1>
मेरे कमरे की हवाएं
खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर
2>
कल
तुम नही रहीं ,
मेरी लाश अब भी
जनाजे के इंतजार में है
3>
मुझे
मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ
किस पापी ने
धर्म बनाया
4>
मेरी नींद
शायद तुम्हारे पास रह गई है
कल ही आलपिन से
खोंसी थी तुमने,अपने दुपट्टे में
5>
उसने कहा था
मुझे कभी प्यार नही हो सकता -
मैं हर बात को
दिल से जो लगा बैठता हूँ
6>
मैंने कल
शाम को सूली पर लटका दिया
कह रही थी ,
तेरे लिए रुक नही सकती
7>
सपने देखना
खतरनाक है
कल
तेरे कहने पर
रोक दिया था मैंने
पृथ्वी का घूमना
-आलोक शंकर
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरे कमरे की हवाएं
खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर
उसने कहा था
मुझे कभी प्यार नही हो सकता -
मैं हर बात को
दिल से जो लगा बैठता हूँ
कम से कम शब्दों में आपने अपनी भावनाओ को खूब रस में भिगोया है.
भई बहुत अच्छी लगी क्षणिकायें...बधाई
आलोक जी
आप बस गजब ही लिखते हैं
मजा आ गया
मुझे मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ
किस पापी ने
धर्म बनाया .........gazab ka likhte ho yaaar tum....mein to kaayal ho gaya :)
kuch kshanikaayen achchi hain..
किस क्षणिका की भावनाओं को अधिक अच्छा कहूँ?
कोई कम नहीं,सभी दिल से होकर गुजरते हैं.....
असंभव को सम्भव बनाना तो आप जैसे कवियों के बस की ही बात है
सपने देखना
खतरनाक है
कल
तेरे कहने पर
रोक दिया था मैंने
पृथ्वी का घूमना
क्षणिकाओं का मौसम वापस आ रहा है शायद..
आलोक जी तबीयत खुश कर दी अपने .. बहुत खूब.. इसका तो जवाब नहीं..
मेरी नींद
शायद तुम्हारे पास रह गई है
कल ही आलपिन से खोंसी थी तुमने
अपने दुपट्टे में
मुझे
मेरे धर्म ने पापी बनाया
सोचता हूँ
किस पापी ने
धर्म बना
वाह!! क्या पंक्तियाँ है सुभानाल्लाह.... :)
-स्वाति
सागर में मणिकायें तो सम्भव है
मणिकाओं में सागर, असम्भव
हूह ! क्षणिकायें पढते तो ऐसा न कहते !
grt yaar. i m enthralled. superb. i had this feeling that worte only veer ras. keep up the good work. and do keep sending the link or new additions
मुझे ये बहुत अच्छी लगी
खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर
सादर\
रचना
अलोक जी बहुत दिनों बाद आपकी कलम ने पुराना जौहर दिखलाया है, इसी की आपसे अपेक्षा रहती है, सभी क्षणिकाएं बेहद सरल शब्दों में बड़ी बात कहती है, excellent
आलोक जी-
आपकी सभी क्षणिकाएँ तो नहीं लेकिन एक क्षणिका ने मुझे बहुत प्रभावित किया--
मेरी नींद
शायद तुम्हारे पास रह गई है
कल ही आलपीन से
खोंसी थी तुमने, दुपट्टे में।
--बधाई।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
मेरे कमरे की हवाएं
खुशबूदार हैं
अभी भी
तेरी याद
बैठी है खुली खिड़की पर
Yeh wala achcha laga. Baki theek-thaak hain.
पहली और तीसरी क्षणिका पसंद आई।
क्षणिकाए ज्यादा प्रभावी नही लगी
सुमित भारद्वाज
क्षणिकाए ज्यादा प्रभावी नही लगी
सुमित भारद्वाज
bahut khoob !!!
likhna sarthak hua .
Badhaii
सपने देखना
खतरनाक है
कल
तेरे कहने पर
रोक दिया था मैंने
पृथ्वी का घूमना
ye achchi lagi
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