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तेरा इश्क मेरे दिल से निकाले नहीं निकलता है
आजा के अब ये दर्द मुझसे तनहा नहीं संभलता है
फिर बरसा कहर की आग, फिर इक बार मुझको जला
अधजली चिंगारियों से दिल कतरा-कतरा जलता है
तू राहे-जफा पर अडा रह, मैं राहे-वफा पर अडी रहूँ
तेरा 'रूप' मुझसे अलग सही फिर भी मुझसे मिलता है
दुनिया से जाने से पहले इक बार शहर तेरे आना है
देखूं बेदर्द तुझ-सा आख़िर किस मिट्टी से बनता है
गमे-जुदाई हद से गुज़रे वो हसीं पल फिर जीती हूँ
तेरे सितम से ये सर्द बदन तेरी बाहों में पिघलता है
तेरी याद से बुझा ये दिल तेरी याद से सुलगता है
दिल में चुभा तेरा काँटा ऐसे कांटे से निकलता है
~RC
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"रूह-फजां शायरी अंजाम-बेइख्तियारी है
कोई बहर में लिखता है, कोई ज़हर में लिखता है "
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
पिछली रचना की तरह मज़ा नहीं आया....मेरी सलाह है कि जब तक लिखने के लिए पूरी तरह से तैयारी न हो, नहीं लिखें तो बेहतर.....इस रचना में कई शेर कसाव में कमज़ोर रह गए हैं....आपसे बेहतर उम्मीद रहती है....
फिर बरसा कहर की आग, फिर इक बार मुझको जला
अधजली चिंगारियों से दिल कतरा-कतरा जलता है
बढ़िया लिखा है..
achcha prayaas
कुछ शे'र सही में कमजोर दिख रहे हैं रूपम जी,
थोडी सी च्यवनप्राश की जरूरत महसूस हो रही है..
गिरि जी की बात पर गौर करें
कोशिश फिर एक और करें
:)
BR
तू राहे-जफा पर अडा रह, मैं राहे-वफा पर अडी रहूँ
तेरा 'रूप' मुझसे अलग सही फिर भी मुझसे मिलता है
बहुत खूब ग़ज़ल लिखी है
सादर
रचना
Point taken.
Sab ka shukriya!
तेरा इश्क मेरे दिल से निकाले नहीं निकलता है
आजा के अब ये दर्द मुझसे तनहा नहीं संभलता है
इस शे’र से मुझे तो शुरुआत जबर्दस्त लगी...
पर गज़ल बाँध के नहीं रख पाई रूपम जी...बहर के बारे में आपकी नीचे दी गई पंच लाइन मुझे अच्छी लगी..पिछली बार भी आपने कुछ ऐसा ही लिखा था... बढ़िया है.. :-)
bahut hi uttam rachna.virah ka aisa marmik varnan padhkar atyant achha laga.Bahut hi bhavnatmakta hai aapki is kriti me.Aise hi likhte rahiye.
भावों को और साधें, याद रखें लय में लिखी हर पंक्ति कविता नहीं होती।
mujhe gazal achhi lagi..
badhai sweekarein.
आपकी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर लिखे महानुभावों के कमेंट्स भी,पहला शेर बहुत ही प्रभावशाली है दुसरे शेर में गज़ब की खूबसूरती है अधजली चिंगारियों और कहर की आग दोनों का अलग अलग प्रभाव .
दुनिया से जाने से पहले इक बार शहर तेरे आना है
देखूं बेदर्द तुझ-सा आख़िर किस मिट्टी से बनता है
इस शेर को अगर किसी ने ध्यान से नही पढ़ा तो क्या पढ़ा ..ध्यान से पढ़कर अगर वाह वाह न निकले तो कहना /आखिरी शेर ने जो सर्वव्यापत सत्य बतलाया है .बहुत ही सधा हुआ और कमाल का शिल्प है ,भाव पक्ष से रचना खूबसूरत और बेहद प्रभावकारी है ,,अन्य बातें चाहे तकनीक हो चाहे बहर या वज़न,का ऊपर निचे होना रचना के सौन्दर्य में कोई कमी नही लाता.अगर ये ज़हर में लिखी गई है तो भी कम नही है बहर का मारा पानी मांग सकता है ज़हर का मारा ..क्या मांगे .....बधाई ऐसी खुबसूरत और ख्यालों से भरी रचना के लिए
शायद यह टिपण्णी लिखने में देर हो गई है .. पोस्ट पुराना हो चुका है, मगर जिन्होंने इतना सराहा है ... तथा मशवरा दिया है ... उनसे पुनः शुक्रिया न करुँ तो ठीक न होगा ..
दीपाली कुलवंत रचना तपन SURE तनहा सुनील जी ..
तहे दिल से शुक्रिया !
I believe in the fact that "Poetry is subjective". आपको मेरी रचना पसंद आई, शायद इसलिए क्योंकि आप इससे relate कर पाये और भाव समझ पाये | ऐसे ही मुझे तनहा जी की रचनाएं अधिक भाति हैं ... शायद इसलिए के मैं relate कर सकती हूँ ..
मेरे लिए यह रचना मेरी पसंदीदा रचनाओं में से है, SURE ji ने सही नब्ज़ पकडी है :) Kuchh she'r ek baar mein nahin "feel" honge .. jaise matlaa.
मगर सब अपने अपने नज़रिए से सोचते हैं, और एक कवि 'अच्छा कवि' माना जाता है जब वो ज्यादा से ज्यादा लोगों के दिलों तक पहुँच सके ....|
इसी ग़ज़ल पर मुझे किसी महफिल में अवार्ड मिल चुका है मगर वोह ग्रुप अलग किस्म का था ... .. तो बात फ़िर से ज्यादा से ज्यादा readers के दिलों तक पहुँचने की है, ...सो सबकी टिप्पणियों का सम्मान करती हूँ और यही वजह है के मैं कभी अपनी रचनाओं पर लम्बी टिपण्णी नहीं लिखती .. (आज शायद दिल की बात कहना ज़रूरी लगा!) और किसी टिपण्णी को defend करना पसंद नहीं करती (किसी ने आपके लिए दो मिनिट निकाले, आज के ज़माने में, यही मेरी रचना की सराहना है ..)
अगर मेरी बात मैं सबको नहीं समझा सकी तो मुझे क्या करना चाहिए ये मुझे सोचना होगा .. ...
और जो मुझे समझ पाये उनका शुक्रिया अदा करना होगा ..
RC
गज़ल में बहर का पक्षधर तो मैं भी हूँ,लेकिन चूँकि अब तक मुझे बहर की पूरी जानकारी नहीं हुई है, इसलिए रदीफ़, काफ़िया और भाव पर हीं गज़ल की परख करता हूँ।
इस कसौटी में मुझे यह गज़ल खड़ी उतरती हुई दिखी।
टिप्पणीकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि अगर कोई रचना अच्छी न लगे तो कृप्या उसका कारण भी बताएँ। बस "मज़ा नहीं आया" लिखने से आप अपने दायित्व से मुकरते हैं।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
very nice...
Few lines of my comments goes; nothing personal...
Ishq bina kya marna yaar
Ishq bina kya jeena.....
Tumne ishq ka naam suna hai, Humne ishq kiya hai..
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