के अलावा भी कुछ कहने का मौका दिया ..नहीं तो हमेशा ख़ुद से ही कहकर रह जाना पड़ता था......." मैं बिना एनी माउस बने कहता हूँ के मुझे चिढ है उन लोगों से जो मेट्रो में या बस में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट देख कर किलसते हैं...."

manu का कहना है कि -

क्या कहा ....विपुल....कविता कैसी है...

"जरा सी उम्र में करता है ग़ज़ब ,
चोट खाई तो जाने क्या करेगा."

बेहद अच्छी

Unknown का कहना है कि -

haan ye baat bilkul sahi hai ........ bahut padne k baad main bhi is ke paksh main hoon

makrand का कहना है कि -

दुनिया का आधार हैं वो।
जानता हूं
कईयों को हो सकता है एतराज़

regards

विपुल का कहना है कि -

मनु जी और दिव्य जी.. आपकी ही तरह मैं भी लड़कियों का पक्ष ही लेता हूँ |
मगर लड़कियों के लिए बहुतो ने,बहुत सा,बहुत तरह का और बहुत खूब लिखा है| मेरा उद्देश्य था कि लड़कों के लिए कुछ अच्छा लिख सकूँ जो शायद कम ही लिखा गया है|यह कविता और भूमिका
भी इसी उम्मीद से प्रकाशित की थी कि कुछ नये विचार मिल सकेंगे|
मगर अभी तक तो..

भूपेंद्रा जी कोशिश कर रहा हूँ|मगर कठिन काम के लिए सहयोग चाहिए...

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

अच्छी कविता, बहुत सार्थक
अलग तरह का लेखन

neelam का कहना है कि -

हम सबके लिये
खुदा होते हैं मां-बाप
मगर शादी के बाद
बदल लेती हैं..
वो अपना खुदा भी !
और फिर..
खुदा की खुशी के लिये
सपनों के मुंह में कपडा ठूंसकर
हंसते हुए..
कत्ल कर देतीं हैं उनका !
जैसे परिन्दा
खुद ही काट ले अपने पर
और आंसू का
एक कतरा भी ना गिरे !
kya baat hai ,behad bhaavpoorn

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कविता अच्छी बनी, दिल से धन्यवाद प्रीति जी का जिन्होने विपुल जी की कलम में भर दी स्फूर्ति और अवतरण हुआ इस प्यारी सी कविता का..

बहुत बहुत धन्यवाद विपुल भाई..

अब रही बात पक्ष और विपक्ष की.. रही बात श्रेष्ठ और निम्न की तो मेरा व्यक्तिगत विचार है कि सभी का अपना अपना अस्तित्व होता है किसी को भी निम्न या श्रेष्ठ कहना मात्र कहना भर होता, वास्तव में सभी श्रेष्ठ भी है और सभी निम्न भी..

क्यूकि श्रेष्ठ और निम्न का आभास अथवा आंकलन तभी सम्भव है जबकि दोनो मौजूद हों
किसी भी पहाड़ पर्वत की ऊंचाई का आंकलन तभी किया जा सकता है जब वहां नींचाई की उपस्थिती हो..
अत: पर्वत ऊँचा कहलाने में जितना महत्व ऊंचाई का है उतना ही नींचाई का.. तो बताईयेगा श्रेष्ठ कौन और अश्रेष्ठ कौन ..

जहाँ किसी पिता / पुत्र / भाई के लिये बेटी/माँ/बहन सर्वोपरि हैं वही किसी माँ / बेटी / बहन के लिये - पुत्र/पिता/भाई ...

प्रसंग लम्बा होता जा रहा है :) माफ कीजियेगा..
"रहिमन देख बडेन को लघु ना दीजिये डारि ।
जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवारि ॥ "

Unknown का कहना है कि -

sir bahut hii achchi kavita likhi hai............................waise ladkiyo ka achcha bataane waale bhi ladke hi hote hai .................isliye ladke hii achche hote hai..............

Anonymous का कहना है कि -

ati uttam vats :-)
sameer bhave

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

बहुत अच्छी चर्चा चल रही है । प्रायः देखा जा रहा है (टिप्पणियों में तथा अन्य जगहों पर भी) कि लड़कियों को अच्छा बताना, उनके गुणों को प्रकाशित कर देना अधिक आसान होता है । क्योंकि यह एक उदार नज़रिया समझा जाता है । अन्यथा जब अपनी अपनी खींचतान होती है तो लोग अपने को ही श्रेष्ठ बताते हैं । वैसे तो अच्छा रहता कि जैसे खुलकर लड़के लड़कियों की प्रशंसा करते हैं, लड़कों के गुणों का प्रकाशन लड़कियाँ करतीं । परन्तु यहाँ तो चर्चा एकतरफा सी चली जा रही है इसीलिए मैं लड़कों के स्वाभाविक गुणों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ । ये सार्वभौमिक नहीं हो सकते क्योंकि अपवाद बहुत होंगे और वे लड़कियों के मामले में भी हैं पर एक सामान्य प्रवृत्ति देखी जा सकती है ।

भारी सामान के साथ लड़के लड़कियाँ यात्रा कर रहे हों तो दूसरों सामान उठवाने में, ले चलने में लड़के अधिक तैयार रहते हैं, यह कोई विशेषता नहीं है क्योंकि प्रकृति द्वारा ही लड़कों को मजबूत शरीर दिया जाता है तो इसके साथ मिलने वाली जिम्मेदारियाँ भी उठानी चाहिए । राह चलते थोड़ा सा अपमान भी कोई कर दे तो अक्सर बिना कुछ कहे उसे उपेक्षित कर देते हैं, पर साथ चलती महिला या लड़की को कोई छूकर निकल जाए या लगातार देखने भी लगे तो क्रोधित हो जाते हैं । अपने अपमान को आसानी से माफ़ कर देते हैं पर साथी या सम्बन्धी लड़की या महिला का जरा भी अपमान बर्दाश्त नहीं करते । यह बात भी सही है कि ऐसा अपमान करने वाले भी अधिकतर पुरुष ही होते हैं, पर वे भी अपनी सम्बन्धी महिला के अपमान को ज्यादा महसूस करते हैं ।

लड़कियों को जब दुःख सहन नहीं हो तो रोना अपना दिल हल्का करने का एक सुगम साधन है । छिपाकर या रो लेती हैं या सबके सामने भी रोने में अपनी हीनता नहीं समझती हैं, और यह उनके लिए कमजोरी का सूचक नहीं है । पर लड़के? रोना उनके स्वभाव के खिलाफ़ है । कमज़ोर दिखना इज्जत के खिलाफ़ है । सदा मजबूत और दृढ़ दिखना उनकी जरूरत होती है । अपने को अटूट सहारा साबित करना उनकी प्रतिबद्धता होती है । अगर कोई अपने धीरज से हारकर उसके सीने पर सिर रखकर रो रही है, उसका दिल भी उसकी भावनाओं को समझता है और उसके साथ रोना चाहता है, पर उसके सामने प्रतिबद्धता होती है उस टूटी हुई को भावनात्मक सहारा देने वाली दृढ़ भूमि सिद्ध होने की । अपना नियन्त्रण खो चुके बाढ़ में बहते हुए के लिए एक दृढ़ वट वृक्ष सिद्ध होने की । बाढ़ के थपेड़ों से इस वट वृक्ष की जड़ें हिलनी नहीं चाहिए, अपने जीवन के लिए नहीं, बल्कि उसके सहारे अपने को सुरक्षित मानने वाले के विश्वास की रक्षा के लिए ।

Anonymous का कहना है कि -

अच्छा लिखा है.
जब जानते हैं सब,
तो क्यूँ लड़कियों से उलझते हैं लोग,
जब पता है वो इबारत है खुदा की तो तो क्यूँ समझते नहीं हैं लोग,
वो संसार बनाती (बनती) है,तो क्यूँ संसार उसे रुलाता है,
यदि बनाने(बनने) वाले की यही नियति है,
तो उसके (स्त्री) साथ खुदा भी रोता होगा,
-------------
तो क्यूँ न हम उस शक्ति को प्रणाम करें और उससे लड़ने ,बहस करने की बजाय सुंदर संसार के निर्माण में सहयोग दें|
अनिरुद्ध

Anonymous का कहना है कि -

अच्छा लिखा है.
जब जानते हैं सब,
तो क्यूँ लड़कियों से उलझते हैं लोग,
जब पता है वो इबारत है खुदा की तो तो क्यूँ समझते नहीं हैं लोग,
वो संसार बनाती (बनती) है,तो क्यूँ संसार उसे रुलाता है,
यदि बनाने(बनने) वाले की यही नियति है,
तो उसके (स्त्री) साथ खुदा भी रोता होगा,
-------------
तो क्यूँ न हम उस शक्ति को प्रणाम करें और उससे लड़ने ,बहस करने की बजाय सुंदर संसार के निर्माण में सहयोग दें|
अनिरुद्ध

Sajal Ehsaas का कहना है कि -

aaj mood banake baithe hai ki aapke adhik se adhik posts dekhenge....shuruvaat badi gazab lagi

sach kahoon to ladko ki shaan mein itna kuchh shayad likha jaa hi nahi sakta...shaandaar kavita

Unknown का कहना है कि -

Bahut Kubh Sir

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)